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इस दिन पड़ रहा है गंगा दशहरा, जानें तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

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हिंदू धर्म में मां गंगा का स्थान सर्वोच्च देवी स्वरूप में माना गया है। इन्हें मोक्षदायिनी, पाप विनाशिनी और पुण्य प्रदायिनी कहा गया है। मान्यता है कि गंगा दशहरा के दिन मां गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं। यही कारण है कि इस पर्व का धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्व है। कहते हैं कि इस दिन गंगा में स्नान करने से जीवन भर के पापों का शुद्धिकरण होता है और व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक शांति प्राप्त होती है। यह पर्व केवल गंगा नदी के प्रति श्रद्धा का प्रतीक नहीं, बल्कि मानवता, दान और शुद्ध भावनाओं का उत्सव है। आइए जानते हैं गंगा दशहरा 2025 की तिथि, योग, पूजा विधि और इसका आध्यात्मिक महत्व।

गंगा दशहरा 2025 की तिथि और शुभ योग

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि, हस्त नक्षत्र और सिद्धि योग के संयोग में मां गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था। इस वर्ष 2025 में यह पवित्र पर्व 5 जून (गुरुवार) को मनाया जाएगा।

  • दशमी तिथि प्रारंभ: 4 जून की रात 11:54 बजे

  • दशमी तिथि समाप्त: 5 जून की रात 9:10 बजे

  • सिद्धि योग: सुबह 9:14 बजे तक

  • हस्त नक्षत्र: संपूर्ण दिन

  • रवि योग: विशेष शुभ

  • करण योग (गर और तैतिल): दोपहर 2:15 बजे तक

इन शुभ योगों में गंगा स्नान, पूजा, दान और जप करने से अत्यधिक पुण्य की प्राप्ति होती है।

मां गंगा का अवतरण: भागीरथ की तपस्या से धरती पर आईं

पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा सगर के 60,000 पुत्रों की आत्मा को मोक्ष दिलाने के लिए उनके वंशज राजा भागीरथ ने कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने गंगा को धरती पर उतरने का आदेश दिया, लेकिन उनके वेग को संभालने के लिए भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में रोककर धीरे-धीरे धरती पर प्रवाहित किया। इस घटना के बाद से गंगा को भागीरथी और शिव के मस्तक से निकली दिव्य धारा कहा जाने लगा।

गंगा दशहरा की पूजा विधि

गंगा दशहरा पर श्रद्धालु विशेष श्रद्धा और भक्ति के साथ मां गंगा की पूजा करते हैं। यह पूजा विधि इस प्रकार है:

  • प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें। यदि गंगा नदी के समीप हों तो गंगा स्नान करें, अन्यथा स्नान जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।

  • स्नान के बाद गंगाजल से देवी-देवताओं का अभिषेक करें

  • फिर मां गंगा की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाकर उनका ध्यान करें।

  • गंगा स्तोत्र या गंगा अष्टक का पाठ करें।

  • मां गंगा को सफेद फूल, दूध, अक्षत, फल, और मिठाई का भोग अर्पित करें।

  • गंगा आरती करें और परिवार की सुख-शांति, पापों की मुक्ति और कल्याण की प्रार्थना करें।

  • पूजा के बाद गरीबों को भोजन, वस्त्र और धन का दान करें

  • मान्यता है कि इस दिन दस प्रकार के पापों का विनाश होता है, इसलिए इसे "दशहरा" कहा जाता है।

    गंगा दशहरा का सामाजिक और आध्यात्मिक महत्व

    गंगा केवल एक नदी नहीं, बल्कि संस्कृति, सभ्यता और आस्था की प्रतीक है। गंगा दशहरा पर किया गया स्नान व्यक्ति के तन और मन दोनों को शुद्ध करता है। इस पर्व पर दान, संयम, और सेवा का विशेष महत्व होता है, जिससे समाज में समरसता और सहयोग की भावना विकसित होती है।

    गंगा आरती 

    ओम जय गंगे माता, श्री जय गंगे माता ।
    जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता ॥
    चंद्र सी जोत तुम्हारी, जल निर्मल आता ।
    शरण पडें जो तेरी, सो नर तर जाता ॥
    ॥ ओम जय गंगे माता..॥
    पुत्र सगर के तारे, सब जग को ज्ञाता ।
    कृपा दृष्टि तुम्हारी, त्रिभुवन सुख दाता ॥
    ॥ ओम जय गंगे माता..॥
    एक ही बार जो तेरी, शारणागति आता ।
    यम की त्रास मिटा कर, परमगति पाता ॥
    ॥ ओम जय गंगे माता..॥
    आरती मात तुम्हारी, जो जन नित्य गाता ।
    दास वही सहज में, मुक्त्ति को पाता ॥
    ॥ ओम जय गंगे माता..॥
    ओम जय गंगे माता, श्री जय गंगे माता ।
    जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता ॥
    ओम जय गंगे माता, श्री जय गंगे माता ।

    निष्कर्ष

    गंगा दशहरा केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और सेवा का अवसर है। 5 जून 2025 को जब भक्तगण मां गंगा की आराधना करेंगे, तो वह क्षण आध्यात्मिक उन्नति और आंतरिक शांति का माध्यम बनेगा। इस दिन मन, वचन और कर्म से पवित्र रहकर यदि मां गंगा का स्मरण किया जाए, तो निश्चय ही सुख-समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति संभव है।

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