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मदर टेरेसा की सेवा ज्योति आज भी प्रज्वलित, 'मिशनरीज ऑफ चैरिटी' दुनियाभर में कर रही मानवीय सेवा

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New Delhi, 6 अक्टूबर . जब दुनिया अनेक संकटों से जूझ रही है, कहीं युद्ध की आग धधक रही है तो कहीं आर्थिक मंदी ने आम जनजीवन को झकझोर दिया है. बहुत से देशों में गंभीर बीमारियों से लोग ग्रसित हैं और इन सबके बीच सबसे ज्यादा उपेक्षित रह जाते हैं वे लोग, जिनका कोई नहीं होता, यानी गरीब, असहाय, बीमार और बेघर लोग. ऐसे समय में भी कुछ संस्थाएं हैं जो निस्वार्थ सेवा को ही अपना धर्म मानती हैं.

‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’, जिसे मदर टेरेसा ने शुरू किया था, ऐसी ही एक संस्था है जो भूखों को भोजन और बेघरों को सहारा देती है. यह संगठन सिर्फ राहत नहीं देता, बल्कि उन लोगों को जीने की नई आशा भी देती है, जो जीवन की दौड़ में पीछे छूट चुके हैं.

मदर टेरेसा को गरीबों और वंचितों की सेवा के लिए सभी जानते हैं. मदर टेरेसा को 7 अक्टूबर 1950 को वेटिकन से ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना करने की इजाजत मिली थी और इसकी शुरुआत उन्होंने कलकत्ता से की थी.

मदर टेरेसा केंद्र की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, साल 1946 में मदर टेरेसा को आत्मिक प्रेरणा प्राप्त हुई कि वे सबसे गरीब, सबसे उपेक्षित और सबसे असहाय लोगों के बीच ईसा मसीह की सेवा करें. यह प्रेरणा ही आगे चलकर ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की नींव बनी. मार्च 1949 में उन्हें पहली साथी मिलीं और फिर 7 अक्टूबर 1950 को कोलकाता के आर्चडायोसिस में इस नई धर्मसंघ की औपचारिक स्थापना हुई.

उस समय ‘छोटा सा समाज’ सिर्फ 12 सदस्यों का था, लेकिन इस सेवा के बीज ने दुनिया भर में करुणा और मानवता का एक वटवृक्ष खड़ा कर दिया. 1960 के दशक की शुरुआत में मदर टेरेसा ने India के अन्य हिस्सों में अपनी सेवाओं का विस्तार किया और 1965 में ‘डिक्री ऑफ प्रेज’ मिलने के बाद अंतरराष्ट्रीय विस्तार का मार्ग प्रशस्त हुआ.

जल्द ही वेनेजुएला, रोम, तंजानिया और फिर लगभग हर महाद्वीप पर मिशनरीज ऑफ चैरिटी की शाखाएं खुलने लगीं.

1980 और 1990 के दशक में यह सेवा सोवियत संघ, अल्बानिया और क्यूबा जैसे साम्यवादी देशों में भी पहुंची, जहां पहले धर्म और सेवा पर पाबंदियां थीं.

आज भी मदर टेरेसा की सेवा की यह ज्योति बुझी नहीं है, बल्कि और प्रज्वलित हो रही है, उन लाखों चेहरों की मुस्कान में, जिन्हें कभी किसी ने देखा तक नहीं था.

यह रोमन कैथोलिक स्वयंसेवी धार्मिक संगठन आज दुनिया के 100 से अधिक देशों में विभिन्न मानवीय कार्यों में योगदान दे रहा है. इसकी 4500 से भी अधिक ईसाई मिशनरियों की मंडली है. इस संगठन में शामिल होना एक गहन और अनुशासित प्रक्रिया है. कोई भी व्यक्ति तभी पूर्ण सदस्य बन सकता है, जब वह 9 वर्षों तक सेवा, प्रशिक्षण और परीक्षण की कठिन यात्रा पूरी करे और ईसाई धार्मिक मूल्यों की कसौटी पर खरा उतरे. इस दौरान उसे संगठन के मूलभूत कार्यों में भाग लेते हुए अपने जीवन को पूरी तरह समर्पित करना होता है.

डीसीएच/डीएससी

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