पटना: 30 जुलाई 1997 को लालू यादव चारा घोटाला में जेल चले गये थे। राबड़ी देवी एक सामान्य गृहिणी से अचानक मुख्यमंत्री बन गयी थीं। राजनीतिक और प्रशासनिक अनुभव नहीं होने के कारण राबड़ी देवी के लिए सीएम के रूप में कार्य करना बहुत मुश्किल था। उस समय लालू प्रसाद के दो अति विश्वस्त IAS अफसर राबड़ी देवी की मदद के लिए हर कदम पर मौजूद थे। ये थे महावीर प्रसाद और मुकुंद प्रसाद। महावीर प्रसाद मुख्यमंत्री कार्यालय में विशेष कार्य पदाधिकारी थे और मुकुंद प्रसाद मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के प्रमुख सचिव थे।
लालू की एक फोन कॉल
लालू यादव को जेल ( गेस्ट हाउस कैंप जेल) गये दो तीन हफ्ते ही बीते थे कि उन्होंने मुख्यमंत्री राबड़ी देवी को संदेश भिजवाया, किसी भी फाइल को महावीर बाबू और मुकुंद बाबू से पूछे बिना साइन मत करना। उस समय एसके सक्सेना डीजीपी थे। तब यही धारणा थी कि सरकार दरअसल दो ‘प्रसाद’ और एक सक्सेना की तिकड़ी ही चला रही है। मुख्यमंत्री राबड़ी देवी की कमजोर शासकीय क्षमता पर सवाल उठने लगे थे। उस समय भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी (अब दिवंगत) ने कहा था, अगर मुख्यमंत्री राबड़ी देवी अपने 74 मंत्रियों के नाम और उनके विभाग बता दें तो मैं राजनीति छोड़ दूंगा।
डीजीपी को तीसरा सेवा विस्तार
लालू यादव पर यह आरोप लगने लगा कि वे जेल से ही बिहार सरकार चला रहे हैं। यह आरोप तब पुख्ता हो गया जब लालू यादव ने जेल से ही डीजीपी एसके सक्सेना को तीसरा सेवा विस्तार दिला दिया। जब यह प्रस्ताव केन्द्रीय गृह मंत्रालय को भेजा गया तो तत्कालीन होम मिनिस्टर इंद्रजीत गुप्त नाखुश हो गये। उन्होंने सक्सेना के तीसरे सेवा विस्तार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। तब लालू यादव ने प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल के पास संदेश भिजवाया कि वे इस मामले में कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी की मदद लें और सक्सेना की फाइल को मंजूरी दिलाएं। इस तरह होम मिनिस्टर के नहीं चाहने के बावजूद सक्सेना को सेवा विस्तार मिल गया। गठबंधन सरकारों को वैसे भी इन राजनीतिक मजबूरियों से गुजरना पड़ता है।
तीन मंत्रियों को बुला कर फटकार लगायी
लालू यादव के विश्वस्त नौकरशाह उनके पास पल-पल की खबरें पहुंचा रहे थे कि कौन मंत्री क्या कर रहा है। राबड़ी सरकार के कुछ मंत्री यह समझ कर अपने मन से काम करने लगे कि अभी तो लालू यादव जेल में हैं, उन्हें कोई कुछ नहीं बोलेगा। उनके कुछ फैसले मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के निर्देशों के अनुरूप नहीं थे। लेकिन मनमानी करने वाले मंत्रियों का भ्रम जल्द ही टूट गया। कहा जाता है कि लालू यादव ने तत्कालीन ऊर्जा मंत्री ब्रज बिहारी प्रसाद, श्रम मंत्री रामदास राय और भवन निर्माण मंत्री लालबाबू प्रसाद को कैंप जेल में तलब किया। ये मंत्री आये तो लालू यादव ने इन्हें ‘अपने तरीके’ से समझाया। कहा- 'मुझे अभी भी जनता का समर्थन हासिल है, क्या समझते हो मेरा प्रभाव खत्म हो गया ? ऐसा सोच रहे हो तो बहुत बड़ी गलती कर रहे हो।' तब इन तीन मंत्रियों ने फिर ऐसा नहीं करने का वचन देकर माफी मांग मांग ली थी।
जेल में लालू से क्यों मिले थे कांशीराम ?
लालू यादव जब पटना के बीएमपी गेस्ट हाउस कैंप जेल में थे तब उनसे मिलने के लिए बसपा प्रमुख कांशीराम भी आये थे। कांशीराम का जेल में बंद लालू यादव से मिलने आना, कोई सामान्य बात नहीं थी। इसमें भी एक बड़ा राजनीतिक भेद था। जेल जाने के बाद लालू यादव को इस बात की चिंता सताने लगी कि अब राजद को कैसे मजबूत और एकजुट रखा जाया। वे चाहते थे कि दलित वोटर रामविलास पासवान से छिटक कर उनकी तरफ आ जाएं। इसलिए वे कांशीराम की मदद लेना चाहते थे। वे सोचते थे कि अगर कांशीराम बिहार में अपना प्रभाव कायम कर लेंगे तो रामविलास पासवान बेअसर हो जाएंगे।
साधु यादव का परिवहन आयुक्त से विवाद
1966 बैच के IAS अधिकारी रहे मुकुंद प्रसाद लालू यादव के बेहद करीब थे। 2001 की बात है। राबड़ी देवी मुख्यमंत्री थीं। मुकुंद प्रसाद मुख्य सचिव थे। 27 जनवरी को राबड़ी देवी के भाई और तत्कालीन विधायक साधु यादव का तत्कालीन परिवहन आयुक्त एन के सिन्हा से एक विवाद हो गया था। इस घटना के विरोध में बिहार के IAS अधिकारियों ने काला बिल्ला पहन कर शहीद स्मारक से राजभवन तक एक विरोध मार्च निकाला था। तब सरकार ने बदले की भावना से काम लिया। पुलिस ने प्रदर्शनकारी IAS अधिकारियों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कर लिया। तब बिहार IAS ऑफिसर्स एसोसिएशन के तत्कालीन अध्यक्ष अफजल अमानुल्ला की मुख्य सचिव मुकुंद प्रसाद से जोरदार बहस हुई। उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज किये जाने का पुरजोर विरोध किया। उन्होंने और बड़े आंदोलन की धमकी दी, तब जाकर ये प्राथमिकी वापस ली गयी थी।
रिटायरमेंट के बाद मुकुंद प्रसाद को प्रधान सचिव बनाया
दरअसल आरोप लगा था कि साधु यादव ने अपने हथियारबंद समर्थकों के साथ परिवहन आयुक्त के चैम्बर में जबरन घुस कर एक कर्मचारी का बलपूर्वक तबादला करा लिया था। कथित रूप से परिवहन आयुक्त के साथ मारपीट भी की गयी थी। (23 साल बाद साधु यादव को इस मामले में जेल जाना पड़ा था) मुख्य सचिव मुकुंद प्रसाद इस बात से डर गये कि अगर IAS एसोसिएशन ने मामले को और तूल दिया तो राबड़ी सरकार की छवि खराब हो जाएगी, क्योंकि आरोप मुख्यमंत्री के भाई पर लगा है। मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के लिए मुकुंद प्रसाद की सेवा एक तरह से परम आवश्यक हो गयी थी। 2002 में जब मुकुंद प्रसाद सरकारी सेवा से रिटायर हो गये तो राबड़ी देवी ने उन्हें अपना प्रधान सचिव नियुक्त कर लिया था। एक रिटायर अधिकारी को प्रधान सचिव नियुक्त किये जाने पर तब विवाद भी हुआ था।
लालू की एक फोन कॉल
लालू यादव को जेल ( गेस्ट हाउस कैंप जेल) गये दो तीन हफ्ते ही बीते थे कि उन्होंने मुख्यमंत्री राबड़ी देवी को संदेश भिजवाया, किसी भी फाइल को महावीर बाबू और मुकुंद बाबू से पूछे बिना साइन मत करना। उस समय एसके सक्सेना डीजीपी थे। तब यही धारणा थी कि सरकार दरअसल दो ‘प्रसाद’ और एक सक्सेना की तिकड़ी ही चला रही है। मुख्यमंत्री राबड़ी देवी की कमजोर शासकीय क्षमता पर सवाल उठने लगे थे। उस समय भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी (अब दिवंगत) ने कहा था, अगर मुख्यमंत्री राबड़ी देवी अपने 74 मंत्रियों के नाम और उनके विभाग बता दें तो मैं राजनीति छोड़ दूंगा।
डीजीपी को तीसरा सेवा विस्तार
लालू यादव पर यह आरोप लगने लगा कि वे जेल से ही बिहार सरकार चला रहे हैं। यह आरोप तब पुख्ता हो गया जब लालू यादव ने जेल से ही डीजीपी एसके सक्सेना को तीसरा सेवा विस्तार दिला दिया। जब यह प्रस्ताव केन्द्रीय गृह मंत्रालय को भेजा गया तो तत्कालीन होम मिनिस्टर इंद्रजीत गुप्त नाखुश हो गये। उन्होंने सक्सेना के तीसरे सेवा विस्तार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। तब लालू यादव ने प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल के पास संदेश भिजवाया कि वे इस मामले में कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी की मदद लें और सक्सेना की फाइल को मंजूरी दिलाएं। इस तरह होम मिनिस्टर के नहीं चाहने के बावजूद सक्सेना को सेवा विस्तार मिल गया। गठबंधन सरकारों को वैसे भी इन राजनीतिक मजबूरियों से गुजरना पड़ता है।
तीन मंत्रियों को बुला कर फटकार लगायी
लालू यादव के विश्वस्त नौकरशाह उनके पास पल-पल की खबरें पहुंचा रहे थे कि कौन मंत्री क्या कर रहा है। राबड़ी सरकार के कुछ मंत्री यह समझ कर अपने मन से काम करने लगे कि अभी तो लालू यादव जेल में हैं, उन्हें कोई कुछ नहीं बोलेगा। उनके कुछ फैसले मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के निर्देशों के अनुरूप नहीं थे। लेकिन मनमानी करने वाले मंत्रियों का भ्रम जल्द ही टूट गया। कहा जाता है कि लालू यादव ने तत्कालीन ऊर्जा मंत्री ब्रज बिहारी प्रसाद, श्रम मंत्री रामदास राय और भवन निर्माण मंत्री लालबाबू प्रसाद को कैंप जेल में तलब किया। ये मंत्री आये तो लालू यादव ने इन्हें ‘अपने तरीके’ से समझाया। कहा- 'मुझे अभी भी जनता का समर्थन हासिल है, क्या समझते हो मेरा प्रभाव खत्म हो गया ? ऐसा सोच रहे हो तो बहुत बड़ी गलती कर रहे हो।' तब इन तीन मंत्रियों ने फिर ऐसा नहीं करने का वचन देकर माफी मांग मांग ली थी।
जेल में लालू से क्यों मिले थे कांशीराम ?
लालू यादव जब पटना के बीएमपी गेस्ट हाउस कैंप जेल में थे तब उनसे मिलने के लिए बसपा प्रमुख कांशीराम भी आये थे। कांशीराम का जेल में बंद लालू यादव से मिलने आना, कोई सामान्य बात नहीं थी। इसमें भी एक बड़ा राजनीतिक भेद था। जेल जाने के बाद लालू यादव को इस बात की चिंता सताने लगी कि अब राजद को कैसे मजबूत और एकजुट रखा जाया। वे चाहते थे कि दलित वोटर रामविलास पासवान से छिटक कर उनकी तरफ आ जाएं। इसलिए वे कांशीराम की मदद लेना चाहते थे। वे सोचते थे कि अगर कांशीराम बिहार में अपना प्रभाव कायम कर लेंगे तो रामविलास पासवान बेअसर हो जाएंगे।
साधु यादव का परिवहन आयुक्त से विवाद
1966 बैच के IAS अधिकारी रहे मुकुंद प्रसाद लालू यादव के बेहद करीब थे। 2001 की बात है। राबड़ी देवी मुख्यमंत्री थीं। मुकुंद प्रसाद मुख्य सचिव थे। 27 जनवरी को राबड़ी देवी के भाई और तत्कालीन विधायक साधु यादव का तत्कालीन परिवहन आयुक्त एन के सिन्हा से एक विवाद हो गया था। इस घटना के विरोध में बिहार के IAS अधिकारियों ने काला बिल्ला पहन कर शहीद स्मारक से राजभवन तक एक विरोध मार्च निकाला था। तब सरकार ने बदले की भावना से काम लिया। पुलिस ने प्रदर्शनकारी IAS अधिकारियों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कर लिया। तब बिहार IAS ऑफिसर्स एसोसिएशन के तत्कालीन अध्यक्ष अफजल अमानुल्ला की मुख्य सचिव मुकुंद प्रसाद से जोरदार बहस हुई। उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज किये जाने का पुरजोर विरोध किया। उन्होंने और बड़े आंदोलन की धमकी दी, तब जाकर ये प्राथमिकी वापस ली गयी थी।
रिटायरमेंट के बाद मुकुंद प्रसाद को प्रधान सचिव बनाया
दरअसल आरोप लगा था कि साधु यादव ने अपने हथियारबंद समर्थकों के साथ परिवहन आयुक्त के चैम्बर में जबरन घुस कर एक कर्मचारी का बलपूर्वक तबादला करा लिया था। कथित रूप से परिवहन आयुक्त के साथ मारपीट भी की गयी थी। (23 साल बाद साधु यादव को इस मामले में जेल जाना पड़ा था) मुख्य सचिव मुकुंद प्रसाद इस बात से डर गये कि अगर IAS एसोसिएशन ने मामले को और तूल दिया तो राबड़ी सरकार की छवि खराब हो जाएगी, क्योंकि आरोप मुख्यमंत्री के भाई पर लगा है। मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के लिए मुकुंद प्रसाद की सेवा एक तरह से परम आवश्यक हो गयी थी। 2002 में जब मुकुंद प्रसाद सरकारी सेवा से रिटायर हो गये तो राबड़ी देवी ने उन्हें अपना प्रधान सचिव नियुक्त कर लिया था। एक रिटायर अधिकारी को प्रधान सचिव नियुक्त किये जाने पर तब विवाद भी हुआ था।
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