New Delhi, 5 अक्टूबर . तेलंगाना Government के स्थानीय निकायों में पिछड़ा वर्ग (बीसी) को 42 फीसदी आरक्षण देने के आदेश को Supreme court में चुनौती दी गई है. Monday को सर्वोच्च न्यायालय इस पर सुनवाई करेगा.
सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट पर प्रकाशित वाद-सूची के अनुसार, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ 6 अक्टूबर को इस मामले की सुनवाई करेगी.
संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत अधिवक्ता सोमिरन शर्मा के माध्यम से दायर याचिका में तर्क दिया गया है कि इस कदम ने स्थानीय निकायों में आरक्षण को नियंत्रित करने वाले सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन किया है.
याचिका में 26 सितंबर के Governmentी आदेश संख्या 09 को चुनौती दी गई है, जिसमें तर्क दिया गया है कि मौजूदा एससी और एसटी कोटा 15 प्रतिशत और 10 प्रतिशत के साथ, कुल आरक्षण अब 67 प्रतिशत से अधिक है.
इसमें बताया गया है कि तेलंगाना पंचायत राज अधिनियम, 2018 की धारा 285ए, के. कृष्ण मूर्ति बनाम India संघ मामले में संविधान पीठ के फैसले के अनुरूप 50 प्रतिशत की सीमा को स्पष्ट रूप से संहिताबद्ध करती है.
याचिका में कहा गया है, “इस वैधानिक प्रतिबंध के बावजूद, प्रतिवादी राज्य ने विवादित Governmentी आदेश को लागू करने की कोशिश की है, जिससे वह संविधान और कानून दोनों के विरुद्ध कार्य कर रहा है.”
के. कृष्ण मूर्ति मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए, याचिका में कहा गया है कि “स्थानीय स्वशासन के संदर्भ में अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों/अन्य पिछड़ा वर्गों के पक्ष में 50 प्रतिशत ऊर्ध्वाधर (वर्टिकल) आरक्षण की ऊपरी सीमा का उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिए. अपवाद केवल अनुसूचित क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियों के हितों की रक्षा के लिए ही किए जा सकते हैं.”
याचिका में आरोप लगाया गया है कि तेलंगाना Government विकास किशनराव गवली बनाम Maharashtra राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित “त्रिस्तरीय परीक्षण” का पालन करने में विफल रही है, जिसके अनुसार स्थानीय निकायों में किसी भी अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण से पहले एक समर्पित आयोग द्वारा कठोर अनुभवजन्य जांच (एक जांच जो अनुभव और प्रत्यक्ष अवलोकन पर आधारित हो) की जानी चाहिए; उन आंकड़ों के आधार पर स्थानीय निकाय-वार आरक्षण का निर्धारण किया जाना चाहिए; और यह सुनिश्चित करने वाली एक सीमा होनी चाहिए कि अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक न हो.
याचिका में राज्य Government के फैसले के आधार पर भी सवाल उठाया गया है और कहा गया है कि यह वृद्धि “एक सदस्यीय आयोग की रिपोर्ट” पर आधारित है, जिसे “न तो सार्वजनिक किया गया, न ही विधानमंडल में इस पर बहस हुई, और न ही यह किसी कठोर समकालीन अनुभवजन्य जांच की आवश्यकता को पूरा करती है.”
याचिका में कहा गया है, “तेलंगाना Government ने संविधान के अनुच्छेद 243डी(6) और 243टी(6) को मिसकंसीव (गलत रूप से इसकी व्याख्या) किया है. हालांकि ये प्रावधान राज्य विधानमंडल को स्थानीय निकायों में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण देने का अधिकार देते हैं, लेकिन यह अधिकार संवैधानिक सीमाओं के अधीन है, जिसमें न्यायिक रूप से लगाई गई 50 प्रतिशत की अधिकतम सीमा भी शामिल है.”
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केआर/
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