सोशल डायनेमिक्स पिछले कुछ सालों में पूरी तरह से बदल चुके हैं और इसका असर महिलाओं की जिंदगी और सोच पर भी दिख रहा है। अब उनके लिए करियर बनाना ऑप्शन नहीं बल्कि जरूरत बन चुका है। ठीक इसी तरह एक बड़े महिला वर्ग के लिए शादी जरूरत नहीं ऑप्शन बनती जा रही है। वह मैरिड और अनमैरिड में, बाद वाला ऑप्शन चुन रही हैं।मगर ऐसा क्यों हो रहा है। मॉडर्न दौर की महिलाएं सिंगल रहना पसंद कर रही हैं तो इस सामाजिक बदलाव पर बात की जानी जरूरी है। इस बदलाव के मुद्दे पर स्प्रिचुअल काउंसलर और सायक्लॉजिस्ट डॉ. मधु कोटिया ने अपनी राय सामने रखी है और महिलाओं की सोच में आए इस बदलाव का हर पहलू समझाया है। आप भी पढ़िए और जानिए- रिश्तों की क्रांति
डॉ. मधु मानती हैं कि सोशल डायनेमिक पिछले कुछ सालों में बदले हैं और इसके चलते मॉडर्न महिलाएं अपने जीवन के निर्णय खुद ले पा रही हैं। ऐसे में अपनी परिस्थितियों के हिसाब से उन्हें जो सही लग रहा है, वो वही सबकुछ कर रही हैं। दरअसल इस दौर की महिलाओं के जीवन की बागडोर उनके ही हाथ में है। वह मानसिकतौर पर मजबूत महसूस करती हैं और उनकी सोच बेहद स्पष्ट है। एक्सपर्ट कहती हैं कि महिलाएं शादी को एक उपलब्धि नहीं बल्कि बस एक पड़ाव मान रही हैं। शादी और पहचानपुराने दौर में महिलाओं की जगह, सुरक्षा और व्यक्तिगत पहचान शादी से जुड़ी होती थी। शादी को उस समय एक उपलब्धि ही माना जाता था। इसे आर्थिक और भावनात्मक जरूरत भी समझा जाता था। लेकिन आज की महिलाएं इस कहानी को अपने अंदाज में लिख रही हैं। वह अपने विकास, भावनात्मक आजादी और आत्म निर्णय पर ध्यान दे रही हैं। आर्थिक आजादी और शिक्षामहिलाओं की बदलती स्थिति में आर्थिक आजादी और शिक्षा का अहम रोल है। इनके चलते महिलाओं को वो विकल्प भी मिल रहे हैं जो पहले मिलना बेहद मुश्किल था। अब महिलाओं की सुरक्षा उनके पार्टनर पर निर्भर नहीं है। पर्सनल ग्रोथ के चलते उनके करियर आगे बढ़ रहे हैं, वो पैशन फॉलो कर रही हैं तो उनकी सामाजिक और भावनात्मक जरूरतें भी पूरी हो रही हैं। अब महिलाओं पर शादी का सामजिक दबाव भी कम होता है। इमोशनल इंडिपेंडेंस है वजहशादी न करने का निर्णय लेने की कई वजहों में से एक इमोशनल इंडिपेंडेंस भी है। महिलाएं भावनात्मक तौर पर किसी पर निर्भर नहीं हैं तो वह अपने निर्णय अपनी सोच के मुताबिक ले पा रही हैं। महिलाओं की खुद से और जीवन में आने वाले पुरुष से ढेरों अपेक्षाएं हैं। उनको ऐसा रिश्ता बिल्कुल नहीं चाहिए जिसमें सम्मान न हो, भावनात्मक लेन देन न हो और विश्वास भी न हो। सिंगल होना, अकेला होना नहीं हैआज के दौर में सिंगल होना अकेला होना बिल्कुल नहीं माना जाता है। इसे किसी तरह की कमी भी नहीं माना जाता है। सिंगल वाली लाइफ को अब व्यक्तिगत विकास और मजबूती के प्रतिक के तौर पर देखा जाने लगा है। कमजोरियों का हलआज का समय किसी भी तरह की परेशानियों का हल निकालने वाला भी है। महिलाएं थैरेपी, कोचिंग और स्प्रिचुअल प्रैक्टिस का सहारा लेकर पुराने समय से चली आ रही सोशल कंडिशनिंग का हल निकाल रही हैं। ऐसा नहीं है कि महिलाएं रिश्ते में नहीं आ रही हैं लेकिन कई दफा इसमें आत्म त्याग और पीड़ा वाला अनुभव होता है। ऐसे अनुभवों को देखने के बाद महिलाएं सिंगल रहते हुए जीवन में बेहतर सुधार लाने के प्रयास भी करती हैं। सोशल मीडिया पर महिलाएंसोशल मीडिया पर दिखाई जाने वाली महिलाओं की छवि भी अलग है। अब उन्हें बोल्ड और सिंगल लाइफ में खुश दिखाया जा रहा है, जो दूसरी महिलाओं को प्रेरित करता है। इस तरह के कंटेंट से सिंगलहुड के साथ हमेशा से जोड़ी जाने वाली कमियों को भूलाना आसान हो जाता है। इसमें महिलाओं को खुश और आंतरिक तौर पर संतुष्ट भी दिखाया जाता है, जो दूसरी महिलाओं को कहीं न कहीं वैसी ही लाइफ जीने के लिए तैयार कर देता है। प्रेम के लिए घृणायह दौर उस तरह के रिश्ते का है जब महिलाएं डर नहीं बल्कि प्यार के आधार पर रिश्तों का चुनाव करना चुन रही हैं। इसके साथ यह भी समझना होगा कि महिलाएं अगर सिंगल रहने का चुनाव कर रही हैं तो इसके पीछे उनकी प्रेम के लिए घृणा बिल्कुल नहीं है। बल्कि यह चुनाव उस प्यार के लिए है जो उनके अस्तित्त्व को पूरा करे। निष्कर्ष यह हैइस मुद्दे के निष्कर्ष पर आएं तो यह माना जा सकता है कि महिलाएं रिश्तों को छोड़ नहीं रही हैं बल्कि पुराने दौर की अपेक्षाओं से दूर जा रही हैं। वह खुद को प्राथमिकता दे रही हैं और सामाजिक अपेक्षाओं को पूरा करने की बजाए खुद से रूबरू हो रही हैं। सिंगलहुड को प्यार की कमी के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए। यह खुद को समझने और आजादी से निर्णय लेने वाला समय हो सकता है।
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