नई दिल्ली। वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) जाने वाले पहले भारतीय होने वाले हैं। शुभांशु शुक्ला से पहले कोई भी भारतीय आईएसएस नहीं गया है। साल 1984 में भारतीय वायुसेना में तब विंग कमांडर रहे राकेश शर्मा को रूस के सोयूज यान से अंतरिक्ष में जाने का मौका मिला था। उस ऐतिहासिक घटना के 41 साल बाद अब शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष जाने वाले दूसरे भारतीय बने हैं। शुभांशु शुक्ला के साथ स्पेसएक्स के ड्रैगन यान में 3 और अंतरिक्ष यात्री हैं। शुभांशु को अंतरिक्ष में ले गया ड्रैगन यान आज शाम 4.30 बजे के करीब आईएसएस से जुड़ेगा।
आईएसएस से सफलता से जुड़ने के लिए ड्रैगन कैप्सूल को प्रवेश करने वाले दरवाजे के लगातार करीब लाना होगा। ये काम पायलट की जिम्मेदारी निभा रहे शुभांशु शुक्ला ही निभाएंगे। शुभांशु शुक्ला और तीन अन्य अंतरिक्ष यात्रियों वाला यान हर सेकंड 7.5 किलोमीटर की रफ्तार से धरती का चक्कर लगा रहा है। वहीं, अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन धरती से 400 किलोमीटर ऊपर है। ड्रैगन यान में लगे 9 छोटे बूस्टर रॉकेट को बीच-बीच में फायर कर उसे आईएसएस के सामने लाया और फिर जोड़ा जाना है। ये काम बहुत पेचीदा माना जाता है, लेकिन एक्सिओम ने अपने मिशन के लिए शुभांशु को इसकी ट्रेनिंग दी है।
शुभांशु शुक्ला यूपी की राजधानी लखनऊ के निवासी हैं। उनको गगनयान के लिए ट्रेनिंग देने के वास्ते रूस भी भेजा गया था। फिर जब नासा और इसरो ने एक्सिओम-4 मिशन में साथ काम करने का फैसला किया, तो भारत की ओर से शुभांशु शुक्ला को आईएसएस भेजने का फैसला किया गया। शुभांशु को आईएसएस पर 12 प्रयोग करने हैं। इनमें से 7 भारत के और 5 अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा के हैं। शुभांशु शुक्ला आईएसएस के सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण में तमाम बीजों को अंकुरित भी कराएंगे। ताकि पता चल सके कि ऐसे हालात में बीज के अंकुरण का क्या असर होता है। शुभांशु शुक्ला को 10 से 14 दिन तक आईएसएस पर गुजारना है। कुल मिलाकर शुभांशु हर दिन काफी व्यस्त रहने वाले हैं।
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