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कानपुर में स्थापित ऐसा प्राचीन शिव मंदिर जिसे कहा जाता है द्वितीय काशी

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कानपुर, 15 जुलाई (Udaipur Kiran) । श्रावण माह में शिव मंदिरों में बाबा के प्रति भक्तों का एक अटूट प्रेम देखने को मिलता है। वैसे तो देश भर में भगवान शिव के तमाम मंदिर स्थापित हैं। ये मंदिर अपनी प्राचीनता और उससे जुड़ी कहानी किस्सों को लेकर काफी प्रचलित हैं। इन्ही में से एक औद्योगिक नगरी कानपुर में जाजमऊ स्थित गंगा घाट किनारे बने बाबा सिद्धनाथ मंदिर जिसे द्वितीय काशी भी कहा जाता है। इस मंदिर में बाबा के दर्शन करने के लिए जनपद ही नहीं बल्कि आस-पास के जिलों से भी श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। इस मंदिर को लेकर कई किस्से कहानियां प्रचलित हैं। जिन्हें लेकर मंगलवार को मन्दिर के पुजारी मुन्नी लाल ने कई अहम जानकारियां साझा की है।

सावन का महीना आते ही शिव मंदिरों में आस्था का सैलाब उमड़ता है। वैसे तो शहर में तमाम प्राचीन शिव मंदिर हैं लेकिन औद्योगिक नगरी कानपुर में जाजमऊ स्थित गंगा किनारे स्थापित बाबा सिद्धनाथ का मंदिर अपनी विशेषता के लिए देशभर में प्रसिद्ध है। जिसे द्वितीय काशी के नाम से भी जाना जाता है। यहां वैसे तो प्रत्येक दिन शिवभक्तों का आना जाना रहता है लेकिन सावन के पवित्र महीने में यहां देश के कोने कोने से लोग इस मन्दिर में आकर भोलेनाथ के दर्शन करते हैं। यहाँ भक्त बेलपत्री, दूध,दही और जल का अभिषेक कर शिवलिंग पर चढ़ाते कर मनोकामनाए मांगते हैं।

ऐसी मान्यता है कि त्रेतायुग में जाजमऊ स्थित राजा ययाति का महल हुआ करता था। उनके पास एक हजार गाय थीं लेकिन वे इन गायों में से एक गाय का ही दूध पिया करते थे। जिसके पाँच थन थे। वही सुबह गायों को चरवाहे चरने के लिए छोड़ दिया करते थे। इस दौरान एक गाय अक्सर झाड़ियों के पास जाकर अपना दूध एक पत्थर पर गिरा देती थी। जब ये बात राजा को पता चली। तो उन्होंने अपने सैनिकों से इस बारे में जानकारी करने को कहा राजा के जिसपर यह बताया कि गाय झाड़ियों के पास अपना दूध एक पत्थर पर गिरा देती है।

उसी वक्त राजा ने फैसला किया कि हम वहां चलेंगे। उस जगह पर जाने के बाद उन्होंने उस टीले के आसपास खुदाई करवाई। जहां उन्हें खुदाई करते वक्त एक शिवलिंग निकला। जिसके बाद राजा ने विधि-विधान से शिवलिंग का पूजन कर शिवलिंग को स्थापित कर दिया। कहा जाता है कि राजा को एक रात स्वप्न आया कि यहां सौ यज्ञ पूरे करोगे तो यह जगह काशी कहलाएगी। जिसके बाद राजा ने विधि विधान से यज्ञ प्रारंभ भी कर दिया। बताया जाता है कि राजा के 99 यज्ञ पूरे हो गए थे 100वें यज्ञ के दौरान एक कौवे ने उस हवन कुंड में हड्डी डाल दी। जिसके बाद ये जगह काशी बनने से तो चूक गयी लेकिन आज भी सभी भक्त इसे द्वितीय काशी के रूप में जानते हैं। तबसे लेकर ये प्रसिद्ध मंदिर सिद्धनाथ के नाम से जाना जाने लगा।

सिद्धनाथ मन्दिर के पुजारी मुन्नी लाल पांडेय ने बताया कि सिद्धनाथ मंदिर में श्रद्धालुओं की प्रत्येक दिन भीड़ बनी रहती है। देश के कोने कोने से लोग भोलेनाथ के दर्शन के लिए यहां आते है। यहां सावन के चौथे सोमवार के दिन भव्य मेला का भी आयोजन होता है। भक्तों को सिद्धनाथ बाबा ने कभी निराश नही किया। बच्चों के मुंडन हो या किसी भी प्रकार की मनोकामना बाबा सिद्धनाथ जरूर उसे पूरा करते हैं संतान प्राप्ति के लिए लोग पूजा अर्चना करते है। उनकी मुराद पूरी जरूर होती है।

(Udaipur Kiran) / रोहित कश्यप

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