ओडिशा के बालासोर में कॉलेज फैकल्टी पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली छात्रा की मौत पूरे सिस्टम की हार है। सरकारी स्तर पर अभी जिस तरह की सक्रियता दिख रही है, अगर वह पहले दिखती, तो शायद इस तरह की नौबत नहीं आती। इस मसले पर राजनीति भी शुरू हो चुकी है, लेकिन जरूरत है ऐसी संवेदनशील प्रणाली की, जहां किसी छात्रा को लाचार होकर ऐसा आत्मघाती कदम न उठाना पड़े।
सुनवाई नहीं: बीएड स्टूडेंट ने अपने हेड ऑफ डिपार्टमेंट की शिकायत प्रिंसिपल से की थी। अब यह तथ्य सामने है कि खुद को आग लगाने से कुछ दिनों पहले भी उसने एक्स (पहले ट्विटर) पर सार्वजनिक रूप से अपनी शिकायत रखते हुए चेताया था कि अगर कार्रवाई नहीं हुई, तो वह जान दे देगी। कॉलेज की इंटरनल कंप्लेंट कमिटी से लेकर प्रिंसिपल तक, वह जहां तक पहुंच सकती थी, गई, लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हुई।
यह कैसी इमेज: आरोप है कि प्रिंसिपल ने पीड़िता पर शिकायत वापस लेने का दबाव बनाया, क्योंकि उन्हें कॉलेज की ‘इमेज’ खराब होने की चिंता थी। इस मामले में एक बड़ी भूमिका इस कथित ‘इमेज’ की है, जिसे बचाने के चक्कर में अक्सर अपराध को छिपाया जाता है। लेकिन क्या किसी शैक्षणिक संस्थान की छवि एक छात्रा के जीवन से बढ़कर हो सकती है और क्या अपराध की शिकायत पर कार्रवाई करने से इमेज दागदार होती है?
बार-बार लापरवाही: ओडिशा का नाम पिछले कुछ महीनों में इस तरह की घटनाओं में लगातार आया है। इस साल फरवरी में भुवनेश्वर के कलिंगा इंस्टिट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल टेक्नॉलजी (KIIT) में बीटेक थर्ड ईयर की एक नेपाली स्टूडेंट ने खुदकुशी कर ली थी। वहां भी पीड़िता ने एक छात्र पर प्रताड़ित करने का आरोप लगाया था और उस केस में भी विश्वविद्यालय प्रशासन ने लापरवाही बरती, जिससे मामला भारत-नेपाल के बीच कूटनीतिक स्तर तक पहुंच गया था।
बढ़ते मामले: ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण मांझी ने मार्च में विधानसभा में बताया था कि 2020 से फरवरी 2025 के दौरान पूरे राज्य के विभिन्न स्कूल-कॉलेजों में 72 स्टूडेंट्स खुदकुशी कर चुके हैं। इनमें से ज्यादातर के पीछे वजह थी - मेंटल प्रेशर, उत्पीड़न, पढ़ाई का दबाव, घरेलू परेशानियां, डिप्रेशन वगैरह।
औपचारिकता न हो: UGC की गाइडलाइंस के मुताबिक, हर शैक्षणिक संस्थान में सेक्सुअल हैरेसमेंट की जांच के लिए कमिटी होनी चाहिए। हालांकि यह सबसे शुरुआती जरूरत है। कमिटी तो हो, लेकिन साथ में संवेदनशीलता भी चाहिए - जो स्टूडेंट्स के साथ संवाद और तय समय सीमा के भीतर जांच करे। जांच में दोषी पाए जाने पर उस शख्स को सजा भी मिलनी चाहिए। तभी ऐसे मामलों में इंसाफ हो पाएगा।
सुनवाई नहीं: बीएड स्टूडेंट ने अपने हेड ऑफ डिपार्टमेंट की शिकायत प्रिंसिपल से की थी। अब यह तथ्य सामने है कि खुद को आग लगाने से कुछ दिनों पहले भी उसने एक्स (पहले ट्विटर) पर सार्वजनिक रूप से अपनी शिकायत रखते हुए चेताया था कि अगर कार्रवाई नहीं हुई, तो वह जान दे देगी। कॉलेज की इंटरनल कंप्लेंट कमिटी से लेकर प्रिंसिपल तक, वह जहां तक पहुंच सकती थी, गई, लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हुई।
यह कैसी इमेज: आरोप है कि प्रिंसिपल ने पीड़िता पर शिकायत वापस लेने का दबाव बनाया, क्योंकि उन्हें कॉलेज की ‘इमेज’ खराब होने की चिंता थी। इस मामले में एक बड़ी भूमिका इस कथित ‘इमेज’ की है, जिसे बचाने के चक्कर में अक्सर अपराध को छिपाया जाता है। लेकिन क्या किसी शैक्षणिक संस्थान की छवि एक छात्रा के जीवन से बढ़कर हो सकती है और क्या अपराध की शिकायत पर कार्रवाई करने से इमेज दागदार होती है?
बार-बार लापरवाही: ओडिशा का नाम पिछले कुछ महीनों में इस तरह की घटनाओं में लगातार आया है। इस साल फरवरी में भुवनेश्वर के कलिंगा इंस्टिट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल टेक्नॉलजी (KIIT) में बीटेक थर्ड ईयर की एक नेपाली स्टूडेंट ने खुदकुशी कर ली थी। वहां भी पीड़िता ने एक छात्र पर प्रताड़ित करने का आरोप लगाया था और उस केस में भी विश्वविद्यालय प्रशासन ने लापरवाही बरती, जिससे मामला भारत-नेपाल के बीच कूटनीतिक स्तर तक पहुंच गया था।
बढ़ते मामले: ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण मांझी ने मार्च में विधानसभा में बताया था कि 2020 से फरवरी 2025 के दौरान पूरे राज्य के विभिन्न स्कूल-कॉलेजों में 72 स्टूडेंट्स खुदकुशी कर चुके हैं। इनमें से ज्यादातर के पीछे वजह थी - मेंटल प्रेशर, उत्पीड़न, पढ़ाई का दबाव, घरेलू परेशानियां, डिप्रेशन वगैरह।
औपचारिकता न हो: UGC की गाइडलाइंस के मुताबिक, हर शैक्षणिक संस्थान में सेक्सुअल हैरेसमेंट की जांच के लिए कमिटी होनी चाहिए। हालांकि यह सबसे शुरुआती जरूरत है। कमिटी तो हो, लेकिन साथ में संवेदनशीलता भी चाहिए - जो स्टूडेंट्स के साथ संवाद और तय समय सीमा के भीतर जांच करे। जांच में दोषी पाए जाने पर उस शख्स को सजा भी मिलनी चाहिए। तभी ऐसे मामलों में इंसाफ हो पाएगा।
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