बिलासपुर , 28 जुलाई (Udaipur Kiran) । छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने प्रदेश में समय पर एंबुलेंस की उपलब्धता नहीं होने को लेकर हुई दो अलग-अलग घटनाओं के मामलों को स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई की है। जिसमें राज्य सरकार और रेलवे से दोनों मामलों में जवाब तलब कर मुआवजा दिए जाने के निर्देश दिए हैं। इस मामले में सोमवार को उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रमेश कुमार सिन्हा और न्यायाधीश विभु दत्त गुरु की युगलपीठ में सुनवाई हुई। इस सुनवाई में राज्य शासन की तरफ से 2 लाख मुआवजा राशि दिए जाने की जानकारी दी है।
रेलवे की तरफ अधिवक्ता रमाकांत मिश्रा ने डीआरएम के शपथ पत्र पेश किए जानकारी के साथ बताया कि संबंधित परिवार को ₹1लाख की राशि स्वीकृत कर दी गई है। लेकिन घटना में प्रभावित परिवार की कोई जानकारी नहीं मिल रही है। जिस पर न्यायालय ने एक महीने में परिवार की जानकारी जुटाकर सहायता राशि उपलब्ध कराने निर्देश दिया है। वहीं परिवार का पता नहीं चल पाने की दशा में राशि शासकीय कैंसर अस्पताल में जमा करने का आदेश सुनाया है। दरअसल एंबुलेंस की समय पर उपलब्धता नहीं होने की दशा में गरीब आदिवासी की मौत और ट्रेन
में सफर कर रही है, कैंसर पीड़ित महिला की मौत तथा एम्बुलेंस के इंतज़ार में 1 घंटे पड़ा रहा शव इन दोनों मामलों को लेकर प्रकाशित मीडिया रिपोर्ट को उच्च न्यायालय ने संज्ञान में लेकर जनहित याचिका के रूप सुनवाई शुरू की थी।
इसके साथ ही उच्च न्यायालय की युगलपीठ ने दायर हलफनामे के बारे में कहा था कि शपथपत्र इस तरह से दायर किए गए हैं ताकि जनता के प्रति इन दोनों अधिकारियों की किसी भी प्रकार की ज़िम्मेदारी से बचा जा सके। हलफनामे बहुत ही लापरवाही और असंवेदनशील तरीके से दायर किए गए हैं। कम से कम, मृत्यु के बाद, हर इंसान को सम्मानजनक विदाई का अधिकार है। अगर राज्य और रेलवे के अधिकारी शव को उनके घर वापस ले जाने के लिए एक वाहन भी उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं, और वह भी तब जब एक मामला एक गरीब आदिवासी की मृत्यु का है और दूसरा ट्रेन में यात्रा कर रहे एक कैंसर रोगी की मृत्यु का है, तो अन्य आम लोगों का क्या होगा, यह अच्छी तरह से समझा जा सकता है। राज्य ने दलील दी है कि एम्बुलेंस सेवा में देरी के कारण मरने वाले पीड़ितों के परिवार के सदस्यों को कोई मुआवजा देने का कोई प्रावधान नहीं है। जब राज्य आम लोगों के लिए एम्बुलेंस सेवाओं पर भारी धनराशि खर्च कर रहा है, तो सेवा प्रदाता पर केवल जुर्माना लगाना पर्याप्त नहीं होगा और पीड़ित/परिवार के सदस्य को किसी न किसी तरह से मुआवजा देना ही होगा। इसी तरह, रेलवे एक बड़ी कंपनी होने के नाते, जिसके पास सभी साज-सज्जा है, उससे यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह पीड़ित या उनके परिवार के सदस्यों द्वारा दी गई सूचना/शिकायत का इंतजार करे। रेलवे के अधिकारियों को कैंसर रोगी की मृत्यु के संबंध में जानकारी मिलते ही तुरंत कदम उठाने चाहिए थे और शव को सम्मानजनक तरीके से उनके घर वापस ले जाने की व्यवस्था करनी चाहिए थी। यह न्यायालय राज्य और रेलवे के आचरण की सराहना नहीं करता है और ऊपर दिए गए हलफनामों से बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं है।
वहीं कोर्ट ने छत्तीसगढ़ राज्य को यह निर्देश दिया कि उस गरीब आदिवासी के परिवार को 2 लाख रुपये की राशि का भुगतान करे, जिसने एम्बुलेंस के आने का इंतजार करते हुए अपनी जान गंवा दी । बिलासपुर के मंडल रेल प्रबंधक को कैंसर रोगी के परिवार को 1 लाख रुपये की राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया, जिसे मृत्यु के बाद शव वाहन के लिए लंबे समय तक इंतजार करना पड़ा। उपरोक्त राशि संबंधित परिवारों को अगली सुनवाई की तारीख से पहले भुगतान करने और इस संबंध में सचिव, स्वास्थ्य और बिलासपुर के मंडल रेल प्रबंधक द्वारा एक हलफनामा भी दायर करने आदेश दिया था।
(Udaipur Kiran) / Upendra Tripathi
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