ग्वालियरः अक्सर अपने देख होगा कि किसी भी मंदिर के निर्माण के बाद ही उसमें इष्ट की स्थापना की जाती है। लेकिन मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक ऐसा शिव मंदिर है। जिसमें स्थापित शिवलिंग मंदिर से भी प्राचीन है। 'कोटेश्वर महादेव मंदिर' नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर अपनी पौराणिकता, स्थापत्य कला और ऐतिहासिक महत्व के कारण विशेष पहचान रखता है। माना जाता है कि इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग लगभग 400 वर्ष पुराना है, जबकि मंदिर का निर्माण लगभग 150 वर्ष पूर्व सिंधिया राजवंश के शासनकाल में कराया गया था।
प्राचीन मान्यताओं की मानें तो यह मंदिर ग्वालियर के ऐतिहासिक दुर्ग पर स्थित हुआ करता था। लेकिन जब मुगल शासक औरंगजेब ने ग्वालियर पर आक्रमण कर किले पर कब्जा कर लिया था। तब उसने अन्य धार्मिक स्थलों की तरह इस शिवलिंग को भी नष्ट करने के लिए किले से नीचे फिंकवा दिया।
किले से नीचे फेंका शिवलिंग
इसके बाद भी जब नुकसान नहीं पहुचा तो उसे नष्ट करने के लिए का जैसे ही वह शिवलिंग के समीप पहुंचा। वहां, हजारों नाग अचानक वहां प्रकट हो गए और शिवलिंग को घेर लिया। यह दृश्य देखकर औरंगजेब के सैनिक भयभीत हो गए और कोई भी शिवलिंग को छू नहीं पाया। बाद में, किसी युक्ति से उन सांपों को हटाया गया और शिवलिंग को किले से नीचे फेंक दिया गया। इससे वह वर्षों तक दुर्ग की तलहटी में दबा रहा।
सिंधिया परिवार ने कराया पुनर्निमाण
कई वर्षों बाद जब सिंधिया राजाओं ने दुर्ग पर अपना आधिपत्य स्थापित किया। तब उन्हें इस शिवलिंग के इतिहास की जानकारी मिली। इसके बाद उन्होंने शिवलिंग की खोज करवाई और वर्तमान स्थल पर भव्य मंदिर का निर्माण कर इसे पुनः स्थापित करवाया। इसके बाद से ही आज भी इसकी देखरेख सिंधिया ट्रस्ट करता है।
कैसे मिला कोटेश्वर नाम
मान्यता ये भी है ब कि जब शिवलिंग को यहां स्थापित किया गया तब वह थोड़ी तिरछी स्थिति में रह गई। उसे सीधा करने के कई प्रयास किए गए। लेकिन शिवलिंग अपनी स्थिति से नहीं हिली। आज भी यह शिवलिंग झुकी हुई अवस्था में ही पूजा जाता है, जो मंदिर की एक अनोखी विशेषता बन चुकी है। वहीं, बताया जाता है कि मंदिर को किले की एक दीवार से नीचे फेका गया था। दीवार को 'कोटे' कहा जाता है। वहीं, जहां शिवलिंग गिरा उसे कोटेश्वर कहा गया। इसी के आधार पर मंदिर का नाम कोटेश्वर रखा गया।
मंदिर की दीवारों में उकेरा इतिहास
मंदिर की दीवारों पर उकेरे गए चित्र तत्कालीन स्थापत्य कला और सांस्कृतिक वैभव का प्रमाण देते हैं। यही नहीं दीवारों पर मंदिर का पूरा इतिहास अंकित है। इसमें औरंगजेब के आक्रमण से लेकर सिंधिया शासनकाल में मंदिर की स्थापना तक की पूरी कथा चित्रों और शिलालेखों के माध्यम से दर्शाई गई है।
आज यह मंदिर न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। सावन मास और महाशिवरात्रि जैसे पर्वों पर यहां हजारों श्रद्धालु दर्शन और पूजन के लिए आते हैं। कोटेश्वर महादेव मंदिर न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि ग्वालियर के गौरवशाली इतिहास की जीवंत धरोहर भी है, जो आने वाली पीढ़ियों को उस काल की कथा सुनाता रहेगा।
प्राचीन मान्यताओं की मानें तो यह मंदिर ग्वालियर के ऐतिहासिक दुर्ग पर स्थित हुआ करता था। लेकिन जब मुगल शासक औरंगजेब ने ग्वालियर पर आक्रमण कर किले पर कब्जा कर लिया था। तब उसने अन्य धार्मिक स्थलों की तरह इस शिवलिंग को भी नष्ट करने के लिए किले से नीचे फिंकवा दिया।
किले से नीचे फेंका शिवलिंग
इसके बाद भी जब नुकसान नहीं पहुचा तो उसे नष्ट करने के लिए का जैसे ही वह शिवलिंग के समीप पहुंचा। वहां, हजारों नाग अचानक वहां प्रकट हो गए और शिवलिंग को घेर लिया। यह दृश्य देखकर औरंगजेब के सैनिक भयभीत हो गए और कोई भी शिवलिंग को छू नहीं पाया। बाद में, किसी युक्ति से उन सांपों को हटाया गया और शिवलिंग को किले से नीचे फेंक दिया गया। इससे वह वर्षों तक दुर्ग की तलहटी में दबा रहा।
सिंधिया परिवार ने कराया पुनर्निमाण
कई वर्षों बाद जब सिंधिया राजाओं ने दुर्ग पर अपना आधिपत्य स्थापित किया। तब उन्हें इस शिवलिंग के इतिहास की जानकारी मिली। इसके बाद उन्होंने शिवलिंग की खोज करवाई और वर्तमान स्थल पर भव्य मंदिर का निर्माण कर इसे पुनः स्थापित करवाया। इसके बाद से ही आज भी इसकी देखरेख सिंधिया ट्रस्ट करता है।
कैसे मिला कोटेश्वर नाम
मान्यता ये भी है ब कि जब शिवलिंग को यहां स्थापित किया गया तब वह थोड़ी तिरछी स्थिति में रह गई। उसे सीधा करने के कई प्रयास किए गए। लेकिन शिवलिंग अपनी स्थिति से नहीं हिली। आज भी यह शिवलिंग झुकी हुई अवस्था में ही पूजा जाता है, जो मंदिर की एक अनोखी विशेषता बन चुकी है। वहीं, बताया जाता है कि मंदिर को किले की एक दीवार से नीचे फेका गया था। दीवार को 'कोटे' कहा जाता है। वहीं, जहां शिवलिंग गिरा उसे कोटेश्वर कहा गया। इसी के आधार पर मंदिर का नाम कोटेश्वर रखा गया।
मंदिर की दीवारों में उकेरा इतिहास
मंदिर की दीवारों पर उकेरे गए चित्र तत्कालीन स्थापत्य कला और सांस्कृतिक वैभव का प्रमाण देते हैं। यही नहीं दीवारों पर मंदिर का पूरा इतिहास अंकित है। इसमें औरंगजेब के आक्रमण से लेकर सिंधिया शासनकाल में मंदिर की स्थापना तक की पूरी कथा चित्रों और शिलालेखों के माध्यम से दर्शाई गई है।
आज यह मंदिर न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। सावन मास और महाशिवरात्रि जैसे पर्वों पर यहां हजारों श्रद्धालु दर्शन और पूजन के लिए आते हैं। कोटेश्वर महादेव मंदिर न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि ग्वालियर के गौरवशाली इतिहास की जीवंत धरोहर भी है, जो आने वाली पीढ़ियों को उस काल की कथा सुनाता रहेगा।
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