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हुल्लड़ मुरादाबादी : जिनकी रचनाएं सुनकर लोटपोट हो जाते थे लोग, समाज को भी दिखाया आईना

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New Delhi, 11 जुलाई . ‘बहरों को फरियाद सुनाना, अच्छा है पर कभी-कभी. अंधों को दर्पण दिखलाना, अच्छा है पर कभी-कभी. ऐसा न हो तेरी कोई, उंगली गायब हो जाए. नेताओं से हाथ मिलाना, अच्छा है पर कभी-कभी.’ ये कविता है हुल्लड़ मुरादाबादी की. अपनी हास्य भरी रचनाओं और तीखे व्यंग्य से उन्होंने न केवल जनता को ठहाकों से सराबोर किया, बल्कि सामाजिक समस्याओं से भी रू-ब-रू कराया.

हुल्लड़ मुरादाबादी का असली नाम सुशील कुमार चड्ढा था, लेकिन उन्हें सही मायनों में पहचान ‘हुल्लड़ मुरादाबादी’ के नाम से मिली. उनकी रचनाओं में रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ी छोटी-छोटी बातें हास्य और व्यंग्य के रूप में दिखाई देती हैं, चाहे वह भूख हो या गरीबी या महंगाई हो या फिर राजनीति और नौकरशाही. हुल्लड़ ने अपनी लेखनी से हर विषय को हास्य की चाशनी में डुबोकर जनता के सामने पेश किया, जिसने उन्हें हिंदी साहित्य में एक अनूठा स्थान दिलाया.

12 जुलाई 2014 को दुनिया को अलविदा कहने वाले हुल्लड़ मुरादाबादी का जन्म 29 मई 1942 को गुजरांवाला (पाकिस्तान) में हुआ था. भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद उनका परिवार उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में बस गया. उन्होंने मुरादाबाद के केजीके कॉलेज से बीएससी और हिंदी में एमए की डिग्री हासिल की. पढ़ाई के दौरान ही उनका कविता लेखन और काव्य पाठ की ओर झुकाव बढ़ा. उन्होंने अपनी लेखनी की शुरुआत वीर रस की कविताएं लिखकर की, लेकिन 1962 में उन्होंने ‘सब्र’ नाम से हिंदी कविता साहित्य में अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज कराई और इसके बाद उन्होंने हास्य-व्यंग्य पर लिखना शुरू कर दिया.

सुशील कुमार चड्ढा को बाद में ‘हुल्लड़ मुरादाबादी’ के नाम से पहचान मिली. उन्होंने ‘इतनी ऊंची मत छोड़ो’, ‘क्या करेगी चांदनी’, ‘यह अंदर की बात है’, ‘त्रिवेणी’, ‘तथाकथित भगवानों के नाम’, ‘हुल्लड़ की हरकतें’, ‘अच्छा है पर कभी कभी’ और ‘हज्जाम की हजामत’ जैसी रचनाएं लिखीं. उन्होंने न केवल कविताएं लिखीं, बल्कि हिंदी फिल्मों जैसे नसबंदी (1978), बंधन बाहों का (1988), और संतोष (1989) में गीत लेखन और अभिनय भी किया. बॉलीवुड के ‘भारत कुमार’ कहे जाने वाले मनोज कुमार से भी उनके नजदीकी रिश्ते रहे.

हुल्लड़ मुरादाबादी ने काव्य सम्मेलनों को अपनी हास्य रचनाओं से न केवल जीवंत किया बल्कि उनकी परफॉर्मेंस में ठहाकों के साथ-साथ तालियों की गड़गड़ाहट की गूंज भी सुनाई देती थी. उनकी लिखी रचना ‘चांद औरों पर मरेगा क्या करेगी चांदनी, प्यार में पंगा करेगा क्या करेगी चांदनी. चांद से हैं खूबसूरत भूख में दो रोटियां, कोई बच्चा जब मरेगा क्या करेगी चांदनी’, सामाजिक सच्चाइयों को हास्य के साथ सामने लाती थीं.

इसके अलावा, वे एक अन्य रचना में लिखते हैं कि ‘कर्जा देता मित्र को, वह मूर्ख कहलाए, महामूर्ख वह यार है, जो पैसे लौटाए’, जो दोस्ती में पैसे के लेन-देन से जुड़ी संभावित समस्याओं पर बात करता है.

कलाश्री, अट्टहास सम्मान, हास्य रत्न सम्मान, और काका हाथरसी पुरस्कार जैसे प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाजे गए हुल्लड़ मुरादाबादी ने दुनियाभर में अपने नाम से ‘हुल्लड़’ मचाया, लेकिन उनका और मुरादाबाद का साथ कभी नहीं छूट पाया.

वे मुरादाबाद छोड़कर Mumbai चले गए, जहां उन्होंने अपने जीवन के अंतिम साल बिताए. 12 जुलाई 2014 को दुनिया को अलविदा कह दिया. वे अपने पीछे उन हास्य रचनाओं का पिटारा छोड़ गए, जो आज भी हिंदी साहित्य के चाहने वालों के लिए प्रेरणा का स्रोत है.

एफएम/एएस

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