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किसी पोस्ट को लाइक करना अश्लील या भड़काऊ प्रकाशन प्रसारण नहीं माना जा सकता : हाईकोर्ट

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प्रयागराज, 19 अप्रैल . इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि सोशल मीडिया पर किसी पोस्ट को केवल लाइक करना अश्लील या भड़काऊ सामग्री का प्रकाशन या प्रसारण नहींं माना जा सकता और इस पर सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2008 की धारा 67 लागू नहींं होती.

यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव ने ऐसे ही मामले के आरोपित इमरान के खिलाफ सीजेएम आगरा की अदालत में लम्बित आपराधिक कार्यवाही रद्द करते हुए दिया है.

इमरान ने अर्जी दाखिल कर मामले के आरोप पत्र, संज्ञान आदेश एवं मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट आगरा के समक्ष लंबित आपराधिक वाद को रद्द करने की मांग की थी. इमरान के खिलाफ मंटोला थाने में एफआईआर दर्ज थी, जिसमें आरोप था कि इमरान खान ने सोशल मीडिया पर भड़काऊ संदेश पोस्ट किए जिससे लगभग 600-700 लोगों की भीड़ बिना अनुमति के एकत्र हो गई. इससे शांति व्यवस्था भंग होने की आशंका उत्पन्न हुई.

इमरान खान की ओर से दलील दी गई कि साइबर क्राइम सेल की रिपोर्ट के अनुसार, इमरान खान के फेसबुक अकाउंट पर कोई आपत्तिजनक सामग्री नहीं पाई गई. इमरान ने केवल चौधरी फरहान उस्मान की एक पोस्ट को लाइक किया था, न कि साझा या प्रकाशित किया.

सरकारी वकील का तर्क था कि याची के फेसबुक अकाउंट पर कोई सामग्री नहीं मिली क्योंकि उसे हटा दिया गया था. लेकिन केस डायरी में व्हाट्सएप व अन्य सोशल मीडिया पर कुछ सामग्री होने की बात है. सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि अश्लील सामग्री का प्रकाशन या प्रसारण दंडनीय अपराध है लेकिन किसी पोस्ट या संदेश को प्रकाशित तब माना जाएगा, जब उसे पोस्ट किया जाए और प्रसारित तब, जब उसे साझा या रिट्वीट किया जाए.

किसी पोस्ट को लाइक करना न तो प्रकाशन है और न ही प्रसारण. इसलिए यह आईटी एक्ट की धारा 67 के अंतर्गत नहीं आता. इसके अलावा अभिलेख में ऐसा कोई संदेश नहीं है जो भड़काऊ प्रकृति का हो. चौधरी फरहान उस्मान द्वारा डाले गए संदेश को केवल लाइक करना सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 या किसी अन्य आपराधिक अपराध के अंतर्गत दंडनीय नहीं है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भड़काऊ या अश्लील सामग्री का सक्रिय रूप से प्रसार होना आवश्यक है, केवल लाइक करना मात्र सहमति या प्रशंसा का संकेत है, न कि प्रकाशन.

कोर्ट ने सीजेएम आगरा के समक्ष लंबित याची के खिलाफ वाद की कार्यवाही रद्द कर दी. साथ ही ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि यदि विधिक रूप से उचित हो तो अन्य सह अभियुक्तों के विरुद्ध कार्यवाही जारी रखी जा सकती है.

/ रामानंद पांडे

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