सरकार ने इसी हफ़्ते संसद में दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (संशोधन) विधेयक, 2025 पेश किया। इसके लागू होने से दिवाला प्रक्रिया में सुधार होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे समाधान में कम समय लगेगा और प्रक्रिया ज़्यादा पारदर्शी होगी। इस विधेयक को संसद की प्रवर समिति के पास विचार के लिए भेजा गया है। आइए जानते हैं कि इस विधेयक के पारित होने के बाद क्या बदलाव आएंगे।
आईबीबीआई के स्पष्टीकरण अब कानून का रूप लेंगे
विशेषज्ञों का कहना है कि आगामी बदलावों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। पहला बदलाव उन स्पष्टीकरणों से संबंधित होगा, जिन्हें भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड (आईबीबीआई) ने नियमों के माध्यम से पेश किया है और अब उन्हें कानून का रूप दिया जा रहा है। दूसरा बदलाव दिवाला प्रक्रिया में लगने वाले समय को कम करने के लिए किया जा रहा है। तीसरा बदलाव हितधारकों के अधिकारों को प्रभावित कर सकता है।
2022 के रेनबो पेपर्स मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटा जाएगा
सबसे प्रमुख संशोधन धारा 3(31) से संबंधित प्रस्तावित स्पष्टीकरण है। इसका उद्देश्य 2022 के रेनबो पेपर्स मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को पलटना है। इसे राज्य कर अधिकारी बनाम रेनबो पेपर्स लिमिटेड (2022) के नाम से जाना जाता है। यह निर्णय लिया गया कि सरकारी प्राधिकरणों को IBC के तहत 'सुरक्षित लेनदार' माना जा सकता है।
सुरक्षित लेनदारों को हमेशा उच्च प्राथमिकता दी जाएगी
सुरक्षित लेनदारों को मुख्यतः बैंक माना जाता है। ऋण लेने वाली कंपनी की परिसंपत्तियों में उनका हित होता है। उनके ऋण को संपार्श्विक द्वारा समर्थित किया जाता है। इससे उन्हें किसी भी परिसंपत्ति या विशिष्ट परिसंपत्तियों पर कानूनी दावा प्राप्त होता है। सुरक्षित लेनदारों को प्राथमिकता में उच्च स्थान दिया जाता है। इसका अर्थ है कि सुरक्षित लेनदारों को कंपनी की परिसंपत्तियों को बेचने पर प्राप्त धन पर अधिकार होता है।
सरकारी बकाया राशि को बैंकों से नीचे प्राथमिकता
प्राथमिकता की दृष्टि से, सरकारी बकाया राशि को बैंकों से नीचे रखा जाता है। यदि किसी कानून के कारण, सरकारी प्राधिकरण का दावा सुरक्षित लेनदारों के दावे के बराबर रखा जाता है, तो परिसमापन के दौरान दोनों को समान प्राथमिकता मिलेगी। सर्वोच्च न्यायालय ने 2022 में इस संबंध में एक निर्णय दिया था। इस संशोधन विधेयक के माध्यम से इसमें बदलाव किया गया है।
वाणिज्यिक ऋण ढाँचा मज़बूत होगा
इस विधेयक में कहा गया है कि अगर सरकार पर कोई बकाया है और वह सुरक्षित है, तो भी उसे प्राथमिकता नहीं मिलेगी। न ही उसे IBC के तहत सुरक्षित माना जाएगा। गांधी लॉ एसोसिएट्स के पार्टनर राहिल पटेल ने कहा कि इससे यह स्पष्ट हो गया है कि वसूली के क्रम में सरकार का दावा स्वतः ही सुरक्षित लेनदारों के बराबर नहीं आएगा। इससे वाणिज्यिक ऋण ढाँचा मज़बूत होगा।
स्थगन के दौरान कंपनी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं
इस विधेयक में IBC की धारा 14 में संशोधन का प्रस्ताव भी शामिल है। यह धारा स्थगन से संबंधित है। यह एक शांत अवधि है जो तब घोषित की जाती है जब कोई कंपनी या कॉर्पोरेट देनदार कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) में प्रवेश करता है। स्थगन के दौरान, कोई भी कंपनी पर मुकदमा नहीं कर सकता, उसकी संपत्ति नहीं बेच सकता या उसके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं कर सकता।
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