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दालों की मांग में जबरदस्त इजाफा, फिर भी MSP से नीचे क्यों आए रेट? समझिए पूरा माजरा

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Pulses Price Update: देश में दालों की खपत साल दर साल बढ़ रही है. यही कारण है क‍ि दालों के आयात का हर साल नया र‍िकॉर्ड बन रहा है. मौजूदा समय में दालों का आयात करीब 7.7 मिलियन मीट्रिक टन पर पहुंच गया है. आयात बढ़ने के बावजूद देश में दालों की पैदावार में कमी आई है. पिछले चार साल के दौरान दालों की खेती का क्षेत्रफल करीब 3.1 मिलियन हेक्टेयर कम हो गया है. क्‍या सरकारी योजनाओं के बावजूद किसानों को एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) की गारंटी नहीं म‍िलने से परेशानी बढ़ रही है. आखिर क्‍यों आ रही है दालों की पैदावार में ग‍िरावट?

दुन‍ियाभर की कुल खेती का 35.87% हिस्सा

भारत दुनिया का सबसे बड़ा दाल उत्पादक देश है. भारत दुन‍ियाभर की कुल खेती का 35.87% हिस्सा रखता है. लेकिन उत्पादन में ह‍िस्‍सेदारी महज 27.4% है. ड‍िमांड और सप्‍लाई के बड़े अंतर के कारण भारत दालों का सबसे बड़ा आयातक देश बन गया. मौजूदा समय में घरेलू खपत 29 मिलियन टन है, जबकि उत्पादन 25.238 मिलियन टन के करीब है. इस तरह ड‍िमांड और सप्‍लाई के बीच का अंतर 3.762 मिलियन टन है. लेकिन इस बार आयात 7.654 मिलियन टन का हो गया. नीति आयोग की रिपोर्ट में दावा क‍िया गया क‍ि यह अतिरिक्त आयात किसानों को नुकसान पहुंचा रहा है.

दालों का रकबा 30.731 मिलियन हेक्टेयर रहा
एग्रीकल्‍चर म‍िन‍िस्‍ट्र्री के आंकड़ों से यह साफ है क‍ि साल 2021-22 में दालों का रकबा 30.731 मिलियन हेक्टेयर था. लेकिन 2024-25 में यह घटकर 27.624 मिलियन हेक्टेयर रह गया. इसका कारण किसानों को फसल का सही दाम नहीं म‍िलना रहा. मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया क‍ि पांच प्रमुख दाल फसलों में से चार के बाजार भाव तेजी से गिरे हैं, जबक‍ि प्रोडक्‍शन की कॉस्‍ट बढ़ रही है. अगर मांग बढ़ रही है तो दाम में तेजी आनी चाह‍िए. लेकिन आयात नीति से क‍िसानों की फसल एमएसपी पर भी नहीं खरीदी जा रही. इस हालात में कोई भी क‍िसान घाटे में अपनी फसल की ब‍िक्री नहीं करना चाहेगा, न ही खेती करना चाहेगा.

तूर की दाल के रेट 42% तक ग‍िरे
एग्रीकल्‍चर म‍िन‍िस्‍ट्र्री की रिसर्च रिपोर्ट से साफ हुआ है क‍ि अगस्त 2024 के मुकाबले अगस्त 2025 में तूर की दाल के रेट 42% तक ग‍िरे. इसी तरह उड़द 20% और चना 18% नीचे आया. 1 अक्टूबर 2025 को भी रेट एमएसपी से नीचे ही थे. तूर दाल 1838 रुपये, मूंग 2250 रुपये और उड़द 2063 रुपये कम रहा. यह हालात तब है जब दालों के मामले में भारत अपना खर्च चलाने में भी सक्षम नहीं है. न‍ियम यह कहता है क‍ि कम उत्‍पादन और ज्‍यादा मांग के बीच दाम बढ़ने चाहिए. लेकिन बाजार आयात की दाल से भर गया है. दाल कारोबार‍ियों का कहना है क‍ि ज्‍यादा आयात होने से दाम नीचे आ गए हैं. इससे कस्‍टमर को तो दाल सस्‍ती म‍िल रही है लेक‍िन घाटे में क‍िसान है.

किसानों का सबसे बड़ा नुकसान
नीति आयोग की र‍िपोर्ट के अनुसार देश में दालों की कमी महज 3.762 मिलियन टन की है. लेक‍िन दालों का आयात 7.654 मिलियन टन का क‍िया गया. अब ऐसे में सवाल यही है क‍ि अतिरिक्त आयात क्‍यों? साल 2024-25 में आयात बढ़कर 6.5 मिलियन टन पहुंच गया, जो क‍ि पिछले साल से 40% ज्यादा है. म्‍यांमार, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया आद‍ि से रिकॉर्ड आयात क‍िया गया. ड्यूटी-फ्री इम्‍पोर्ट पॉल‍िसी से दाम नीचे आए लेक‍िन किसानों को उनका एमएसपी तक नहीं म‍िल पाया. चने के रेट 83 रुपये से घटकर 50 रुपये किलो हो गए.

प‍िछले द‍िनों केंद्रीय कैबिनेट की तरफ से दालों को लेकर ‘मिशन आत्मनिर्भरता इन पल्सेस’ शुरू क‍िया गया. 2025-26 से 2030-31 तक चलने वाली यह योजना 11,440 करोड़ रुपये की है. इसके तहत खेती क्षेत्र 27.5 मिलियन हेक्टेयर से बढ़ाकर 31 मिलियन हेक्टेयर, उत्पादन 35 मिलियन टन और उत्पादकता 1,130 किलो प्रति हेक्टेयर करने का लक्ष्‍य रखा गया है. इसके तहत 416 ज‍िलों पर फोकस क‍िया जाएगा. इसमें तूर दाल, उड़द और मसूर पर स्‍पेशल फोकस करने की बात है. जानकारों का कहना है क‍ि बिना एमएसपी गारंटी के यह योजना कामयाब नहीं हो पाएगी.

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