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दिल्ली में साफ हवा के लिए और क्या किया जा सकता है? पद्मश्री सुनीता नारायण ने Exclusive इंटरव्यू दिया ये जवाब

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नई दिल्ली: देश में पर्यावरण पर कहीं सबसे अधिक काम हुआ है तो राजधानी दिल्ली में हुआ है। 2015 से पर्यावरण को बचाने की लड़ाई लगातार मजबूत होती दिख रही है। दिल्ली को इस लड़ाई के कई सुखद नतीजे भी मिले हैं। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (CSE) की डीजी पद्मश्री सुनीता नारायण ने इस पर पूनम गौड़ से बात की:



दिल्ली को बीते कुछ साल में पर्यावरण के प्रति सबसे बड़ा बदलाव क्या देखने को मिला है?



दिल्ली ने पर्यावरण बचाने और प्रदूषण कम करने की लड़ाई में कई मिसाल कायम की हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि लोग पर्यावरण को लेकर अवेयर हुए हैं। उनके दबाव और सवालों की वजह से दिल्ली सरकार पर दबाव बना है कि वह पर्यावरण के लिए काम करें। चाहे वह आम आदमी पार्टी की पिछली सरकार हो या बीजेपी की मौजूदा दिल्ली सरकार, दोनों ने ही पर्यावरण की अहमियत को समझा और इसके एक्शन प्लान बनाए और उन पर काम भी किया। पहली बार ऐसा हुआ कि दिल्ली के चुनावों में सभी पार्टियों के एजेंडे में हवा का प्रदूषण के अलावा कूड़ा और यमुना तीनों मुद्दे दिखे। पीएम और गृहमंत्री अमित शाह दिल्ली में यमुना प्रदूषण को लेकर मीटिंग ले रहे हैं।



दिल्ली में रिज की हालत पर कई बार सवाल उठते रहे हैं। रिज दिल्ली के लिए कितनी जरूरी है?



दिल्ली ऐसा शहर है, जहां अतिक्रमण बहुत तेजी से बढ़ रहा है। इस शहर का जो स्वरूप है, उसमें रिज को काफी हद तक बचाए रखना बहुत बड़ी बात है। बीते कुछ साल में रिज से काफी अतिक्रमण हटाया गया है। रिज में हरियाली बढ़ाई गई है। एक और बड़ी बात, दिल्ली पेड़ों की अहमियत समझ रही है। यहां पर सबसे बड़ा लाभ ग्रीन कवर के तौर पर सामने आया है। यह कई गुना बढ़ा है। मान सकते हैं कि यह सब जगह समानांतर नहीं है, ईस्ट में पार्क काफी कम है तो लुटियंस और साउथ दिल्ली में पार्क काफी हैं। इसके बावजूद दिल्ली में ग्रीन कवर बढ़ रहा है।



कूड़ा प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई को कमजोर कर रहा है? इस समस्या को कैसे दूर किया जा सकता है?



ऐसा कहा जा सकता है कि लखनऊ, इंदौर जैसे शहर जब साफ सुथरे हैं तो दिल्ली गंदी क्यों? लेकिन यह भी समझना होगा कि दिल्ली की आबादी बहुत अधिक है। यहां कई अवैध सेटलमेंट हैं, जहां कूड़े का कुछ अता-पता ही नहीं है। ऐसे में यहां चुनौतियां बहुत अधिक हैं। जोनल स्तर पर इस लड़ाई को लड़ने की शुरूआत की जा सकती है। कचरे की छंटाई जरूरी है। वेस्ट टु एनर्जी प्लांट के लिए भी यह जरूरी है। फिर हम ऐसा नियम बना सकते हैं कि एक दिन एमसीडी गीला कूड़ा उठाए और एक दिन सूखा कूड़ा उठाए, ताकि गाड़ियों में ऐसा कूड़ा आए ही नहीं। अभी तक कूड़ा उठाने के लिए टिपिंग फीस देते हैं। यानी जितना कूड़ा उठाया उसके हिसाब से पेमेंट करते हैं, लेकिन होना इसके उलट चाहिए। कम कूड़ा उठाने पर प्रोत्साहन राशि मिलनी चाहिए। लेकिन इसके लिए मॉनिटरिंग जरूरी करनी होगी, ताकि कम कूड़े के चक्कर में कूड़ा सड़कों या यमुना में न जाए।



दिल्ली में साफ हवा के लिए और क्या किया जा सकता है?



सीएनजी, इलेक्ट्रिक बसें, ईस्टर्न वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे जैसे ऐतिहासिक काम राजधानी ने उठाए हैं। इनके रिजल्ट भी मिले हैं। सरकार एक्शन प्लान भी लाई है जो काफी मायनों में अच्छा है। लेकिन अभी प्राइवेट गाड़ियों को कम करने की दिशा में दिल्ली को काम करना बहुत जरूरी है। यह समझना होगा कि ईंधन कहां जल रहा है। यह गाड़ियों, किचन और फैक्ट्रियों पर चल रहा है। गाड़ियों से सबसे अधिक प्रदूषण आ रहा है और इस पर अभी जरूरत के मुताबिक फोकस नहीं हो रहा है।



यमुना बीते काफी समय से सुर्खियों में है। यमुना आरती शुरू हुई है। रिवरफ्रंट के तहत कुछ पार्क बने हैं। इन्हें किस तरह देख रही हैं?



यह लोगों को यमुना से जोड़ने का बहुत अच्छा प्रयास है। पर्यावरणविद् के तौर पर मैं कहना चाहूंगी कि शिव की जटाओं से गंगा निकलती है और वह धीरे धीरे बहती है। हिमालय शिव है और वहां के पेड़, चट्टानें, इकोलॉजी गंगा के प्रवाह को कम करती है और गंगा तबाही नहीं लाती। इन प्रोजेक्ट के जरिए जब लोग यमुना का हाल देख रहे हैं तो उन्हें दुख हो रहा है और यमुना साफ करने की मुहिम जोर पकड़ रही है। रिवरफ्रंट बनाने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन इनमें कंक्रीट का इस्तेमाल न हो। नदी अविरल बहे यह प्रयास करने हैं। यमुना को साफ करने के लिए भी लोगों की यही अवेयरनेस काम आएगी।



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