मद्रास हाईकोर्ट ने एक बार फिर साफ कर दिया है कि शादी पुरुषों को अपनी पत्नी पर हुकूमत चलाने का लाइसेंस नहीं देती। कोर्ट ने कहा कि भारतीय विवाह प्रणाली को पुरुष वर्चस्व की छाया से बाहर निकलकर बराबरी और सम्मान की राह पर चलना होगा। पत्नी का धैर्य और सहनशीलता को उसकी सहमति नहीं माना जा सकता। यह बात जस्टिस एल विक्टोरिया गौरी की बेंच ने 1965 में शादीशुदा एक बुजुर्ग दंपती के मामले में सुनवाई के दौरान कही। इस मामले में एक महिला ने अपने पति के खिलाफ याचिका दायर की थी, जिसे भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498ए के तहत पत्नी के साथ क्रूरता का दोषी ठहराया गया था। 31 अक्टूबर को कोर्ट ने निचली अदालत के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें 80 साल के पति को बरी कर दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि खराब वैवाहिक जीवन में महिलाओं की बेवजह सहनशीलता ने पुरुषों को पीढ़ियों से उन पर कंट्रोल करने का हौसला दिया है।
18 साल तक पत्नी को झेलनी पड़ी क्रूरता
महिला ने कोर्ट को बताया कि उसके पति ने शादीशुदा जिंदगी में उसे 18 साल तक अलग रहने के लिए मजबूर किया। उसने आरोप लगाया कि पति ने अवैध संबंध बनाए और जब उसने इसका विरोध किया तो उसके साथ मारपीट और उत्पीड़न शुरू कर दिया। इतना ही नहीं, पति ने उसे झूठे केस में फंसाने और तलाक की धमकी भी दी। महिला ने बताया कि पति ने पूजा के लिए रखे फूलों के पौधे काट दिए, देवी-देवताओं की तस्वीरें फेंक दीं और उसे फोन करने या परिवार के समारोहों में जाने से रोक दिया। 16 फरवरी 2007 को पति ने उसे खाना और जरूरी चीजों से भी वंचित कर दिया। इस तरह उसे मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया।
चाकू से हमला और जहर देने की धमकी
महिला ने कोर्ट में यह भी बताया कि पति ने उसे अलग रसोई में खाना बनाने के लिए मजबूर किया। एक बार तो उसने चाकू से हमला करने की कोशिश भी की, लेकिन वह किसी तरह कमरे में बंद करके भाग निकली। इसके बाद पति के परिवार ने उसके खाने में जहर मिलाने की धमकी दी। इन सबके बाद महिला ने हिम्मत दिखाते हुए शिकायत दर्ज की। निचली अदालत ने पति को धारा 498ए के तहत दोषी ठहराया था, लेकिन बाद में इस फैसले को पलट दिया गया क्योंकि कोई चश्मदीद गवाह नहीं था और सबूत सुनी-सुनाई बातों पर आधारित थे। साथ ही दहेज की कोई मांग भी सामने नहीं आई थी।
हाईकोर्ट का कड़ा फैसला
मद्रास हाईकोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए पति को 6 महीने की जेल और 5 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। जुर्माना न चुकाने पर एक महीने की अतिरिक्त जेल की सजा भी दी गई। कोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया कि शादी में बराबरी और सम्मान जरूरी है और पत्नी के साथ क्रूरता बर्दाश्त नहीं की जाएगी। यह फैसला महिलाओं के अधिकारों और वैवाहिक जीवन में बराबरी को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
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