महाभारत की रोचक कहानियां: शकुनी को महाभारत के सभी पात्रों में से सबसे शातिर माना जाता है। कहते हैं कि मामा शकुनी को शतरंज में हराना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था। लेकिन, कोई था जो न सिर्फ मामा शकुनी को द्यूत में परास्त कर सकता था और द्रौपदी चीर हरण की घटना को भी रोक सकता था है। लेकिन पांडवों ने उन्हें इस खेल तो क्या खेल भवन में आने से भी रोक दिया था। यही वजह रही जिससे पांडव शकुनी और दुर्योधन की चाल में फंस गए और बात यहां तक पहुंच गई की पांडव राजपाट तो क्या द्रौपदी को भी जुए में हार गए।
चौसर का खेल और शकुनी की चालशकुनि के पास जो पासे थे वह बहुत ही मायावी थे वह उसके इशारों पर काम करते थे। क्योंकि वह पासे शकुनि ने अपनी पिता की हड्डियों से बनाए थे जिस वजह से शकुनि को कभी भी कोई चौसर में नहीं हरा सकता था। लेकिन, शकुनी को केवल भगवान कृष्ण ही इस खेल में मात दे सकते हैं तो फिर क्यों भगवान कृष्ण ने उस दिन शकुनि के साथ चौसर का खेल नहीं खेला और आखिर क्यों भगवान कृष्ण द्रोपदी की रक्षा के लिए उस समय पहुंचे जब दुशासन ने द्रौपदी का चीर खींचना शुरू किया? यही प्रश्न भगवान कृष्ण से उद्धवजी ने भी किया था। उद्धव ने पूछा था जब द्रौपदी लगभग अपना शील खो रही थी,तब आपने उन्हें वस्त्र चीर हरण के अपमान से बचाया और उनके शील की रक्षा की। आप चाहते तो इस घटना को पहले भी रोक सकते थे लेकिन आपने पहले ऐसे क्यों नहीं किया।
क्यों पांडवों को करना पड़ा जुए में हार का सामनाभगवान कृष्ण ने बताया कि, पांडव मुझसे छुपकर चौसर के खेल में शामिल हुए थे। साथ ही मन ही मन मुझसे प्रार्थना की थी कि आप इस द्यूत भवन में न आएं। इसलिए मैं तो क्रीड़ा भवन के बाहर ही खड़ा रहा। पांडवों के सामने जब दुर्योधन ने यह बात रखी की उसकी ओर से पासा शकुनि फेंकेगा तब युधिष्ठिर की मति मारी गई थी। वह भी कह सकता था कि अगर दुर्योधन की ओर से पासा शकुनि चलेंगे तो पांडवों की ओर से उनका भ्राता कृष्ण पासा चलेंगे। युधिष्ठिर अगर ऐसा करते तो द्यूत में शकुनि अपनी कपट नहीं दिखा पाता और पांडव निश्चित विजयी होते और द्रौपदी चीर हरण की घटना भी नहीं हो पाती।
इसलिए चीर हरण होने पर द्रौपदी की लाज बचाने पहुंचे श्रीकृष्णद्रौपदी को जुए में हार जाने पर दुर्योधन ने अपने भाई दुशासन को द्रौपदी के बाल पकड़कर घसीटते हुए सभा भवन में लाने का आदेश दे दिया। दुशासन द्रौपदी को बालों से घटीसता हुआ सभा में लेकर पहुंचा। उस समय द्रौपदी ने सबसे पहले अपने पतियों के तरफ आशा से देखे की वह सभी उसकी लाज बचाएंगे लेकिन, सभी पांडव मुंह लटकाए हुए बैठे रहे। जब दुस्साशन ने द्रौपदी का चीरहरण करना आरंभ किया तब द्रौपदी ने भगवान कृष्ण को पुकारा। जैसे ही द्रौपदी ने भगवान कृष्ण को पुकारा तो वह बिना किसी विलंब के ही द्रौपदी को बचाने के लिए पहुंच गए। भगवान ने उद्धवजी को बताया कि, वह तो द्रौपदी को बचाने के लिए तत्पर बैठे थे लेकिन जबतक कोई उन्हें सच्चे मन से पुकारता नहीं तब तक वह कहीं नहीं जाते हैं। जब व्यक्ति अहंकार छोड़कर उनकी ओर आस लगता है वह मदद के लिए अवश्य आते हैें।
चौसर का खेल और शकुनी की चालशकुनि के पास जो पासे थे वह बहुत ही मायावी थे वह उसके इशारों पर काम करते थे। क्योंकि वह पासे शकुनि ने अपनी पिता की हड्डियों से बनाए थे जिस वजह से शकुनि को कभी भी कोई चौसर में नहीं हरा सकता था। लेकिन, शकुनी को केवल भगवान कृष्ण ही इस खेल में मात दे सकते हैं तो फिर क्यों भगवान कृष्ण ने उस दिन शकुनि के साथ चौसर का खेल नहीं खेला और आखिर क्यों भगवान कृष्ण द्रोपदी की रक्षा के लिए उस समय पहुंचे जब दुशासन ने द्रौपदी का चीर खींचना शुरू किया? यही प्रश्न भगवान कृष्ण से उद्धवजी ने भी किया था। उद्धव ने पूछा था जब द्रौपदी लगभग अपना शील खो रही थी,तब आपने उन्हें वस्त्र चीर हरण के अपमान से बचाया और उनके शील की रक्षा की। आप चाहते तो इस घटना को पहले भी रोक सकते थे लेकिन आपने पहले ऐसे क्यों नहीं किया।
क्यों पांडवों को करना पड़ा जुए में हार का सामनाभगवान कृष्ण ने बताया कि, पांडव मुझसे छुपकर चौसर के खेल में शामिल हुए थे। साथ ही मन ही मन मुझसे प्रार्थना की थी कि आप इस द्यूत भवन में न आएं। इसलिए मैं तो क्रीड़ा भवन के बाहर ही खड़ा रहा। पांडवों के सामने जब दुर्योधन ने यह बात रखी की उसकी ओर से पासा शकुनि फेंकेगा तब युधिष्ठिर की मति मारी गई थी। वह भी कह सकता था कि अगर दुर्योधन की ओर से पासा शकुनि चलेंगे तो पांडवों की ओर से उनका भ्राता कृष्ण पासा चलेंगे। युधिष्ठिर अगर ऐसा करते तो द्यूत में शकुनि अपनी कपट नहीं दिखा पाता और पांडव निश्चित विजयी होते और द्रौपदी चीर हरण की घटना भी नहीं हो पाती।
इसलिए चीर हरण होने पर द्रौपदी की लाज बचाने पहुंचे श्रीकृष्णद्रौपदी को जुए में हार जाने पर दुर्योधन ने अपने भाई दुशासन को द्रौपदी के बाल पकड़कर घसीटते हुए सभा भवन में लाने का आदेश दे दिया। दुशासन द्रौपदी को बालों से घटीसता हुआ सभा में लेकर पहुंचा। उस समय द्रौपदी ने सबसे पहले अपने पतियों के तरफ आशा से देखे की वह सभी उसकी लाज बचाएंगे लेकिन, सभी पांडव मुंह लटकाए हुए बैठे रहे। जब दुस्साशन ने द्रौपदी का चीरहरण करना आरंभ किया तब द्रौपदी ने भगवान कृष्ण को पुकारा। जैसे ही द्रौपदी ने भगवान कृष्ण को पुकारा तो वह बिना किसी विलंब के ही द्रौपदी को बचाने के लिए पहुंच गए। भगवान ने उद्धवजी को बताया कि, वह तो द्रौपदी को बचाने के लिए तत्पर बैठे थे लेकिन जबतक कोई उन्हें सच्चे मन से पुकारता नहीं तब तक वह कहीं नहीं जाते हैं। जब व्यक्ति अहंकार छोड़कर उनकी ओर आस लगता है वह मदद के लिए अवश्य आते हैें।
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