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भगवान कृष्ण की हुई लीलाएं, घोसुंडा में भरा मेला, कोढ़ी साधु के रूप में भगवान कृष्ण ने दिए थे दर्शन

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चित्तौड़गढ़, 7 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) . जिले के घोसुंडा कस्बे में Monday को नाव विहार का आयोजन हुआ. भगवान कृष्ण से जुड़ी बाल लीलाएं हुई. इस दौरान भरे मेले में बड़ी संख्या में ग्रामीण पहुंचे हैं. ऐसी मान्यता है कि करीब 425 साल पहले भगवान कृष्ण कोढ़ी साधु (रोगी) के रूप एक भक्त के यहां पर आए थे और भोजन किया था. निशानी के तौर पर अपना मोर पंखी मुकुट देकर गए, जिसके दर्शन तीन दिन के लिए होते हैं.

घोसुंडा निवासी भगत परिवार के राजू काबरा ने बताया कि शरद पूर्णिमा के अवसर पर यहां तीन दिवसीय लालजी-कानजी (बलराम-कृष्ण) का मेला आयोजित किया जाता है. मुख्य दिवस शरद पूर्णिमा होती है. गांव के बाहर तालाब की पाल पर मेला लगता है और जल में नाव विहार की लीला होती है. Monday को भी यहां एक जुलूस गांव से रवाना होकर होकर तालाब पार पहुंचा. यहां ड्रम एवं बांस की बनाई नाव पर भगवान कृष्ण की लीलाएं हुई. शादी श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए भगवान कृष्ण का मोरपंखी मुकुट भी निकाला गया. इसके दर्शन के लिए भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु भगत आवास पर पहुंचे हैं और दर्शन किए हैं.

इसलिए होता है आयोजन

भगत परिवार के राजू काबरा ने बताया कि करीब 425 साल पहले हमारे परिवार में भक्त हुवे थे गोविंददासजी. उस समय भगवान कृष्ण ने उन्हें साक्षात दर्शन दिए और Examination ली. कोढ़ी साधु के रूप में भगवान गांव में आए तो ग्रामीणों ने उपहास उड़ाया और भगतजी के घर भेजा. यहां जो की रोटी और कढ़ी खिलाई. भगवान ने प्रसन्न होकर दर्शन दिए तो भगतजी ने कहा कि मेरी बात कौन मानेंगे. तब भगवान ने गांव वालों को भी दर्शन दिए और निशानी के रूप में अपना मुकुट देकर गए थे. तब से ही तीन दिवसीय आयोजन होते है. भगवान की लीलाओं का मंचन होता है. मुख्य दिवस शरद पूर्णिमा पर जल में लालजी-कानजी को नाव में बिराजमान कर जल विहार होता है. इसके बाद विशेष पूजा की जाती है.

तीन दिन का निवास, ग्रामीण करते है पदयात्रा

भगत राजू काबरा ने बताया कि ऐसी भी मान्यता है कि तीन दिन भगवान गांव में ही रहते हैं. इसलिए गांव के लोग इन तीन दिनों में गांव में पांच कोस तक की परिक्रमा करते हैं. भगवान किसी भी रूप में मिल सकते हैं. वर्षों से ग्रामीण जल विहार होते है पैदल निकल जाते हैं.

साल में केवल तीन दिन मोरपंखी मुकुट के दर्शन

भगत राजू काबरा ने बताया कि पूरे साल में केवल इन तीन दिनों में ही भगवान के मोरपंखी मुकुट को निकाला जाता है. मेले में आने वाले श्रद्धालु इस मुकुट के दर्शन करते हैं. आयोजन के बाद अगले साल ही यह मुकुट निकलता है.

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(Udaipur Kiran) / अखिल

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