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जलालुद्दीन उर्फ छांगुर की अंगूठी का जादू देख नीतू और नवीन हुए थे मुरीद, संतान हुई तो कर लिया धर्म परिवर्तन

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संतोष सक्सेना, बलरामपुर: बलरामपुर के उतरौला के रेहरामाफी गांव के रहने वाले छांगुर ने नीतू व नवीन को अंगूठी देकर अपना मुरीद बनाया। मुम्बई के हाजी अली दरगाह पर तकरीबन डेढ़ दशक पहले नवीन व नीतू की मुलाकात छांगुर से हुई थी। उस समय नीतू व नवीन के कोई संतान नही थी। छांगुर उर्फ पीर बाबा ने दोनों को अंगूठी देकर मन की मुराद पूरी होने की बात कह संतान होने की दुआ दी। यहां से छांगुर की नीतू, नवीन के साथ नजदीकी बढ़ने लगी।



छांगुर जब मुम्बई जाता था तो नीतू नवीन के घर पर रूकता था। कुछ दिनों बाद नीतू, नवीन के घर बेटी का जन्म हुआ, इससे दम्पती को भरोसा हो गया कि यह छांगुर की दुआ से सम्भव हुआ है। इसके बाद दोनों का छांगुर से लगाव बढ़ने लगा। छांगुर जब वापस अपने गांव आता था तो यह दम्पती उससे लम्बी बातचीत करते रहते थे। यही से छांगुर ने दोनों का धर्म पविर्तन करवाने के लिये माइंडवाश करना शुरू किया।



कई वर्षों से छांगुर द्वारा की गई मेहनत वर्ष 2015 में पूरी हो गई जब इस दम्पती ने हिन्दू धर्म छोड मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया। नीतू नसरीन नवीन जमालुददीन व बेटी समाले से सबीहा बन गई। इस दम्पती का धर्म परिवर्तन कराने के बाद छांगुर ने धर्म परिवर्तन कराने के नेटवर्क को तेजी से फैलाना शुरू किया। इसके लिये नीतू व नवीन मिसाल के साथ-साथ ढाल की तरह थे। इनकी मिसालें देकर दूसरे हिंदुओं को धर्म परिवर्तन करने के लिये के लिये प्रेरित करने लगा।



छांगुर जहां जाता था वहां नीतू व नवीन परछाई की तरह उसके साथ होते थे। धर्म परिवर्तन के शुरू हुए सिलसिले को लेकर वर्ष 2020 में नीतू व नवीन मुम्बई छोड़कर उतरौला के मधपुर में आकर रहने लगे। विदेशी फंडिग से प्राप्त अकूत मनी से उतरौला के मधपुर में छांगुर ने शानदार कोठी बनवाई, जिसे देख आसपास के लोगों की निगाहें चढ़ जाती थी। छांगुर को पहले से जानने वाले लोग यह देख चकित थे कि महज चंद वर्षों में करोड़ों की बेशुमार दौलत कहां से आई। नीतू के नाम से ही छांगुर ने जमीन खरीदकर शानदार कोठी बनवाई। जिसे प्रशासन का बुलडोजर जमीदोंज करने के लिये अब गरज रहा है।

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