बिहार की राजनीति में बाहुबल और चुनाव का रिश्ता नया नहीं है। दशकों से यहां चुनावी मैदान में ऐसे नेताओं का दबदबा रहा है जिनकी पहचान विकास योजनाओं से ज्यादा आपराधिक छवि और बाहुबल के कारण बनी।
लोकसभा चुनाव 2024 के बाद एक बार फिर यह तस्वीर साफ हो गई है कि विधानसभा चुनाव की सरगर्मी जेल से निकले दिग्गजों की मौजूदगी से और ज्यादा बढ़ने वाली है।
जेल से बाहर लौटे बड़े नाम
लोकसभा चुनाव खत्म होते ही कई चर्चित बाहुबली नेता जेल से बाहर आए। इनमें मोकामा के बाहुबली और पूर्व विधायक अनंत सिंह, नवादा के कद्दावर नेता राजवल्लभ यादव, शेखपुरा-नवादा बेल्ट के पुराने दबंग अशोक महतो और पूर्व सांसद आनंद मोहन जैसे नाम शामिल हैं।
इन सभी की वापसी से सियासी हलचल तेज हो गई है। माना जा रहा है कि इनमें से अनंत सिंह और राजवल्लभ यादव विधानसभा चुनाव में सीधे मैदान में उतर सकते हैं।
अनंत सिंह और राजवल्लभ
अनंत सिंह लंबे समय तक मोकामा की राजनीति के “छोटे सरकार” कहलाए जाते रहे हैं। उनके जेल से बाहर आने के बाद यहां का समीकरण बदलना तय है। वहीं, राजवल्लभ यादव भी नवादा में एक मजबूत आधार रखते हैं। उनकी रिहाई के बाद समर्थकों में चुनावी उत्साह दिख रहा है।
आनंद मोहन और अशोक महतो की सक्रियता
पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई लोकसभा चुनाव के दौरान हुई थी। उनकी पत्नी लवली आनंद पहले से ही चुनावी मैदान में सक्रिय हैं। इसी तरह, दिसंबर 2023 में जेल से बाहर आए अशोक महतो ने अपने प्रभाव को जिंदा रखने के लिए पत्नी को मुंगेर लोकसभा सीट से राजद के टिकट पर चुनाव लड़वाया था। अब विधानसभा चुनाव में उनकी भूमिका पर सबकी नजर है।
रीतलाल यादव पर भी निगाहें
राजद विधायक रीतलाल यादव अभी भागलपुर जेल में बंद हैं। उन पर कई आपराधिक मामले दर्ज हैं। इसके बावजूद उनका इलाकाई नेटवर्क और समर्थकों का जनाधार मजबूत है। सवाल यह है कि क्या राजद उन्हें जेल में रहते उम्मीदवार बनाएगा या नहीं। लेकिन इतना पक्का है कि उनके समर्थक किसी भी हालत में उन्हें मैदान में देखना चाहेंगे।
रणनीति सलाखों के पीछे से भी
बिहार की राजनीति में यह भी परंपरा रही है कि कुछ नेता जेल के अंदर रहते हुए भी चुनावी जंग की रणनीति बनाते हैं। चर्चा है कि राजद विधायक रीतलाल यादव इस बार भी इसी अंदाज में सियासी खेल खेल सकते हैं। उन पर कई आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं, लेकिन समर्थकों का मानना है कि उनकी पकड़ इतनी मजबूत है कि वे जेल में रहते हुए भी चुनाव जीत सकते हैं।
पुरानी परंपरा, नया चुनाव
यह तस्वीर बिहार के लिए अनजानी नहीं है। 1977 में आपातकाल के दौरान जार्ज फर्नांडीस जेल में रहते हुए मुजफ्फरपुर से सांसद चुने गए थे। इसके बाद सीवान के मोहम्मद शाहाबुद्दीन और कई अन्य नेताओं ने जेल की सलाखों के भीतर रहते हुए चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। 2015 में भाकपा (माले) के सतदेव राम ने सीवान की दरौली सीट से जेल में रहते ही शानदार जीत हासिल की थी।
विधानसभा चुनाव पर असर
इस बार विधानसभा चुनाव में बाहुबली नेताओं की एंट्री कई सीटों पर मुकाबले को दिलचस्प बना सकती है। मोकामा, नवादा, शेखपुरा, हिलसा, आरा और सीवान जैसे इलाकों में इन नेताओं के आने से जातीय समीकरण और समर्थन का गणित बदल सकता है। बाहुबल, जातीय पहचान और समर्थकों की निष्ठा-ये तीनों मिलकर चुनावी मैदान को और पेचीदा बना देंगे।
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