ज्योतिष: आज हम देवी मां के शक्ति पीठों से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण रहस्यों पर चर्चा करेंगे। यह ज्ञात है कि देवी शक्ति पीठ माता सती से संबंधित हैं। जब भगवान विष्णु ने माता सती के शरीर को चक्र से काटा, तब उनके शरीर के विभिन्न हिस्से जहां गिरे, वहीं शक्ति पीठों का निर्माण हुआ।
माता सती को पार्वती, दुर्गा, काली, गौरी, उमा, जगदम्बा, गिरीजा, अम्बे, शेरांवाली, शैलपुत्री, पहाड़ावाली, चामुंडा, तुलजा, अम्बिका जैसे कई नामों से जाना जाता है। इनकी कहानी एक जन्म की नहीं, बल्कि कई जन्मों और रूपों की है।
देवी भागवत पुराण में माता के 18 रूपों का वर्णन मिलता है। नौ दुर्गा और दस महाविद्याओं का उल्लेख करते हुए यह प्रतीत होता है कि इनमें से कुछ माता की बहनें थीं और कुछ का संबंध उनके अगले जन्म से है। जैसे पार्वती और कात्यायिनी को तारा माता की बहन माना जाता है।
माता सती का पहला जन्म
सती माता: पुराणों के अनुसार, प्रजापति दक्ष कश्मीर घाटी के हिमालय क्षेत्र में निवास करते थे। उनके दो पत्नियाँ थीं- प्रसूति और वीरणी। प्रसूति से दक्ष की चौबीस कन्याएं और वीरणी से साठ कन्याएं हुईं। इस प्रकार, दक्ष की कुल 84 पुत्रियां थीं।
राजा दक्ष की पुत्री सती की माता का नाम प्रसूति था, जो स्वायंभुव मनु की तीसरी पुत्री थीं। राजा दक्ष ने अपनी इच्छा के विपरीत सती का विवाह भगवान शिव से किया।
भगवान शिव को रुद्र कहा जाता है और उन्हें ही शंकर भी कहा जाता है। कथा के अनुसार, सती ने शिव के दर्शन किए और उन पर मोहित हो गईं। दक्ष इस विवाह से संतुष्ट नहीं थे, क्योंकि सती ने अपनी मर्जी से एक ऐसे व्यक्ति से विवाह किया था जिसे वह पसंद नहीं करते थे।
शिव और सती के विवाह के बाद, दक्ष ने एक बड़ा यज्ञ आयोजित किया लेकिन अपने दामाद और पुत्री को निमंत्रण नहीं दिया। सती ने अपने पति की मना करने के बावजूद यज्ञ में जाने का निर्णय लिया। वहां दक्ष ने सती का अपमान किया, जिससे दुखी होकर सती ने यज्ञ अग्नि में आत्मदाह कर लिया।
शक्ति पीठों का निर्माण
शिव का दुख: सती के आत्मदाह की खबर सुनकर शिव ने वीरभद्र को भेजा, जिसने दक्ष का सिर काट दिया। इसके बाद, शिव ने सती के शरीर को अपने सिर पर धारण कर तांडव नृत्य किया। भगवान विष्णु ने सती के शरीर को टुकड़ों में काटने का निर्णय लिया।
शक्तिपीठ: इस प्रकार, सती के शरीर के जो हिस्से और आभूषण जहां गिरे, वहां शक्ति पीठों का निर्माण हुआ। देवी भागवत में 108 शक्ति पीठों का उल्लेख है, जबकि देवी गीता में 72 और देवी पुराण में 51 शक्ति पीठों का वर्णन मिलता है।
पार्वती की कथा
शिव-पार्वती विवाह: सती के बाद, पार्वती का जन्म हिमालय के राजा हिमवान और रानी मैनावती के घर हुआ। मैनावती और हिमवान ने आदिशक्ति की प्रार्थना की, जिसके फलस्वरूप पार्वती का जन्म हुआ।
कथा के अनुसार, जब सती के आत्मदाह के बाद विश्व शक्तिहीन हो गया, तब देवताओं ने आदिशक्ति देवी की आराधना की। देवी ने हिमवान के घर में गौरी के रूप में जन्म लेने का वचन दिया।
पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए तपस्या की। सप्तऋषियों ने पार्वती को समझाने का प्रयास किया कि शिव उनके लिए योग्य नहीं हैं, लेकिन पार्वती अपने निर्णय पर अडिग रहीं।
सप्तऋषियों ने पार्वती की दृढ़ता को देखकर उन्हें आशीर्वाद दिया। भगवान शिव ने पार्वती के प्रेम को समझकर विवाह की तिथि तय की।
पार्वती मंगल
पार्वती मंगल: संत तुलसीदास की रचना 'पार्वती मंगल' शिव-पार्वती के विवाह पर आधारित है। इसमें सोहर और हरिगीतिका छंदों का प्रयोग किया गया है।
कथा के अनुसार, हिमवान की पत्नी मैना ने जब अपनी कन्या के विवाह की चिंता की, तब नारद ने कहा कि उसे एक बावला वर मिलेगा। इसके बाद, गिरिजा ने शिव की उपासना की।
जब शिव ने गिरिजा की तपस्या को देखा, तो उन्होंने स्वयं प्रकट होकर उसे कृतार्थ किया। इसके बाद, शिव और पार्वती का विवाह धूमधाम से हुआ।
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