लेखक: मृत्युंजय राय
नई दिल्ली: शीत युद्ध खत्म होने के बाद अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA के पास बड़ा मिशन नहीं रह गया था। तब नशीली दवाओं के खिलाफ जंग में उसने सहयोगी की भूमिका निभाई। फिर 9/11 हमलों के बाद वह आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में शामिल हो गई। तब अफगानिस्तान में CIA के एजेंट्स ओसामा बिन लादेन की खोज में जुट गए।
अमेरिकी खुफिया एजेंसी पर टिम ने पहले ‘Legacy of Ashes’ नाम की किताब लिखी थी। उसमें उन्होंने दावा किया था कि CIA के एक के बाद एक जो भी डायरेक्टर आए, उन्होंने एजेंसी को पहले की तुलना में बदतर हालत में छोड़ा। टिम ने ‘The Mission’ में यही बात दोहराई है।
सार्वजनिक कर दी थी एजेंट की पहचानइसकी सबसे बड़ी मिसाल इराक है। अमेरिका ने इराक पर हमला करने के लिए यह झूठा दावा किया कि वहां के शासक सद्दाम हुसैन के पास जनसंहार के हथियार हैं। टिम बताते हैं कि बुश सरकार इराक पर हमला करने को लेकर इस कदर जिद पर अड़ी थी कि सरकार के सलाहकार स्कूटर लिबी ने एक CIA एजेंट की पहचान सार्वजनिक कर दी।
अरब स्प्रिंग के दौरान नाकामी का जिक्रटिम के मुताबिक, खुफिया एजेंसी की दूसरी कमजोरी उसका अहंकार रही है। किताब में वह कई ऐसे वाकयों का जिक्र करते हैं, जहां अमेरिकी वर्चस्व की गलतफहमी एजेंसी पर भारी पड़ी। इस सिलसिले में वह चीन का जिक्र करते हैं, जहां की खुफिया एजेंसी ने CIA के कई एसेट्स (जो एजेंसी के लिए काम करते थे) का पता लगाया और उनकी हत्या कर दी। टिम अरब स्प्रिंग के दौरान भी अमेरिकी खुफिया एजेंसी की नाकामी का जिक्र करते हैं क्योंकि तब वह तानाशाहों के शासन वाले देशों के उम्रदराज जासूसों से मिली सूचनाओं के भरोसे थी, जो वहां की सरकार के भविष्य में बेदखल होने तक का अंदाजा नहीं लगा सके।
ट्रंप के करीबी थे रूस के संपर्क में!टिम ने ट्रंप के पहले कार्यकाल की कड़ी आलोचना की है। वह लिखते हैं कि ट्रंप के चुनाव प्रचार अभियान से जुड़े लोग तब रूस के खुफिया अधिकारियों के संपर्क में थे। राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने CIA को अपने सामने झुकने के लिए मजबूर करने और अपने ऊटपटांग आइडियाज पर एजेंसी के एजेंट्स से मुहर लगवाने की कोशिश की।
अमेरिका रुका, इजरायल टूट पड़ाटिम यह भी लिखते हैं कि 2007 में CIA को इसके सबूत मिले कि सीरिया परमाणु बम बनाने की राह पर है। इसके बाद बुश प्रशासन में इस बात लेकर बहस शुरू हो गई कि क्या सीरिया को परमाणु बम बनाने से रोकने के लिए अमेरिका को उस पर हमला कर देना चाहिए। टिम यहां इस बात की ओर ध्यान दिलाना चाहते हैं कि अमेरिका उस मुल्क पर भी हमला करने को तैयार था, जिसके साथ उसका युद्ध नहीं चल रहा था। तब बुश के करीबी सलाहकारों ने इसका विरोध किया। खैर, अमेरिका तो रुक गया, लेकिन इस्राइल ने सीरिया पर बाखुशी हमला किया।
बिना तथ्य के ईरान पर किया हमला
अमेरिका उस वक्त भले ही रुक गया हो, लेकिन हाल में उसने ईरान पर इसी बुनियाद पर हमला किया। अमेरिका ने यह हमला इस तथ्य के बावजूद किया कि ईरान परमाणु बम नहीं बना रहा था। पश्चिमी देशों की खुफिया एजेंसियों की यही राय थी। खैर, माना यह जाता है कि ट्रंप के दबाव में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के हथियार डालने की वजह से ही यह हमला हुआ।
नई दिल्ली: शीत युद्ध खत्म होने के बाद अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA के पास बड़ा मिशन नहीं रह गया था। तब नशीली दवाओं के खिलाफ जंग में उसने सहयोगी की भूमिका निभाई। फिर 9/11 हमलों के बाद वह आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में शामिल हो गई। तब अफगानिस्तान में CIA के एजेंट्स ओसामा बिन लादेन की खोज में जुट गए।
अमेरिकी खुफिया एजेंसी पर टिम ने पहले ‘Legacy of Ashes’ नाम की किताब लिखी थी। उसमें उन्होंने दावा किया था कि CIA के एक के बाद एक जो भी डायरेक्टर आए, उन्होंने एजेंसी को पहले की तुलना में बदतर हालत में छोड़ा। टिम ने ‘The Mission’ में यही बात दोहराई है।
सार्वजनिक कर दी थी एजेंट की पहचानइसकी सबसे बड़ी मिसाल इराक है। अमेरिका ने इराक पर हमला करने के लिए यह झूठा दावा किया कि वहां के शासक सद्दाम हुसैन के पास जनसंहार के हथियार हैं। टिम बताते हैं कि बुश सरकार इराक पर हमला करने को लेकर इस कदर जिद पर अड़ी थी कि सरकार के सलाहकार स्कूटर लिबी ने एक CIA एजेंट की पहचान सार्वजनिक कर दी।
अरब स्प्रिंग के दौरान नाकामी का जिक्रटिम के मुताबिक, खुफिया एजेंसी की दूसरी कमजोरी उसका अहंकार रही है। किताब में वह कई ऐसे वाकयों का जिक्र करते हैं, जहां अमेरिकी वर्चस्व की गलतफहमी एजेंसी पर भारी पड़ी। इस सिलसिले में वह चीन का जिक्र करते हैं, जहां की खुफिया एजेंसी ने CIA के कई एसेट्स (जो एजेंसी के लिए काम करते थे) का पता लगाया और उनकी हत्या कर दी। टिम अरब स्प्रिंग के दौरान भी अमेरिकी खुफिया एजेंसी की नाकामी का जिक्र करते हैं क्योंकि तब वह तानाशाहों के शासन वाले देशों के उम्रदराज जासूसों से मिली सूचनाओं के भरोसे थी, जो वहां की सरकार के भविष्य में बेदखल होने तक का अंदाजा नहीं लगा सके।
ट्रंप के करीबी थे रूस के संपर्क में!टिम ने ट्रंप के पहले कार्यकाल की कड़ी आलोचना की है। वह लिखते हैं कि ट्रंप के चुनाव प्रचार अभियान से जुड़े लोग तब रूस के खुफिया अधिकारियों के संपर्क में थे। राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने CIA को अपने सामने झुकने के लिए मजबूर करने और अपने ऊटपटांग आइडियाज पर एजेंसी के एजेंट्स से मुहर लगवाने की कोशिश की।
अमेरिका रुका, इजरायल टूट पड़ाटिम यह भी लिखते हैं कि 2007 में CIA को इसके सबूत मिले कि सीरिया परमाणु बम बनाने की राह पर है। इसके बाद बुश प्रशासन में इस बात लेकर बहस शुरू हो गई कि क्या सीरिया को परमाणु बम बनाने से रोकने के लिए अमेरिका को उस पर हमला कर देना चाहिए। टिम यहां इस बात की ओर ध्यान दिलाना चाहते हैं कि अमेरिका उस मुल्क पर भी हमला करने को तैयार था, जिसके साथ उसका युद्ध नहीं चल रहा था। तब बुश के करीबी सलाहकारों ने इसका विरोध किया। खैर, अमेरिका तो रुक गया, लेकिन इस्राइल ने सीरिया पर बाखुशी हमला किया।
बिना तथ्य के ईरान पर किया हमला
अमेरिका उस वक्त भले ही रुक गया हो, लेकिन हाल में उसने ईरान पर इसी बुनियाद पर हमला किया। अमेरिका ने यह हमला इस तथ्य के बावजूद किया कि ईरान परमाणु बम नहीं बना रहा था। पश्चिमी देशों की खुफिया एजेंसियों की यही राय थी। खैर, माना यह जाता है कि ट्रंप के दबाव में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के हथियार डालने की वजह से ही यह हमला हुआ।
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