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वेदांत दर्शन को बनाया सर्व सुलभ, चिन्मय मिशन से लाखों लोग सीख रहे जीने का ढंग

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New Delhi, 3 अगस्त . स्वामी चिन्मयानंद भारत के उन महान आध्यात्मिक चिंतकों में से एक थे, जिन्होंने वेदांत दर्शन को न केवल भारत में बल्कि विश्व स्तर पर जन-जन तक पहुंचाया. उनका मूल नाम बालकृष्ण मेनन था और उनकी जीवन यात्रा एक पत्रकार से संन्यासी और फिर वेदांत के विश्वविख्यात विद्वान तक की रही.

उन्होंने अपने प्रवचनों और शिक्षाओं के माध्यम से हिंदू धर्म और संस्कृति के मूलभूत सिद्धांतों को आधुनिक संदर्भ में प्रस्तुत किया. स्वामी चिन्मयानंद ने वेदांत को दैनिक जीवन से जोड़कर यह सिद्ध किया कि यह दर्शन केवल साधु-संतों के लिए नहीं, बल्कि सामान्य व्यक्ति के लिए भी सुख और संतुष्टि का मार्ग प्रशस्त करता है.

1916 में केरल के एक हिंदू परिवार में जन्मे स्वामी चिन्मयानंद ने मद्रास विश्वविद्यालय से स्नातक और लखनऊ विश्वविद्यालय से साहित्य व कानून में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की.

युवावस्था में वे स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए और जेल भी गए. भौतिक सफलता के बावजूद उनके मन में जीवन और मृत्यु के गहन प्रश्नों ने बेचैनी पैदा की. इस खोज ने उन्हें स्वामी शिवानंद के आश्रम तक पहुंचाया, जहां 1949 में उन्होंने संन्यास की दीक्षा ली और उनका नाम स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती हुआ.

स्वामी चिन्मयानंद ने स्वामी तपोवन महाराज के मार्गदर्शन में उत्तराखंड में आठ वर्ष तक वेदांत का गहन अध्ययन किया. इस दौरान उन्होंने उपनिषदों और भगवद्गीता के गूढ़ रहस्यों को आत्मसात किया.

1953 में उन्होंने ‘चिन्मय मिशन’ की स्थापना की, जिसका उद्देश्य वेदांत के ज्ञान को विश्व भर में फैलाना था. इस मिशन ने न केवल आध्यात्मिकता को बढ़ावा दिया, बल्कि शैक्षिक, सांस्कृतिक और सामाजिक क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया.

उनके प्रवचन प्रेरणादायक थे, जो सामान्य लोगों को भी गहन दर्शन को समझने में मदद करते थे. उन्होंने वेदांत को केवल ब्राह्मणों तक सीमित न रखकर, सभी के लिए सुलभ बनाया. पुणे से शुरू हुए उनके ‘गीता ज्ञान-यज्ञ’ ने देश-विदेश में 576 से अधिक स्थानों पर सनातन धर्म के संदेश को पहुंचाया. उनके सत्संगों में पुरुष और महिलाएं समान रूप से शामिल होते थे और वे दैनिक जीवन के उदाहरणों से वेदांत को सरल बनाते थे.

स्वामी चिन्मयानंद ने उपनिषदों, भगवद्गीता और आदि शंकराचार्य के 35 से अधिक ग्रंथों पर भाष्य लिखे. उनके द्वारा प्रशिक्षित सैकड़ों संन्यासी और ब्रह्मचारी आज भी चिन्मय मिशन के माध्यम से उनके कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं. 1993 में शिकागो में विश्व धर्म संसद में उन्होंने हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया, जिसे स्वामी विवेकानंद के बाद एक ऐतिहासिक क्षण माना गया.

स्वामी चिन्मयानंद का मानना था कि मन ही मनुष्य का मित्र और शत्रु है. उनकी शिक्षाएं आज भी लोगों को आत्म-जागरण और सुखी जीवन की ओर प्रेरित करती हैं. चिन्मय मिशन आज भी उनके दर्शन को जीवित रखे हुए है, जो विश्व भर में उनके आध्यात्मिक दर्शन को पहुंचा रहा है. 3 अगस्त 1993 को अमेरिका में उनका देहांत हुआ.

एकेएस/एबीएम

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