गोरखपुर, 17 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) . महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय, गोरखपुर (एमजीयूजी) के गुरु गोरक्षनाथ इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (आयुर्वेद कॉलेज) में एकीकृत चिकित्सा पर केंद्रित तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार ‘आरोग्य संगम–2025’ के दूसरे दिन शुक्रवार को कई वैज्ञानिक सत्रों का आयोजन किया गया. इसमें देश-विदेश से आए विषय विशेषज्ञों ने अपने शोध कार्यों के उद्धरण के साथ अपने विचार प्रस्तुत किए.
शुक्रवार को एक विशेष वैज्ञानिक सत्र में मुख्य वक्ता आयुर्वेद पॉइंट, मिलान इटली के डॉ. एंटोनियो मरांडी ने ‘कोलैबोरेटिव मेडिसिन एंड साइंस इन न्यूरोलॉजी’ विषय पर विस्तार से बताते हुए कहा कि आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा के समन्वय से न्यूरोलॉजी में नई संभावनाएं बन सकती हैं. आयुर्वेद में विभिन्न जड़ी-बूटियों और योग के माध्यम से न्यूरोलॉजिकल विकारों के इलाज में मदद मिल सकती है, जैसे कि पार्किंसंस और अल्जाइमर. उन्होंने कहा कि आयुर्वेदिक पद्धतियों का उपयोग कर न्यूरोलॉजिकल विकारों के लक्षणों को कम करने और रोगी के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद मिलती है.
एक अन्य सत्र में वर्चुअल माध्यम से जुड़े स्विस आयुर्वेद मेडिकल एकेडमी स्विट्जरलैंड के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. सिमोन हंकाइजर ने बताया कि आधुनिक युग में स्वास्थ्य की अवधारणा केवल रोगों के उपचार तक सीमित नहीं है, बल्कि व्यक्ति के संपूर्ण शारीरिक, मानसिक और सामाजिक कल्याण पर आधारित है. उन्होंने कहा कि सहयोगात्मक चिकित्सा में विभिन्न विशेषज्ञ एक साथ मिलकर रोगी के शारीरिक, मानसिक, और सामाजिक स्वास्थ्य का ध्यान रखते हैं. इससे रोग का कारण, लक्षण, और रोगी की जीवनशैली तीनों पहलुओं को ध्यान में रखकर उपचार किया जाता है. उन्होंने कहा कि भविष्य की चिकित्सा प्रणाली समग्र और सहयोगात्मक दृष्टिकोण पर आधारित होगी, जिसमें परंपरागत और आधुनिक चिकित्सा का सम्मिलन होगा.
विशेष वैज्ञानिक सत्रों की शृंखला में एक सत्र के मुख्य वक्ता विश्व आयुर्वेद मिशन के अध्यक्ष डॉ. जीएस तोमर ने कुछ मुख्य बीमारियों जैसे कैंसर, डायबिटीज, एलर्जी के इलाज में आयुर्वेद के योगदान के विषय में बताया. उन्होंने असाध्य रोग को साध्य करने में आयुर्वेद की भूमिका और जीवनशैली पर भी चर्चा की और कहा कि आयुर्वेद सम्मत जीवनशैली से सम्पूर्ण आरोग्यता को प्राप्त किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि शरीर और मन के अनुकूल आहार हमें स्वस्थ रखने में मदद करता है. इसके पूर्व प्रथम सत्र में मुख्य वक्ता स्वर विज्ञान एवं वास्तु विशेषज्ञ डॉ. राजेंद्र जैन ने स्वर विज्ञान पर चर्चा करते हुए बताया कि स्वर विज्ञान एक प्राचीन Indian विज्ञान है जो ध्वनि और उसके प्रभावों का अध्ययन करता है. यह विज्ञान वेदों और उपनिषदों में वर्णित है और इसका उपयोग संगीत, योग और अध्यात्म में किया जाता है. स्वर विज्ञान में ध्वनि के प्रभावों का अध्ययन किया जाता है, जिसका आधार प्रति पल लिए और छोड़े जाने वाली श्वास व प्रश्वास है जो व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास ,मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य प्रदान करता है. उन्होंने बताया कि स्वर परिवर्तन के बाद शरीर में विभिन्न रासायनिक परिवर्तन होते हैं जो शरीर के कार्यों को प्रभावित करते हैं.
शुक्रवार को द्वितीय सत्र के मुख्य अतिथि आत्रेय इनोवेशंस नाड़ी तरंगिनि के फाउंडर एंड सीईओ डॉ. अनिरुद्ध जोशी ने ‘टेक्नोलॉजी इन डायग्नोसिस विथ नाड़ी तरंगिनि’ पर व्याख्यान देते हुए कहा कि नाड़ी तरंगिनी एक एडवांस्ड एआई-पावर्ड पल्स डायग्नोस्टिक डिवाइस है. यह आयुर्वेदिक पद्धति को आधुनिक तकनीक के साथ मिलाकर रोगों का पता लगाने में मदद करती है. यह डिवाइस आयुर्वेदिक पैरामीटर्स वात, पित्त और कफ की जांच कर स्वास्थ्य के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करती है. तृतीय सत्र के मुख्य वक्ता प्रसिद्ध रुमेटोलॉजिस्ट डॉ. अरविंद चोपड़ा रहे. उन्होंने इंटीग्रेटिव मेडिसिन क्लिनिकल बेस्ड एप्रोच के विषय में बताते हुए कहा कि एकीकृत चिकित्सा एक ऐसी पद्धति है जो आधुनिक चिकित्सा विज्ञान और पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को मिलाकर रोगों के इलाज के लिए एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करती है. इस पद्धति में चिकित्सक रोगी के शारीरिक, मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करते हैं और उपचार के लिए विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों का संयोजन करते हैं. इसमें रोगों के इलाज के लिए आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों, दवाओं के साथ आयुर्वेद, योग, ध्यान और अन्य पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को भी शामिल किया जाता है. यह पद्धति रोगी की व्यक्तिगत आवश्यकताओं और स्वास्थ्य लक्ष्यों के अनुसार उपचार योजना तैयार करती है.
चतुर्थ सत्र में मुख्य वक्ता विश्व स्वास्थ्य संगठन के साउथ ईस्ट एशिया रीजनल ऑफिस के टेक्निकल ऑफिसर डॉ. पवन कोडतवार ने ‘समग्र चिकित्सा का वैश्विक परिदृश्य’ पर व्याख्यान देते हुए कहा कि पारंपरिक एवं समग्र चिकित्सा पद्धतियां आज विश्वभर में लोगों के स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डाल रही हैं. इन पद्धतियों के माध्यम से रोगों की जड़ों तक उपचार संभव हो रहा है, साथ ही यह आधुनिक चिकित्सा का भी पूरक बनती जा रही है. डॉ. पवन ने कहा कि एकीकृत चिकित्सा माध्यम से उपचार से रोगी स्वस्थ हो रहे हैं. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियां स्वास्थ्य को गहराई से प्रभावित करती हैं. उन्होंने कहा कि समग्र चिकित्सा का वैश्विक परिदृश्य यह दर्शाता है कि स्वास्थ्य केवल उपचार का नहीं, बल्कि संपूर्ण कल्याण का विषय है.
पंचम सत्र में डॉ. मनोरंजन साहू ने ‘शल्य चिकित्सा में समग्र दृष्टिकोण’ विषय पर व्याख्यान देते हुए वाराणसी में प्राचीन शल्य चिकित्सा की उत्पत्ति पर प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि आयुर्वेद में विभिन्न प्रकार के व्रण (घाव) एवं उनके उपचार का विस्तृत वर्णन मिलता है, जो किसी भी शल्य प्रक्रिया की मूलभूत आवश्यकता है. डॉ. साहू ने बताया कि आयुर्वेदिक औषधियों का आधुनिक शल्य चिकित्सा में समन्वित प्रयोग रोगी के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ में सहायक सिद्ध हो सकता है. उन्होंने क्षार सूत्र जो आयुर्वेद की एक अत्यंत प्रभावशाली और वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति है, के बारे में बताया. इस सत्र में डॉ. त्रिविक्रम त्रिपाठी ने भी विचार व्यक्त किए.
(Udaipur Kiran) / प्रिंस पाण्डेय
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