पटनाः राजद ने कांग्रेस को डरा दिया। डरी हुई कांग्रेस झुक गयी। लगातार ना-नुकुर करने के बाद कांग्रेस ने तेजस्वी यादव को सीएम फेस मान लिया। प्रेस कांफ्रेंस में बेपानी हुई कांग्रेस का प्रतिनिधित्व चूंकि राहुल गांधी नहीं कर सकते थे, इसलिए बलि का बकरा बना कर अशोक गहलोत को पटना भेजा गया। बुजुर्ग अशोक गहलोत पटना आये। तेजस्वी के सामने सार्वजनिक रूप से आत्मसमर्पण किया। राहुल गांधी के लिए अशोक गहलोत कुर्बान हो गये।
कांग्रेस का टूटा हुआ आत्मविश्वास मंच पर भी दिखायी पड़ा। तय व्यवस्था के अनुसार कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरू को अशोक गहलोत के बगल में बैठना था। लेकिन अंतिम क्षणों में उन्हें बिल्कुल कोने वाली सीट पर बैठा दिया गया। महागठबंधन की प्रेस कांफ्रेंस में सिर्फ तेजस्वी यादव ने ही अपनी पार्टी का चुनाव चिह्न प्रदर्शित किया, किसी अन्य घटक दल ने नहीं।
राहुल गांधी ने गहलोत को बनाया बलि का बकरा वोटर अधिकार यात्रा को एक नयी क्रांति मानने वाले राहुल गांधी महागठबंधन की प्रेस कांफ्रेंस में क्यों नहीं आये ? कांग्रेस उन्हें बिहार के ‘न्याय योद्धा’ के रूप में पेश कर रही थी। लेकिन वे तो ऐन मौके पर पीछे हट गये। क्या राजद ने राहुल गांधी को डरा दिया ? क्या राजद ने कांग्रेस को कोई धमकी दी ? 12 अक्टूबर को लालू यादव, राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव दिल्ली गये थे। माना जा रहा था कि सीट शेयरिंग के मुद्दे पर लालू यादव और तेजस्वी की राहुल गांधी के साथ बैठक होगी। लेकिन राहुल गांधी ने लालू-तेजस्वी से मुलाकात नहीं की। उस समय राहुल गांधी सीट बंटवारे को लेकर राजद के सामने झुकना नहीं चाहते थे। यहां तक कि वे तेजस्वी को सीएम फेस मानने के लिए भी रजामंद नहीं थे।आखिर 10 दिन में ऐसा क्या हो गया कि कांग्रेस, तेजस्वी को सीएम फेस मानने के लिए मजबूर हो गई?
राह में रोड़ा बन रहे अल्लावरु को तेजस्वी ने किया किनारे
लालू यादव जब कांग्रेस से बात किये बिना पटना लौटे तो उन्होंने राजद प्रत्याशियों को सिंबल बांटना शुरू कर दिया था। यह कांग्रेस पर दबाव बनाने की एक सोची समझी रणनीति थी। केवल दिखावे के लिए सिंबल वापस लिया गया था। तब तक तेजस्वी और बिहार कांग्रेस के प्रभारी कृष्णा अल्लावरु के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया था। दोनों के बीच बातचीत बंद हो गयी थी। तेजस्वी का मानना था कि कृष्णा अल्लावरु के कारण ही राहुल गांधी उन्हें सीएम फेस घोषित नहीं कर रहे हैं। तब तेजस्वी ने अल्लावरु से निजी खुन्नस पाल ली। तब राजद ने दिल्ली के आलाकमान के पास दो शर्तें रखीं। पहली शर्त, जब तक तेजस्वी को सीएम पेस घोषित नहीं किया जाता तब तक सीट बंटवारे पर कोई बात नहीं होगी। चाहे इसका जो परिणाम निकले। दूसरी शर्त, राजद से होने वाली वार्ता में कृष्णा अल्लावरु किसी हाल में शामिल नहीं होंगे। उन्हें बातचीत से दूर रखना होगा। उनकी जगह किसी वरिष्ठ नेता को वार्ता की जिम्मेदारी देनी होगी।
शर्त- तेजस्वी की सीएम फेस नहीं माना तो महागठबंधन टूटेगा
इस धमकी से कांग्रेस दबाव में आ गयी। उसने चुनाव पर्यवेक्षक अशोक गहलोत को इसकी जिम्मेदारी दी। अशोक गहलोत जब लालू यादव से मिलने राबड़ी आवास पहुंचे तब कृष्णा अल्लावरु को इससे दूर रखा गया। लालू यादव ने बिना किसी लाग लपेट के अशोक गहलोत के सामने यह शर्त रखी कि तेजस्वी को सीएम फेस घोषित करने के बाद ही कोई बात होगी। अगर यह शर्त नहीं मानी गयी तो गठबंधन टूट भी सकता है। इस शर्त के आगे कांग्रेस लाचार हो गयी। महागठबंधन बचाने के लिए कांग्रेस ने लालू यादव की यह शर्त मान ली। कांग्रेस में महागठबंधन से अलग होने की हिम्मत नहीं थी क्यों कि वह अकेले चुनाव लड़ने का नतीजा जानती है।
राष्ट्रीय हित के लिए प्रदेश हित की कुर्बानी
लालू यादव अगर गठबंधन तोड़ते तो कांग्रेस की फजीहत हो जाती। उसे विपक्षी एकता का खलनायक माना जाने लगता। पिछले साल जनवरी में नीतीश कुमार ने कांग्रेस की हठधर्मिता और स्वार्थी रवैये के कारण ही इंडिया एलायंस को छोड़ा था। तब आरोप लगा था कि कांग्रेस अपने हित के लिए क्षेत्रीय दलों को कमजोर करना चाहती है। अगर लालू यादव भी कांग्रेस से गठबंधन तोड़ देते तो कांग्रेस के पास कोई जवाब नहीं होता। राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस ही विपक्ष का नेतृत्व करे, इसका पुरजोर समर्थन सिर्फ लालू यादव ही करते हैं। इंडिया अलाएंस के अन्य घटक दल लालू यादव की तरह विश्वासी नहीं हैं। कांग्रेस, लालू यादव को खोना नहीं चाहती। इसलिए कांग्रेस ने राष्ट्रीय राजनीति के हित को ध्यान में रख कर प्रदेश हित को कुर्बान कर दिया।
कांग्रेस का टूटा हुआ आत्मविश्वास मंच पर भी दिखायी पड़ा। तय व्यवस्था के अनुसार कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरू को अशोक गहलोत के बगल में बैठना था। लेकिन अंतिम क्षणों में उन्हें बिल्कुल कोने वाली सीट पर बैठा दिया गया। महागठबंधन की प्रेस कांफ्रेंस में सिर्फ तेजस्वी यादव ने ही अपनी पार्टी का चुनाव चिह्न प्रदर्शित किया, किसी अन्य घटक दल ने नहीं।
राहुल गांधी ने गहलोत को बनाया बलि का बकरा वोटर अधिकार यात्रा को एक नयी क्रांति मानने वाले राहुल गांधी महागठबंधन की प्रेस कांफ्रेंस में क्यों नहीं आये ? कांग्रेस उन्हें बिहार के ‘न्याय योद्धा’ के रूप में पेश कर रही थी। लेकिन वे तो ऐन मौके पर पीछे हट गये। क्या राजद ने राहुल गांधी को डरा दिया ? क्या राजद ने कांग्रेस को कोई धमकी दी ? 12 अक्टूबर को लालू यादव, राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव दिल्ली गये थे। माना जा रहा था कि सीट शेयरिंग के मुद्दे पर लालू यादव और तेजस्वी की राहुल गांधी के साथ बैठक होगी। लेकिन राहुल गांधी ने लालू-तेजस्वी से मुलाकात नहीं की। उस समय राहुल गांधी सीट बंटवारे को लेकर राजद के सामने झुकना नहीं चाहते थे। यहां तक कि वे तेजस्वी को सीएम फेस मानने के लिए भी रजामंद नहीं थे।आखिर 10 दिन में ऐसा क्या हो गया कि कांग्रेस, तेजस्वी को सीएम फेस मानने के लिए मजबूर हो गई?
राह में रोड़ा बन रहे अल्लावरु को तेजस्वी ने किया किनारे
लालू यादव जब कांग्रेस से बात किये बिना पटना लौटे तो उन्होंने राजद प्रत्याशियों को सिंबल बांटना शुरू कर दिया था। यह कांग्रेस पर दबाव बनाने की एक सोची समझी रणनीति थी। केवल दिखावे के लिए सिंबल वापस लिया गया था। तब तक तेजस्वी और बिहार कांग्रेस के प्रभारी कृष्णा अल्लावरु के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया था। दोनों के बीच बातचीत बंद हो गयी थी। तेजस्वी का मानना था कि कृष्णा अल्लावरु के कारण ही राहुल गांधी उन्हें सीएम फेस घोषित नहीं कर रहे हैं। तब तेजस्वी ने अल्लावरु से निजी खुन्नस पाल ली। तब राजद ने दिल्ली के आलाकमान के पास दो शर्तें रखीं। पहली शर्त, जब तक तेजस्वी को सीएम पेस घोषित नहीं किया जाता तब तक सीट बंटवारे पर कोई बात नहीं होगी। चाहे इसका जो परिणाम निकले। दूसरी शर्त, राजद से होने वाली वार्ता में कृष्णा अल्लावरु किसी हाल में शामिल नहीं होंगे। उन्हें बातचीत से दूर रखना होगा। उनकी जगह किसी वरिष्ठ नेता को वार्ता की जिम्मेदारी देनी होगी।
शर्त- तेजस्वी की सीएम फेस नहीं माना तो महागठबंधन टूटेगा
इस धमकी से कांग्रेस दबाव में आ गयी। उसने चुनाव पर्यवेक्षक अशोक गहलोत को इसकी जिम्मेदारी दी। अशोक गहलोत जब लालू यादव से मिलने राबड़ी आवास पहुंचे तब कृष्णा अल्लावरु को इससे दूर रखा गया। लालू यादव ने बिना किसी लाग लपेट के अशोक गहलोत के सामने यह शर्त रखी कि तेजस्वी को सीएम फेस घोषित करने के बाद ही कोई बात होगी। अगर यह शर्त नहीं मानी गयी तो गठबंधन टूट भी सकता है। इस शर्त के आगे कांग्रेस लाचार हो गयी। महागठबंधन बचाने के लिए कांग्रेस ने लालू यादव की यह शर्त मान ली। कांग्रेस में महागठबंधन से अलग होने की हिम्मत नहीं थी क्यों कि वह अकेले चुनाव लड़ने का नतीजा जानती है।
राष्ट्रीय हित के लिए प्रदेश हित की कुर्बानी
लालू यादव अगर गठबंधन तोड़ते तो कांग्रेस की फजीहत हो जाती। उसे विपक्षी एकता का खलनायक माना जाने लगता। पिछले साल जनवरी में नीतीश कुमार ने कांग्रेस की हठधर्मिता और स्वार्थी रवैये के कारण ही इंडिया एलायंस को छोड़ा था। तब आरोप लगा था कि कांग्रेस अपने हित के लिए क्षेत्रीय दलों को कमजोर करना चाहती है। अगर लालू यादव भी कांग्रेस से गठबंधन तोड़ देते तो कांग्रेस के पास कोई जवाब नहीं होता। राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस ही विपक्ष का नेतृत्व करे, इसका पुरजोर समर्थन सिर्फ लालू यादव ही करते हैं। इंडिया अलाएंस के अन्य घटक दल लालू यादव की तरह विश्वासी नहीं हैं। कांग्रेस, लालू यादव को खोना नहीं चाहती। इसलिए कांग्रेस ने राष्ट्रीय राजनीति के हित को ध्यान में रख कर प्रदेश हित को कुर्बान कर दिया।
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