आधुनिक मनोविज्ञान भी स्वीकार करता है कि मनुष्य के अवचेतन मन में अपार उपचारक यानी उपचार करने वाली एवं सृजनात्मक शक्ति छिपी है। यदि इस शक्ति को सही दिशा में जाग्रत किया जाए तो व्यक्ति अपने दुःख, रोग, असफलता और भ्रम से मुक्त होकर अपने जीवन का स्वयं निर्माता बन सकता है।   
   
विश्व के सभी प्रमुख धर्मों का वर्षों तक अध्ययन करने के पश्चात यह निष्कर्ष प्राप्त होता है कि इस सृष्टि में एक अदृश्य, अनंत और विराट चेतना व्याप्त है। यह चेतना किसी एक धार्मिक स्थल तक सीमित न होकर प्रत्येक अणु, हर जीव, हर मनुष्य में समान रूप से उपस्थित है। प्राचीन ऋषियों ने इसी सत्य को “यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे” कहकर अभिव्यक्त किया, अर्थात् जो ब्रह्माण्ड में है, वही मनुष्य के भीतर भी विद्यमान है। यह तथ्य अब प्रमाणित हो चुका है कि प्रत्येक रोग, प्रत्येक चिंता और प्रत्येक असफलता की जड़ मन में ही होती है, जो ग्रह-नक्षत्रों से प्रभावित होती है। जब हम नकारात्मक विचारों और भय को पोषित करते हैं, तो वही हमारी शारीरिक और मानसिक स्थिति पर प्रभाव डालते हैं।
     
किंतु जब हम श्रद्धा, विश्वास और सकारात्मक सोच के साथ अपने अवचेतन मन को निर्देश देते हैं, तो वह हमारे जीवन को नवसृजन की दिशा में प्रवाहित करता है। हम अपने आसपास ऐसे लोगों को देखते हैं जो असंभव प्रतीत होने वाली बीमारियों से भी स्वस्थ हो जाते हैंअथवा गरीबी से उठकर समृद्धि के शिखर तक पहुँच जाते हैं। उनके जीवन में यह परिवर्तन उनके भीतर जाग्रत हुई दैवीय शक्ति केप्रभाव से होता है। यह कल्याणकारी जागृति प्रायः किसी गुरु, साधना, या ईश्वरीय शक्ति के माध्यम से होता है।वास्तव में जब हम किसी भी धर्म, ईश्वर या देवी-देवता में पूर्ण विश्वास रखते हैं, तो हम अपने अवचेतन मन को सक्रिय करते हैं। यही मन उस अनंत चेतना से जुड़कर चमत्कार करता है।
     
  
विश्व के सभी प्रमुख धर्मों का वर्षों तक अध्ययन करने के पश्चात यह निष्कर्ष प्राप्त होता है कि इस सृष्टि में एक अदृश्य, अनंत और विराट चेतना व्याप्त है। यह चेतना किसी एक धार्मिक स्थल तक सीमित न होकर प्रत्येक अणु, हर जीव, हर मनुष्य में समान रूप से उपस्थित है। प्राचीन ऋषियों ने इसी सत्य को “यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे” कहकर अभिव्यक्त किया, अर्थात् जो ब्रह्माण्ड में है, वही मनुष्य के भीतर भी विद्यमान है। यह तथ्य अब प्रमाणित हो चुका है कि प्रत्येक रोग, प्रत्येक चिंता और प्रत्येक असफलता की जड़ मन में ही होती है, जो ग्रह-नक्षत्रों से प्रभावित होती है। जब हम नकारात्मक विचारों और भय को पोषित करते हैं, तो वही हमारी शारीरिक और मानसिक स्थिति पर प्रभाव डालते हैं।
किंतु जब हम श्रद्धा, विश्वास और सकारात्मक सोच के साथ अपने अवचेतन मन को निर्देश देते हैं, तो वह हमारे जीवन को नवसृजन की दिशा में प्रवाहित करता है। हम अपने आसपास ऐसे लोगों को देखते हैं जो असंभव प्रतीत होने वाली बीमारियों से भी स्वस्थ हो जाते हैंअथवा गरीबी से उठकर समृद्धि के शिखर तक पहुँच जाते हैं। उनके जीवन में यह परिवर्तन उनके भीतर जाग्रत हुई दैवीय शक्ति केप्रभाव से होता है। यह कल्याणकारी जागृति प्रायः किसी गुरु, साधना, या ईश्वरीय शक्ति के माध्यम से होता है।वास्तव में जब हम किसी भी धर्म, ईश्वर या देवी-देवता में पूर्ण विश्वास रखते हैं, तो हम अपने अवचेतन मन को सक्रिय करते हैं। यही मन उस अनंत चेतना से जुड़कर चमत्कार करता है।
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