समस्तीपुर/नोएडा: 1500 रुपए की मनी ऑर्डर धोखाधड़ी का केस 32 साल चला। इस मामले में रिटायर सब-पोस्टमास्टर को तीन साल की जेल और 10 हजार रुपए जुर्माना लगाया गया। बिहार के समस्तीपुर के रहने वाले एक शख्स ने 12 अक्टूबर 1993 को शिकायत दर्ज कराई थी। उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जिले में नोएडा स्थित एक अदालत ने मनी ऑर्डर धोखाधड़ी के 32 साल पुराने मामले में एक सेवानिवृत्त उप-डाकपाल को एक लोक सेवक द्वारा धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात के जुर्म में तीन साल के कारावास की सजा सुनाई है। अदालत ने दोषी पर 10,000 रुपए का जुर्माना भी लगाया, जिसका भुगतान नहीं करने पर एक वर्ष अतिरिक्त कारावास की सजा काटनी होगी।
कोर्ट ने अपने आदेश में क्या कहा?ये आदेश 31 अक्टूबर को अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (एसीजेएम-1) मयंक त्रिपाठी ने पारित किया, जिन्होंने हापुड़ के पिलखुवा क्षेत्र के निवासी महेंद्र कुमार को तत्कालीन भारतीय दंड संहिता की धारा 409 (लोक सेवक द्वारा आपराधिक विश्वासघात) और 420 (धोखाधड़ी) के तहत दोषी ठहराया। न्यायालय ने राम शंकर पटनायक बनाम ओडिशा राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय के 1988 के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि गबन की गई राशि वापस करने से अपराध समाप्त नहीं हो जाता। आदेश में कहा गया है, 'एक बार जब आपराधिक विश्वासघात का अपराध सिद्ध हो जाता है तो गबन की गई राशि या सौंपी गई संपत्ति की वापसी से अपराध समाप्त नहीं हो जाता। अगर, अपराधी चूक की गई राशि वापस कर देता है तो न्यायालय सजा कम जरूर कर सकता है।'
मनी ऑर्डर से जुड़ा मामला क्या था?अभियोजन पक्ष के अनुसार, ये मामला 12 अक्टूबर 1993 का है जब नोएडा के सेक्टर 15 निवासी अरुण मिस्त्री ने बिहार के समस्तीपुर में अपने पिता मदन महतो को 1,500 रुपये का मनी ऑर्डर भेजा था। उस समय महेंद्र कुमार नोएडा के सेक्टर 19 स्थित एक डाकघर में उप-डाकपाल के पद पर तैनात थे। आरोप लगाया गया कि महेंद्र कुमार ने 75 रुपए कमीशन के साथ 1,500 रुपये की राशि स्वीकार की लेकिन उसे सरकारी खाते में जमा नहीं किया। इसके बजाय उन्होंने अरुण मिस्त्री को एक जाली रसीद जारी कर दी। जब प्राप्तकर्ता को पैसे नहीं मिले तो अरुण मिस्त्री ने 3 जनवरी 1994 को डाकघर के अधीक्षक सुरेश चंद्र के पास शिकायत दर्ज कराई थी।
उप-डाकपाल की होशियारी पड़ी भारीआंतरिक जांच में पता चला कि 1,575 रुपए सरकारी खाते में जमा नहीं किए गए थे और रसीद भी फर्जी थी। इसके बाद अधीक्षक सुरेश चंद्र ने सेक्टर 20 पुलिस थाना में कुमार के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई।
इनपुट- भाषा
कोर्ट ने अपने आदेश में क्या कहा?ये आदेश 31 अक्टूबर को अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (एसीजेएम-1) मयंक त्रिपाठी ने पारित किया, जिन्होंने हापुड़ के पिलखुवा क्षेत्र के निवासी महेंद्र कुमार को तत्कालीन भारतीय दंड संहिता की धारा 409 (लोक सेवक द्वारा आपराधिक विश्वासघात) और 420 (धोखाधड़ी) के तहत दोषी ठहराया। न्यायालय ने राम शंकर पटनायक बनाम ओडिशा राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय के 1988 के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि गबन की गई राशि वापस करने से अपराध समाप्त नहीं हो जाता। आदेश में कहा गया है, 'एक बार जब आपराधिक विश्वासघात का अपराध सिद्ध हो जाता है तो गबन की गई राशि या सौंपी गई संपत्ति की वापसी से अपराध समाप्त नहीं हो जाता। अगर, अपराधी चूक की गई राशि वापस कर देता है तो न्यायालय सजा कम जरूर कर सकता है।'
मनी ऑर्डर से जुड़ा मामला क्या था?अभियोजन पक्ष के अनुसार, ये मामला 12 अक्टूबर 1993 का है जब नोएडा के सेक्टर 15 निवासी अरुण मिस्त्री ने बिहार के समस्तीपुर में अपने पिता मदन महतो को 1,500 रुपये का मनी ऑर्डर भेजा था। उस समय महेंद्र कुमार नोएडा के सेक्टर 19 स्थित एक डाकघर में उप-डाकपाल के पद पर तैनात थे। आरोप लगाया गया कि महेंद्र कुमार ने 75 रुपए कमीशन के साथ 1,500 रुपये की राशि स्वीकार की लेकिन उसे सरकारी खाते में जमा नहीं किया। इसके बजाय उन्होंने अरुण मिस्त्री को एक जाली रसीद जारी कर दी। जब प्राप्तकर्ता को पैसे नहीं मिले तो अरुण मिस्त्री ने 3 जनवरी 1994 को डाकघर के अधीक्षक सुरेश चंद्र के पास शिकायत दर्ज कराई थी।
उप-डाकपाल की होशियारी पड़ी भारीआंतरिक जांच में पता चला कि 1,575 रुपए सरकारी खाते में जमा नहीं किए गए थे और रसीद भी फर्जी थी। इसके बाद अधीक्षक सुरेश चंद्र ने सेक्टर 20 पुलिस थाना में कुमार के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई।
इनपुट- भाषा
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