नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के वरिष्ठ सांसद निशिकांत दुबे ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और कांग्रेस पार्टी पर एक बार फिर तीखा हमला बोला है। अपने आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल पर उन्होंने दावा किया कि 1968 में इंदिरा गांधी सरकार ने रन ऑफ कच्छ का 828 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पाकिस्तान को सौंप दिया था, जो कि भारत की संप्रभुता के साथ "समझौता" था।आज की कहानी बहुत ही दर्दनाक है @INCIndia पार्टी ने 1965 का युद्ध जीतने के बाद गुजरात के रन ऑफ कच्छ का 828 SQ किलोमीटर पाकिस्तान को 1968 में दे दिया ।भारत पाकिस्तान के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर लाए, मध्यस्थ बनाया,यूगोस्लाविया के वकील अली बाबर को हमने नियुक्त किया ।पूरी संसद… pic.twitter.com/htWRsvHj2C
— Dr Nishikant Dubey (@nishikant_dubey) May 23, 2025
दुबे ने कहा कि 1965 की भारत-पाक युद्ध में जीत के बावजूद, भारत सरकार ने इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले जाकर एक पंचाट (Tribunal) के हवाले किया और अंततः भारत ने अपनी ज़मीन पाकिस्तान को दे दी।
निशिकांत दुबे ने लिखा, "पूरी संसद ने इसका विरोध किया था, लेकिन इंदिरा गांधी ने 'आयरन लेडी' की छवि के बावजूद डर कर भारत का हिस्सा नीलाम कर दिया।"
क्या है रन ऑफ कच्छ विवाद का सच?
रन ऑफ कच्छ विवाद भारत और पाकिस्तान के बीच गुजरात स्थित एक सीमा क्षेत्र को लेकर था, जहाँ 1965 में सैन्य संघर्ष भी हुआ था। संघर्ष के बाद दोनों देशों ने शांति कायम करने के उद्देश्य से विवाद को अंतरराष्ट्रीय पंचाट में सुलझाने पर सहमति जताई।
1968 में ट्राइब्यूनल का फैसला आया, जिसमें कहा गया कि कुल 9,100 वर्ग किलोमीटर विवादित क्षेत्र में से 828 वर्ग किलोमीटर पाकिस्तान को सौंपा जाए, जबकि बाकी भारत को दिया गया। यह निर्णय एक संयुक्त अंतरराष्ट्रीय समझौते का हिस्सा था, जिसे भारत ने स्वीकार किया था।
कांग्रेस की प्रतिक्रिया?
इस बयान पर अब तक कांग्रेस पार्टी की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है, लेकिन राजनीतिक हलकों में इसे चुनावी रणनीति के तहत पुरानी बातों को उछालने का प्रयास माना जा रहा है।
विशेषज्ञों की राय
विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला भारत सरकार की मर्जी से नहीं, बल्कि एक पूर्व स्वीकृत न्यायिक प्रक्रिया के तहत हुआ था। इसके बावजूद इस मुद्दे को बार-बार राजनीतिक मंचों पर उठाया जाता रहा है।
हालांकि, रन ऑफ कच्छ विवाद और 1968 के अंतरराष्ट्रीय पंचाट के निर्णय पर कई विशेषज्ञों और न्यायिक संस्थाओं ने अपने विचार व्यक्त किए हैं। उदाहरण के लिए, Maganbhai Ishwarbhai Patel vs Union of India मामले में, भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर विचार किया कि क्या यह एक "सीज़न" (cession) था या एक सीमा विवाद का समाधान। न्यायालय ने इसे "सीज़न" नहीं माना, बल्कि इसे एक सीमा विवाद का समाधान माना।
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे का यह बयान कांग्रेस के खिलाफ एक बड़े राजनीतिक हमले के तौर पर देखा जा रहा है। बीजेपी सांसद का यह दावा ऐतिहासिक तथ्यों का एक पक्ष रखता है, लेकिन पूरी सच्चाई नहीं दर्शाता। हालांकि, इतिहासकारों और अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकारों का मानना है कि भारत ने 1965 में युद्ध जरूर जीता था, 1968 में हुआ यह क्षेत्रीय समझौता एक अंतरराष्ट्रीय पंचाट के फैसले का पालन था, न कि इंदिरा गांधी सरकार की कोई एकतरफा कार्रवाई। 1968 में हुआ समझौता एक अंतरराष्ट्रीय ट्राइब्यूनल का निष्कर्ष था, जिसे दोनों देशों ने पहले ही मान लिया था।
राजनीतिक बयानबाज़ी के बीच यह जरूरी है कि ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर ऐतिहासिक तथ्यों और विशेषज्ञों की राय के आधार पर निष्पक्ष मूल्यांकन किया जाए।
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