हमीरपुर, 19 अक्टूबर . India भर में दीपों का पर्व दीपावली धूमधाम से मनाने की तैयारियां जोरों पर हैं, लेकिन Himachal Pradesh के हमीरपुर जिले का एक गांव ऐसा भी है, जहां सदियों से दीपावली नहीं मनाई जाती. जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर स्थित सम्मू गांव को लोग आज भी ‘शापित गांव’ के नाम से जानते हैं.
यहां के लोग न तो दीपावली पर पकवान बनाते हैं, न ही घर सजाते हैं और न ही उत्सव मनाने की कोशिश करते हैं, क्योंकि गांव में यह मान्यता है कि अगर कोई दीपावली मनाने का प्रयास करता है तो गांव में आपदा या अकाल मृत्यु होती है.
गांव के बुजुर्गों के अनुसार, यह श्राप सैकड़ों साल पुराना है. कहा जाता है कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान दीपावली के दिन गांव की एक महिला अपने मायके जाने के लिए निकली थी. उसी समय उसके पति की मृत्यु हो गई, जो कि सेना में तैनात थे. ग्रामीण उसका शव लेकर लौट रहे थे. गर्भवती महिला यह दृश्य देखकर सहन नहीं कर सकी और अपने पति के साथ सती हो गई. जाते-जाते उसने पूरे गांव को श्राप दे दिया कि इस गांव में कभी दीपावली नहीं मनाई जाएगी. तब से लेकर आज तक गांव के लोगों ने इस त्योहार को नहीं मनाया है.
सम्मू गांव के निवासी रघुवीर सिंह रंगड़ा ने को बताया कि हमारे बुजुर्गों के जमाने से ही दीपावली नहीं मनाई जाती. जो भी दीपावली मनाने की कोशिश करता है, उसके बाद गांव में किसी न किसी की मौत हो जाती है या कोई अनहोनी घट जाती है. उन्होंने बताया कि कई बार लोगों ने श्राप से मुक्ति पाने की कोशिश की, पूजा-पाठ भी करवाए, लेकिन कोई असर नहीं हुआ.
विद्या देवी कहती हैं, “जब भी दीपावली आती है, मन भारी हो जाता है. चारों ओर रोशनी और खुशी का माहौल होता है, लेकिन हमारे गांव में उस दिन सन्नाटा पसरा रहता है. बच्चे भी घरों में चुपचाप रहते हैं. दीपावली के दिन हमारे घरों में न दीये जलते हैं, न पकवान बनते हैं.”
गांव की स्थिति पर भोरंज पंचायत प्रधान पूजा देवी ने भी पुष्टि की कि आज तक सम्मू गांव में दीपावली नहीं मनाई गई है. उन्होंने कहा, “यह गांव आज भी उस सती के श्राप के डर में जी रहा है. लोग पकवान नहीं बनाते और न ही पटाखे जलाते हैं. हर बार यही सवाल उठता है कि आखिर कब इस गांव को इस श्राप से मुक्ति मिलेगी.”
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एएसएच/पीएसके
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