फतेहाबाद : हरियाणा के फतेहाबाद जिले में थारपारकर नस्ल की 11 माह की बछिया 1 लाख 81 हजार रुपये में बिकी है। इस नस्ल की खासियत है कि यह बहुत ही शांत स्वभाव की गाय होती है और दूध भी अच्छा देती है। फतेहाबाद जिले में यह पहली ऐसी गाय की बछिया है, जिसकी इतनी बड़ी कीमत लगाई गई है। फतेहाबाद के गांव डांगरा निवासी मनीष पुनिया गौपालक हैं। हालांकि वह गायों का व्यापार नहीं करते हैं, लेकिन उनके बाड़े में जगह कम होने के कारण उन्होंने थारपारकर नस्ल की 11 माह की बछिया बेचने का निर्णय लिया।
थारपारकर नस्ल की गाय पूरे उत्तर भारत में प्रसिद्ध
थारपारकर नस्ल की गाय पूरे उत्तर भारत में प्रसिद्ध है। इस गाय की कई खासियत हैं। अब इस 11 माह की बछिया को गोलू खरकड़ा ने 1 लाख 81 हजार रुपये कीमत में खरीदा है। मनीष पुनिया ने बतााया कि वह पशुओं का व्यापार नहीं करते हैं, लेकिन उनके बाड़े में अधिक पशु होने के कारण वह इस बछिया का रखरखाव नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्होंने इसको बेचने का निर्णय लिया। यह गाय अपने आप में काफी महत्व रखती है। मनीष पुनिया ने बताया कि थारपारकर नस्ल की गाय अपनी विशेषताओं के लिए जानी जाती है। यह गाय काफी शांत स्वभाव की होती है और कभी भी एग्रेसिव नहीं होती।
18 से 20 लीटर दूध देती है ये गाय
उन्होंने बताया कि यह गाय प्रतिदिन लगभग 18 से 20 किलोग्राम दूध देती हैं, जो अत्यधिक गुणकारी होता है। यह नस्ल आसानी से घर के माहौल में घुल-मिल जाती है। ये गायें काफी समझदार होती हैं और अपना भोजन लेने के लिए रसोई तक पहुंच जाती हैं। जिले सिंह ने बताया कि उनके पास भी इसी नस्ल की गाय और बछिया हैं, जिनसे उन्हें बहुत लगाव है। थारपारकर गाय को थारी और सफेद सिंधी भी कहा जाता है। यह थार रेगिस्तान के अलावा पाकिस्तान में भी पाई जाती है। देश में यह गाय जौधपुर, जैसलमेर और गुजरात के कच्छ में पाई जाती है। इस यह एक दोहरे उद्देश्य वाली नस्ल है जो दूध उत्पादन और भार ढोने दोनों के लिए उपयुक्त है। यह गाय सहनशील और कम पानी में जीवित रहने में सक्षम है। दूध की गुणवत्ता बहुत अच्छी होती है और यह रोग प्रतिरोधी होती है। कुछ मामलों में, यह बिना खाए पिए दो से तीन दिन तक जीवित रह सकती है।
थारपारकर नस्ल की गाय पूरे उत्तर भारत में प्रसिद्ध
थारपारकर नस्ल की गाय पूरे उत्तर भारत में प्रसिद्ध है। इस गाय की कई खासियत हैं। अब इस 11 माह की बछिया को गोलू खरकड़ा ने 1 लाख 81 हजार रुपये कीमत में खरीदा है। मनीष पुनिया ने बतााया कि वह पशुओं का व्यापार नहीं करते हैं, लेकिन उनके बाड़े में अधिक पशु होने के कारण वह इस बछिया का रखरखाव नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्होंने इसको बेचने का निर्णय लिया। यह गाय अपने आप में काफी महत्व रखती है। मनीष पुनिया ने बताया कि थारपारकर नस्ल की गाय अपनी विशेषताओं के लिए जानी जाती है। यह गाय काफी शांत स्वभाव की होती है और कभी भी एग्रेसिव नहीं होती।
18 से 20 लीटर दूध देती है ये गाय
उन्होंने बताया कि यह गाय प्रतिदिन लगभग 18 से 20 किलोग्राम दूध देती हैं, जो अत्यधिक गुणकारी होता है। यह नस्ल आसानी से घर के माहौल में घुल-मिल जाती है। ये गायें काफी समझदार होती हैं और अपना भोजन लेने के लिए रसोई तक पहुंच जाती हैं। जिले सिंह ने बताया कि उनके पास भी इसी नस्ल की गाय और बछिया हैं, जिनसे उन्हें बहुत लगाव है। थारपारकर गाय को थारी और सफेद सिंधी भी कहा जाता है। यह थार रेगिस्तान के अलावा पाकिस्तान में भी पाई जाती है। देश में यह गाय जौधपुर, जैसलमेर और गुजरात के कच्छ में पाई जाती है। इस यह एक दोहरे उद्देश्य वाली नस्ल है जो दूध उत्पादन और भार ढोने दोनों के लिए उपयुक्त है। यह गाय सहनशील और कम पानी में जीवित रहने में सक्षम है। दूध की गुणवत्ता बहुत अच्छी होती है और यह रोग प्रतिरोधी होती है। कुछ मामलों में, यह बिना खाए पिए दो से तीन दिन तक जीवित रह सकती है।
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