भगवान शिव और देवी पार्वती का पवित्र विवाह सम्पन्न हुआ। राजा हिमवान ने अपनी पुत्री को भगवान शिव के साथ विदा करते समय भरपूर दहेज और सम्मान प्रदान किया।
मुनि भरद्वाज ने मुनि याज्ञवल्क्य से भगवान शिव के विवाह की कथा सुनकर महान आनंद अनुभव किया। उनकी आंखों में आंसू थे। मुनि याज्ञवल्क्य इस दृश्य को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए, क्योंकि मुनि भरद्वाज ने श्रीराम की कथा सुनने की पहली शर्त पूरी कर ली थी। यह शर्त थी कि यदि आप श्रीराम के पवित्र चरित्र को सुनना चाहते हैं, तो यह आवश्यक है कि आप भगवान शिव के सच्चे भक्त हों।
‘सिव पद कमल जिन्हहि रति नाहीं।
रामहि ते सपनेहुँ न सोहाहीं।।
बिनु छल बिस्वनाथ पद नेहू।
राम भगत कर लच्छन एहू।।’
अर्थात, जिनकी भगवान शिव के चरणों में प्रीति नहीं है, वे श्रीरामचन्द्र जी को सपने में भी अच्छे नहीं लगते। भगवान शिव के चरणों में निष्कपट प्रेम होना, यही राम भक्त की पहचान है।
यहाँ एक प्रश्न उठता है कि ऐसा क्यों आवश्यक है कि प्रभु श्रीराम जी के प्रति प्रेम होना चाहिए, जिनका प्रेम भगवान शिव के चरणों में हो।
सज्जनों! वास्तव में हम गोस्वामी तुलसीदास जी के भावों को समझ नहीं पा रहे हैं। वे श्रीराम जी की कथा लिखने के लिए बैठे हैं, लेकिन पहले भगवान शिव की पवित्र गाथा का आरंभ करते हैं। इसके पीछे एक गहरा मनोविज्ञान है। उदाहरण के लिए, जब कोई कैमरामैन किसी की तस्वीर खींचता है, तो वह कैमरा स्थिर रखता है। हिलते कैमरे से सुंदर व्यक्ति की तस्वीर भी खराब लगती है। ठीक इसी तरह, जब हम श्रीराम जी की कथा सुनने बैठते हैं, तो यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि हमारा मन स्थिर है। चंचल मन मानो हिलता हुआ कैमरा है, जिसमें भगवान श्रीराम जी की छवि स्पष्ट नहीं हो पाती।
अब प्रश्न यह है कि भगवान शिव की कथा सुनने से हमारे मन की चंचलता क्यों शांत होती है? इसका उत्तर यह है कि भगवान शिव एक वैरागी और योगी हैं। उनके वैराग्य का कोई मुकाबला नहीं। मनोविज्ञान कहता है कि जिस पात्र या कथा को आप सुनते हैं, उसका प्रभाव आपके मन पर अवश्य पड़ेगा। इस प्रकार, जो भी भगवान शिव की कथा सुनेगा, उसके मन में भी वैराग्य उत्पन्न होगा। यही वैराग्य मन की शांति का संकेत है।
मुनि भरद्वाज के श्रद्धा से भरे चेहरे को देखकर, मुनि याज्ञवल्क्य समझ गए कि जो जिज्ञासु भगवान शिव की कथा सुनकर आंसू बहा रहे हैं, वही श्रीराम जी की कथा सुनने के योग्य हैं। तब मुनि याज्ञवल्क्य ने कहा, ‘हे मुनि भरद्वाज जी, मैंने पहले ही शिवजी का चरित्र कहकर तुम्हारा भेद समझ लिया है। तुम श्रीरामचन्द्र जी के पवित्र सेवक हो और सभी दोषों से मुक्त हो। अब मैं तुम्हें श्रीराम जी की कथा सुनाता हूँ।’
क्रमशः
- सुखी भारती