नैनीताल, 18 जुलाई (Udaipur Kiran) । नैनीताल स्थित आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान के वैज्ञानिकों ने पहली बार मध्य हिमालय क्षेत्र में प्रमुख ग्रीनहाउस गैसों के निरंतर और सूक्ष्म जमीनी अवलोकनों के आधार पर इनकी जटिल गतिशीलता को उजागर किया है।
पांच वर्षों तक चले इस अध्ययन में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी गैसों की दैनिक, मौसमी और दीर्घकालिक प्रवृत्तियों को समझा गया है। यह शोध दक्षिण एशिया के पर्वतीय इलाकों में जलवायु परिवर्तन के आकलन और उसके लिए प्रभावी रणनीतियों के निर्माण की दिशा में एक उल्लेखनीय उपलब्धि माना जा रहा है।
वर्ष 2014 से 2018 के दौरान नैनीताल और मौना लोआ के अध्ययनों में पाया गया है कि सौर विकिरण, तापमान और वायुमंडलीय सीमा परत जैसी प्राकृतिक प्रक्रियाओं के साथ ही कृषि कार्य, जैव ईंधन का जलना और पर्वतीय क्षेत्रों में प्रदूषण का ऊर्ध्वगामी प्रवाह जैसी मानवीय गतिविधियां इन गैसों के स्तरों को प्रभावित करते हैं। आंकड़ों के अनुसार दिन में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के कारण कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर घटता है, जबकि पर्वतीय हवाओं से प्रदूषक ऊपर चढ़ने के कारण मीथेन और कार्बन मोनोऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है।
वहीं, वसंत ऋतु में कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता जलती लकड़ियों और सीमित हरियाली से जुड़ी पाई गई, जबकि शरद ऋतु में मीथेन की वृद्धि का संबंध धान की खेती जैसी गतिविधियों से जोड़ा गया है। कार्बन मोनोऑक्साइड का स्तर वसंत के अंत में चरम पर रहा, जो इस अवधि में वायु प्रदूषण के प्रवाह की पुष्टि करता है।
दीर्घकालिक आंकड़ों से यह भी स्पष्ट हुआ कि कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन की सांद्रता में हर वर्ष क्रमशः 2.66 पीपीएम और 9.53 पीपीबी की वृद्धि हो रही है, जो मौना लोआ जैसे वैश्विक पृष्ठभूमि स्थलों से भी अधिक है। वहीं, कार्बन मोनोऑक्साइड में प्रतिवर्ष 3.15 पीपीबी की गिरावट दर्ज की गई है, जिसे प्रदूषण स्रोतों में परिवर्तन या दहन दक्षता में सुधार का संकेत माना गया है। डॉ. प्रियंका श्रीवास्तव और डॉ. मनीष नाजा के नेतृत्व में किए गए इस शोध से प्राप्त सूचनाएं न केवल उपग्रह आंकड़ों की पुष्टि करती हैं, बल्कि उत्सर्जन सूची निर्माण, वायुमंडलीय मॉडल के उन्नयन और जलवायु नीति निर्धारण के लिए भी ठोस आधार प्रस्तुत करती हैं। अध्ययन से यह भी निष्कर्ष निकला कि मध्य हिमालय में ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता पृष्ठभूमि स्थलों से अधिक, किंतु शहरी क्षेत्रों से कम है।
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(Udaipur Kiran) / डॉ. नवीन चन्द्र जोशी
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