हिंदू धर्म में माता पार्वती को प्रमुख देवियों में से एक माना जाता हैं, जो सारे जगत की जननी हैं. माता पार्वती को भगवान शिव की पत्नी और शक्ति का स्वरूप माना जाता है. वे प्रकृति, उर्वरता, दैवीय शक्ति, वैवाहिक आनंद, भक्ति और तपस्या की देवी हैं. माता पार्वती भगवान शिव की दूसरी पत्नी और देवी सती का पुनर्जन्म हैं. उनकी कथा शिव पुराण, देवी भागवत पुराण, स्कंद पुराण और कालिदास के महाकाव्य ‘कुमारसंभव’ में विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता पार्वती के रूप में सती का पुनर्जन्म पहले से ही निर्धारित था. यह एक दैवीय योजना का हिस्सा था, जो ब्रह्मांडीय संतुलन और विशेष रूप से भगवान शिव को गृहस्थ जीवन में लाने के लिए आवश्यक था, ताकि वे ताड़कासुर जैसे शक्तिशाली असुर का वध करने वाले पुत्र (कार्तिकेय) को जन्म दे सकें. यह कथा कई प्रमुख हिंदू धर्मग्रंथों, जैसे शिव पुराण, देवी भागवत पुराण और कालिका पुराण में विस्तार से वर्णित है.
सती का दक्ष यज्ञ में आत्मदाहमां सती भगवान शिव की पहली पत्नी थीं, और वे प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं. राजा दक्ष ने जब एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, तो उन्होंने जानबूझकर भगवान शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया. इसके बाद सती अपने पिता के यज्ञ में बिन बुलाए ही पहुंच गईं. वहां दक्ष ने शिव का घोर अपमान किया. सती अपने पति के अपमान को सहन न कर सकीं और योग अग्नि द्वारा अपने शरीर का आत्मदाह कर त्याग कर दिया.
भगवान शिव का वैराग्य और सृष्टि का संकटसती के देह त्याग से भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने दक्ष के यज्ञ को भंग कर दिया. इसके बाद, भगवान शिव गहरे शोक में डूब गए और वे घोर तपस्या में लीन होकर कैलाश पर्वत पर वैराग्य धारण कर लिया. शिव के वैराग्य धारण करने से सृष्टि में असंतुलन पैदा हो गया, क्योंकि उनके बिना ‘शक्ति’ (सती का स्वरूप) ब्रह्मांड में पूर्ण रूप से सक्रिय नहीं थी.
ताड़कासुर का आतंक और ब्रह्मा का वरदानमाता सती के आत्मदाह के बाद ताड़कासुर नामक एक अत्यंत शक्तिशाली असुर ने तीनों लोकों में आतंक मचाना शुरू कर दिया था. ताड़कासुर को ब्रह्मा जी से यह वरदान प्राप्त था कि उसका वध केवल भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही हो सकता है. चूंकि शिव घोर तपस्या में लीन थे और वैरागी थे, इसलिए देवताओं के लिए यह एक बड़ी समस्या बन गई कि शिव पुत्र का जन्म कैसे होगा.
देवताओं का हस्तक्षेप और सती के पुनर्जन्म की योजनाइस संकट को देखकर सभी देवता ब्रह्मा और भगवान विष्णु के पास गए. तब यह बात सामने आई कि सती ही हिमालयराज हिमवान और उनकी पत्नी मैना के यहां पार्वती के रूप में जन्म लेंगी. यह दैवीय योजना पहले से ही निर्धारित थी. पार्वती के रूप में सती का पुनर्जन्म शिव को वैराग्य से निकालकर गृहस्थ जीवन में लाने और ताड़कासुर का संहार करने वाले पुत्र (कार्तिकेय) को जन्म देने के लिए आवश्यक था.
पार्वती की तपस्या और शिव से विवाहमाता पार्वती ने बचपन से ही भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की. उन्होंने अपनी भक्ति और तपस्या से शिव को प्रसन्न किया. कामदेव को शिव के तप को भंग करने के लिए भेजा गया था, लेकिन शिव ने उसे भस्म कर दिया. यह दिखाता है कि शिव को जगाना कितना मुश्किल था. अंततः, शिव ने पार्वती की भक्ति को देखकर उनसे विवाह करने का निर्णय लिया. इस विवाह के बाद ही कार्तिकेय का जन्म हुआ, जिन्होंने ताड़कासुर का वध किया.
पूर्वनिर्धारित था सती का पुनर्जन्मपौराणिक कथाओं के मुताबिक, ये बात साबित होती है कि माता पार्वती के रूप में सती का पुनर्जन्म पूरी तरह से पूर्वनिर्धारित था. यह केवल एक आकस्मिक घटना नहीं थी, बल्कि ब्रह्मांडीय संतुलन बनाए रखने, धर्म की स्थापना करने और विशेष रूप से ताड़कासुर जैसे असुर का वध करने वाले पुत्र के जन्म को सुनिश्चित करने के लिए एक दैवीय लीला और योजना का हिस्सा था. यह शिव और शक्ति के शाश्वत मिलन और उनके अभिन्न संबंध को भी दर्शाता है.
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