नई दिल्ली : ब्रह्मोस की कहानी 1993 में तब शुरू हुई, जब रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) के तत्कालीन सचिव डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने सुपरसोनिक मिसाइलों पर संयुक्त कार्य की संभावना तलाशने के लिए रूस का दौरा किया। अपनी यात्रा के दौरान उन्हें एक अधूरे सुपरसोनिक इंजन प्रोजेक्ट का पता चला, जिसे सोवियत संघ के पतन के बाद पैसों की कमी के कारण छोड़ दिया गया था। सहयोग की संभावनाओं को पहचानते हुए इस बैठक ने एक ऐतिहासिक रक्षा साझेदारी की नींव रखी। यहीं पर ब्रह्मोस का जन्म हुआ। आज इस ब्रह्मोस के बूते भारत अपने दुश्मनों को पानी पिला रहा है। जैसा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि अब ब्रह्मोस की जद में पाकिस्तान की एक-एक इंच जमीन है तो इसका मतलब यह है कि ब्रह्मोस की मारक क्षमता और दायरा भी बढ़ा है। वेडनेसडे बिग टिकट में ब्रह्मोस के कातिल बनने की कहानी जानते हैं।
डॉ. कलाम ने अधूरे प्रोजेक्ट में भर दी जान
1993 में रूस दौरे के 5 साल बाद 12 फरवरी, 1998 को डॉ. कलाम और रूस के उप रक्षा मंत्री एनवी मिखाइलोव ने ब्रह्मोस एयरोस्पेस बनाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जो डीआरडीओ और रूसी एनपीओएम के बीच एक संयुक्त उद्यम था। इसमें भारत की 50.5% और रूस की 49.5% हिस्सेदारी थी। इस उद्यम की स्थापना दुनिया की एकमात्र सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल के डिजाइन, विकास और बिक्री के लिए की गई थी, जिसमें भारतीय नवाचार और रूसी अनुभव का संयोजन किया गया था। पहला सफल प्रक्षेपण 12 जून, 2001 को ओडिशा के चांदीपुर में हुआ।
करीब 3500 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से बरपाती है कहरकई सफल परीक्षणों के बाद ब्रह्मोस को भारतीय सेना, नौसेना और वायु सेना में शामिल किया गया। यह मैक 2.8 (लगभग 3,430 किमी/घंटा) की गति से उड़ता है। इसकी स्पीड अभी ध्वनि की गति से लगभग तीन गुना है। इसकी सफलता भारत के एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (IGMDP) में निहित है, जिसे 1983 में मिसाइल तकनीक में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए शुरू किया गया था। मूल रूप से भूमि और जहाज से प्रक्षेपण के लिए डिजाइन किए गए ब्रह्मोस को बाद में 2013 में हवाई प्रक्षेपण क्षमता के लिए संशोधित किया गया, जिससे यह सभी प्रमुख प्लेटफार्मों के लिए अनुकूल हो गया। परीक्षण पूरा होने के बाद नौसेना अपने मौजूदा 450 किलोमीटर ब्रह्मोस मिसाइलों को सॉफ्टवेयर अपडेट के माध्यम से 800 किलोमीटर के संस्करण में अपग्रेड कर सकती है।
SU-30MKI के साथ और घातक बन जाती है ब्रह्मोस
डीआरडीओ के पूर्व महानिदेशक एसके मिश्रा के मुताबिक-सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य सुखोई-30एमकेआई लड़ाकू विमान में ब्रह्मोस मिसाइल को एकीकृत करना था। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) की ओर से किए गए इस पुनर्निर्माण पर सुखोई द्वारा ₹1,300 करोड़ की लागत आने का अनुमान लगाया गया था, लेकिन एचएएल ने इसे केवल ₹88 करोड़ में पूरा कर लिया, जिससे भारत की इंजीनियरिंग उत्कृष्टता का प्रदर्शन हुआ। ब्रह्मोस की वैश्विक प्रतिष्ठा तेजी से बढ़ी। 2024 में, भारत ने फिलीपींस को ब्रह्मोस मिसाइलें दीं, जो इस सुपरसोनिक प्रणाली का पहला निर्यात था। इसके बाद 2022 में 375 मिलियन डॉलर (₹33,000 करोड़) का सौदा हुआ, जिसकी दूसरी खेप अप्रैल 2025 में वितरित की गई। एसके मिश्रा ने बताया कि अर्जेंटीना सहित अन्य देशों ने भी गहरी रुचि दिखाई है, जिससे ब्रह्मोस की वैश्विक विश्वसनीयता नजर आती है।
कतर और तुर्की तक के आतंकी नेटवर्क को तबाह किया
यूरेशियन टाइम्स पर छपे एक लेख के अनुसार, पहलगाम नरसंहार के बाद भारत ने 7 मई, 2025 को ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया, जिसका निशाना लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी ठिकानों को तबाह किया गया था। इसे तबाह करने में हमारी ब्रह्मोस मिसाइल ही सबसे आगे थी। 90 के दशक में बने लश्कर और 2000 के दशक में बने जैश-ए-मोहम्मद कश्मीर केंद्रित और वैश्विक नेटवर्क वाले संगठन हैं। कतर स्थित नेटवर्क, जिनका नाम अमेरिकी वित्त मंत्रालय और संयुक्त राष्ट्र ने दिया है, लश्कर को पैसे देते हैं। वहीं, तुर्की के इस्लामी एनजीओ/ट्रांजिट नेटवर्क जैश-ए-मोहम्मद को पाकिस्तान के प्रतिनिधियों से जोड़ते हैं। दोनों नेटवर्क यूरोप के प्रवासी समुदायों में फैल गए हैं। ब्रैडफोर्ड के कट्टरपंथी प्रचारकों से लेकर दोहा और इस्तांबुल के ऑनलाइन भर्ती केंद्रों तक ये उसी कट्टरपंथ को दोहराते हैं, जिसके खिलाफ पश्चिम ने कभी सीरिया और साहेल में लड़ाई लड़ी थी।
भारत के पास अभी ब्रह्मोस के तीन संस्करण
वर्तमान में, भारत के पास ब्रह्मोस के तीन संस्करण हैं—हवा से प्रक्षेपित, जमीन से प्रक्षेपित और पनडुब्बी से प्रक्षेपित। यह मिसाइल दो चरणों में संचालित होती है। उड़ान भरने के लिए एक ठोस-ईंधन बूस्टर, उसके बाद एक रैमजेट इंजन जो इसे मैक 3 की गति तक पहुंचाता है, जिससे यह 15 किमी की ऊंचाई से जमीन से केवल 10 मीटर ऊपर तक उड़ान भर सकती है। मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (एमटीसीआर) के नियमों के तहत मूल रूप से 290 किलोमीटर तक सीमित ब्रह्मोस की मारक क्षमता को 2016 में भारत के एमटीसीआर में शामिल होने के बाद 450 किलोमीटर तक बढ़ा दिया गया था।
सेना के जंगी बेड़े में शामिल होंगे 220 ब्रह्मोस
ब्रह्मोस के मौजूदा टेस्ट का मकसद नया 800 किलोमीटर का संस्करण विकसित करना है, जिसमें एक उन्नत रैमजेट इंजन और बेहतर मार्गदर्शन प्रणालियां होंगी। 2027 तक अपेक्षित नया संस्करण जामिंग के विरुद्ध अधिक सटीकता और लचीलेपन का वादा करता है। सेना और नौसेना पहले उन्नत संस्करण को शामिल करेंगी, उसके बाद हवाई संस्करण को। पिछले साल मार्च में रक्षा मंत्रालय ने भारतीय नौसेना के लिए 220 से ज्यादा ब्रह्मोस मिसाइलें खरीदने के लिए ₹19,519 करोड़ के अपने अब तक के सबसे बड़े सौदे पर हस्ताक्षर किए थे। ऑपरेशन सिंदूर को ट्रेलर बताते हुए, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने घोषणा की कि पाकिस्तान का हर हिस्सा अब ब्रह्मोस की पहुंच में है, जिससे भारत के विरोधियों को एक कड़ा संदेश गया।
डॉ. कलाम ने अधूरे प्रोजेक्ट में भर दी जान
1993 में रूस दौरे के 5 साल बाद 12 फरवरी, 1998 को डॉ. कलाम और रूस के उप रक्षा मंत्री एनवी मिखाइलोव ने ब्रह्मोस एयरोस्पेस बनाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जो डीआरडीओ और रूसी एनपीओएम के बीच एक संयुक्त उद्यम था। इसमें भारत की 50.5% और रूस की 49.5% हिस्सेदारी थी। इस उद्यम की स्थापना दुनिया की एकमात्र सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल के डिजाइन, विकास और बिक्री के लिए की गई थी, जिसमें भारतीय नवाचार और रूसी अनुभव का संयोजन किया गया था। पहला सफल प्रक्षेपण 12 जून, 2001 को ओडिशा के चांदीपुर में हुआ।
करीब 3500 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से बरपाती है कहरकई सफल परीक्षणों के बाद ब्रह्मोस को भारतीय सेना, नौसेना और वायु सेना में शामिल किया गया। यह मैक 2.8 (लगभग 3,430 किमी/घंटा) की गति से उड़ता है। इसकी स्पीड अभी ध्वनि की गति से लगभग तीन गुना है। इसकी सफलता भारत के एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (IGMDP) में निहित है, जिसे 1983 में मिसाइल तकनीक में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए शुरू किया गया था। मूल रूप से भूमि और जहाज से प्रक्षेपण के लिए डिजाइन किए गए ब्रह्मोस को बाद में 2013 में हवाई प्रक्षेपण क्षमता के लिए संशोधित किया गया, जिससे यह सभी प्रमुख प्लेटफार्मों के लिए अनुकूल हो गया। परीक्षण पूरा होने के बाद नौसेना अपने मौजूदा 450 किलोमीटर ब्रह्मोस मिसाइलों को सॉफ्टवेयर अपडेट के माध्यम से 800 किलोमीटर के संस्करण में अपग्रेड कर सकती है।
SU-30MKI के साथ और घातक बन जाती है ब्रह्मोस
डीआरडीओ के पूर्व महानिदेशक एसके मिश्रा के मुताबिक-सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य सुखोई-30एमकेआई लड़ाकू विमान में ब्रह्मोस मिसाइल को एकीकृत करना था। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) की ओर से किए गए इस पुनर्निर्माण पर सुखोई द्वारा ₹1,300 करोड़ की लागत आने का अनुमान लगाया गया था, लेकिन एचएएल ने इसे केवल ₹88 करोड़ में पूरा कर लिया, जिससे भारत की इंजीनियरिंग उत्कृष्टता का प्रदर्शन हुआ। ब्रह्मोस की वैश्विक प्रतिष्ठा तेजी से बढ़ी। 2024 में, भारत ने फिलीपींस को ब्रह्मोस मिसाइलें दीं, जो इस सुपरसोनिक प्रणाली का पहला निर्यात था। इसके बाद 2022 में 375 मिलियन डॉलर (₹33,000 करोड़) का सौदा हुआ, जिसकी दूसरी खेप अप्रैल 2025 में वितरित की गई। एसके मिश्रा ने बताया कि अर्जेंटीना सहित अन्य देशों ने भी गहरी रुचि दिखाई है, जिससे ब्रह्मोस की वैश्विक विश्वसनीयता नजर आती है।
कतर और तुर्की तक के आतंकी नेटवर्क को तबाह किया
यूरेशियन टाइम्स पर छपे एक लेख के अनुसार, पहलगाम नरसंहार के बाद भारत ने 7 मई, 2025 को ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया, जिसका निशाना लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी ठिकानों को तबाह किया गया था। इसे तबाह करने में हमारी ब्रह्मोस मिसाइल ही सबसे आगे थी। 90 के दशक में बने लश्कर और 2000 के दशक में बने जैश-ए-मोहम्मद कश्मीर केंद्रित और वैश्विक नेटवर्क वाले संगठन हैं। कतर स्थित नेटवर्क, जिनका नाम अमेरिकी वित्त मंत्रालय और संयुक्त राष्ट्र ने दिया है, लश्कर को पैसे देते हैं। वहीं, तुर्की के इस्लामी एनजीओ/ट्रांजिट नेटवर्क जैश-ए-मोहम्मद को पाकिस्तान के प्रतिनिधियों से जोड़ते हैं। दोनों नेटवर्क यूरोप के प्रवासी समुदायों में फैल गए हैं। ब्रैडफोर्ड के कट्टरपंथी प्रचारकों से लेकर दोहा और इस्तांबुल के ऑनलाइन भर्ती केंद्रों तक ये उसी कट्टरपंथ को दोहराते हैं, जिसके खिलाफ पश्चिम ने कभी सीरिया और साहेल में लड़ाई लड़ी थी।
भारत के पास अभी ब्रह्मोस के तीन संस्करण
वर्तमान में, भारत के पास ब्रह्मोस के तीन संस्करण हैं—हवा से प्रक्षेपित, जमीन से प्रक्षेपित और पनडुब्बी से प्रक्षेपित। यह मिसाइल दो चरणों में संचालित होती है। उड़ान भरने के लिए एक ठोस-ईंधन बूस्टर, उसके बाद एक रैमजेट इंजन जो इसे मैक 3 की गति तक पहुंचाता है, जिससे यह 15 किमी की ऊंचाई से जमीन से केवल 10 मीटर ऊपर तक उड़ान भर सकती है। मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (एमटीसीआर) के नियमों के तहत मूल रूप से 290 किलोमीटर तक सीमित ब्रह्मोस की मारक क्षमता को 2016 में भारत के एमटीसीआर में शामिल होने के बाद 450 किलोमीटर तक बढ़ा दिया गया था।
सेना के जंगी बेड़े में शामिल होंगे 220 ब्रह्मोस
ब्रह्मोस के मौजूदा टेस्ट का मकसद नया 800 किलोमीटर का संस्करण विकसित करना है, जिसमें एक उन्नत रैमजेट इंजन और बेहतर मार्गदर्शन प्रणालियां होंगी। 2027 तक अपेक्षित नया संस्करण जामिंग के विरुद्ध अधिक सटीकता और लचीलेपन का वादा करता है। सेना और नौसेना पहले उन्नत संस्करण को शामिल करेंगी, उसके बाद हवाई संस्करण को। पिछले साल मार्च में रक्षा मंत्रालय ने भारतीय नौसेना के लिए 220 से ज्यादा ब्रह्मोस मिसाइलें खरीदने के लिए ₹19,519 करोड़ के अपने अब तक के सबसे बड़े सौदे पर हस्ताक्षर किए थे। ऑपरेशन सिंदूर को ट्रेलर बताते हुए, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने घोषणा की कि पाकिस्तान का हर हिस्सा अब ब्रह्मोस की पहुंच में है, जिससे भारत के विरोधियों को एक कड़ा संदेश गया।
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