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एक छोटे गांव से लेकर सीनियर नेशनल कैंप तक के सफर पर प्रताप लाकड़ा ने कहा- कभी हार नहीं मानी

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नई दिल्ली, 05 मई . ओडिशा के सुंदरगढ़ जिले के एक छोटे से गांव से निकले 24 वर्षीय डिफेंडर प्रताप लाकड़ा की कहानी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं है. कोरोना महामारी के दौरान जब ज़्यादातर खिलाड़ी अपनी दिशा खो बैठे, लाकड़ा ने न सिर्फ खुद को संभाला, बल्कि अपनी मेहनत से भारत की सीनियर हॉकी टीम के नेशनल कैंप तक जगह बना ली.

प्रताप लाकड़ा की ज़िंदगी में एक समय ऐसा आया जब सब कुछ हाथ से फिसलता महसूस हो रहा था. वर्ष 2020 में जब कोविड-19 की वजह से देशभर में लॉकडाउन हुआ, तो उन्हें जूनियर कैंप से बाहर कर दिया गया. फिटनेस गिर गई और मौके भी कम होने लगे. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. वे रेलवे की टीम के मैदान पर अकेले ट्रेनिंग करते रहे.

लाकड़ा ने हॉकी इंडिया के हवाले से कहा, उस दौर में कुछ भी तय नहीं था, लेकिन मैं रोज़ मैदान पर जाता था. प्रताप की हॉकी यात्रा गांव के मैदान से शुरू हुई थी, जहां वे नंगे पांव हॉकी खेला करते थे. उनके पिता गांव में हॉकी खेल चुके थे और उनकी बहन प्रीति ओडिशा की नेशनल प्लेयर रही हैं.

उन्होंने कहा, हम किसान हैं, लेकिन हमारे खून में हॉकी है.आर्थिक तंगी के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी. एक बार उनके पास खेलने के लिए सही जूते भी नहीं थे, तब हॉकी गंगपुर ओडिशा के एक अधिकारी ने उनकी मदद की. वर्ष 2011 में लाकड़ा पानपोष स्पोर्ट्स हॉस्टल, राउरकेला में शामिल हुए और जल्दी ही जूनियर टीम का हिस्सा बन गए. उन्होंने वर्ष 2017 और 2019 में सुल्तान ऑफ जोहोर कप और स्पेन में 8 नेशन्स टूर्नामेंट खेले. लेकिन महामारी ने करियर पर ब्रेक लगा दिया. इसके बाद वे रेलवे के टूर्नामेंट्स में खेले और 2018 में साउथ सेंट्रल रेलवे में नौकरी मिली, जिससे उन्हें स्थिरता और खेल में वापसी का प्लेटफॉर्म मिला.

2025 में वापसी और नेशनल कैंप में एंट्री-

2024 में उन्होंने ओडिशा की ओर से सीनियर नेशनल खेला और फिर 2025 में मध्य प्रदेश की ओर से. इस बार उनका प्रदर्शन इतना शानदार था कि वे टीम को सिल्वर मेडल दिलाने में मददगार बने और नेशनल कैंप के लिए चुने गए. लाकड़ा ने बताया, फाइनल मुकाबला बेहद कठिन था. पंजाब जैसी मजबूत टीम के खिलाफ खेलकर बहुत कुछ सीखने को मिला.

लाकड़ा की प्रेरणा भारतीय डिफेंडर बीरेन्द्र लाकड़ा और ड्रैग फ्लिकर रूपिंदर पाल सिंह हैं. उन्होंने कहा, बीरेन्द्र सर का डिफेंस में नियंत्रण और रूपिंदर सर की तकनीक-दोनों से बहुत सीखा.

वर्ष 2024-25 में वेदांता कलिंगा लांसर की ओर से हॉकी इंडिया लीग में भी शामिल हुए. हालांकि ज्यादा मैच खेलने का मौका नहीं मिला, लेकिन अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों के बीच रहकर उन्हें खेल की बारीकियां समझने का मौका मिला. फिलहाल वे सीनियर नेशनल कैंप का हिस्सा हैं और उनका सपना है, भारतीय टीम की जर्सी पहनकर देश को ओलंपिक गोल्ड दिलाना. बहन प्रीति हमेशा उन्हें याद दिलाती हैं — कैंप में नाम आना बस शुरुआत है, असली मेहनत अब शुरू होती है.

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दुबे

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