दुमका. झारखंड की उपराजधानी दुमका के मो. नौशाद शेख ने साम्प्रदायिक सौहार्द की अनूठी मिसाल पेश की है. इस्लाम धर्म के पाबंद मो. नौशाद शेख की कृष्ण भक्ति इनदिनों चर्चा में है. करीब चार दशकों से प्रभु कृष्ण के उपासक मो. नौशाद शेख ने अपने गांव में खुद के लगभग 40 लाख रुपये खर्च कर भगवान श्रीकृष्ण का मंदिर बनाकर पूरे देश को एकता, सदभाव व भाईचारे का संदेश देने की कोशिश की है. पेशे से प्रखंड उपप्रमुख मो. नौशाद सभी मजहबों का सम्मान करते हैं और उनके इस पहल की मुस्लिम समुदाय से लेकर हिन्दू समाज तक सराहना कर रहे हैं.
पूरी दुनिया को एकता एवं अखंडता का संदेश देनेवाले भारत में आज भले ही धर्म को लेकर लोगों के बीच दूरियां बढ़ रही हो, चुनाव में यह मुद्दा बन रहा हो, लेकिन शांति व सदभाव प्रिय भारत में ऐसे लोग भी हैं, जो जाति-धर्म से अलग हटकर देश और दुनिया को साम्प्रदायिक सौहार्द और अनेकता में एकता का संदेश देने का काम कर रहे हैं. दुमका के रानीश्वर प्रखंड के महेश बथान गांव के रहने वाले मो. नौशाद शेख ने साम्प्रदायिक सौहार्द की एक ऐसी मिसाल पेश की है. जिससे हर भारतीय खासकर वोट बैंक के खातिर जाति व धर्म की राजनीति करने वाले नेताओं और उनके समर्थकों को सबक लेने की जरूरत है.
मो नौशाद गांव में प्रखंड उपप्रमुख हैं और दूसरे धर्मो के प्रति न सिर्फ आदर समभाव रखते बल्कि दूसरे धर्म के धार्मिक कार्यों में बढ़ चढ़कर शामिल होते हैं. इसी कड़ी में करीब चार दशकों से कृष्ण भक्ति में डूबे समाजसेवी मो. नौशाद ने अपने निजी खर्च से भगवान श्रीकृष्ण के पार्थसारथी स्वरूप का विराट मंदिर बनवा रहे हैं, जिसका निर्माण कार्य अब अंतिम चरणों में हैं.
मो. नौशाद कहते हैं कि वो भले ही इस्लाम के पाबंद हैं, लेकिन उन्हें हिन्दू धर्म में भी गहरी आस्था है. मेरी आस्था वर्षों से यहां स्थापित भगवान पार्थसारथी के प्रति रही है. जहां तक मंदिर बनवाने का सवाल है, एक बार मैं पश्चिम बंगाल के मायापुर गया था, जहां भगवान श्रीकृष्ण का भव्य मंदिर है. रात को मैं जब सोया हुआ तो मुझे भगवान का स्वप्न आया कि मैं तो तुम्हारे यहां ही विराजमान हूं. तुम अपने गांव में एक मंदिर बनाकर मुझे स्थापित करो. इसके बाद मैंने इस मंदिर को बनाने का निश्चय किया.
वे कहते हैं कि हमें सभी धर्मों का आदर करना चाहिए. सभी धर्म के जो धार्मिक कार्य हैं, उसमें भाग लेना चाहिए, ताकि एक सामाजिक-धार्मिक सौहार्द और भाईचारा का माहौल बना रहे.
गांव के जानकार बताते हैं कि करीब 300 साल पहले बंगाल के हेतमपुर इस्टेट के राजपरिवार ने प्रभु पार्थ सारथी की पूजा मिट्टी की प्रतिमा बनाकर शुरू की थी. महेश बथान इसी इस्टेट के अंदर आता था. लेकिन जमींदारी प्रथा के उन्मूलन के बाद यह बंद हो गया था. करीब 1980 के दशक में रानीश्वर के प्रमुख मो. कादिर ने यहां पूजा फिर शुरू कराई. नौशाद के इस पहल से गांव के हिन्दू व मुस्लिम समाज के लोग भी खुश हैं और सभी उनकी सराहना कर रहे हैं.
You may also like
कनाडा चुनाव की एडवांस वोटिंग में कई नागरिकों ने लिया हिस्सा
Chanakya Niti: जीवन में भूलकर भी इन लोगों को नींद में न उठाएं.. वरना लाइफ हो जाएगी तबाह ∘∘
Chanakya Niti: जीवन में भूलकर भी इन लोगों को अपने घर पर न बुलाएं.. वरना खुशियों पर लग जाएगा ग्रहण ∘∘
La Liga 2025: Fede Valverde's 93rd-Minute Stunner Keeps Real Madrid's Title Hopes Alive
कई सालों बाद इन 3 राशियों के स्वामी होंगे प्रसन्न देखिए…