मिट्टी के बर्तनों का उपयोग भारत में सदियों से होता आ रहा है। दही का मट्ठा और घी भी मिट्टी की हांडी में बनते थे। यह समझना महत्वपूर्ण है कि भारत में मिट्टी के बर्तनों का प्रचलन क्यों रहा। दरअसल, भारत में बॉक्साइट की प्रचुरता है, जिससे एल्युमीनियम का निर्माण संभव था, लेकिन इसकी आवश्यकता नहीं थी। इसलिए, मिट्टी के बर्तनों का निर्माण किया गया।
कुम्हारों की एक पूरी पीढ़ी इस कला में माहिर है, जो मिट्टी के बर्तनों का निर्माण कर हमारे स्वास्थ्य की रक्षा करती है। यह एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसमें मिट्टी के विभिन्न प्रकारों का चयन किया जाता है।
दुर्भाग्यवश, कुम्हारों को समाज में नीची जाति माना गया है, जबकि वे वास्तव में वैज्ञानिक हैं। यह ऊंच-नीच की धारणा अंग्रेजों और उनके पूर्ववर्तियों द्वारा स्थापित की गई थी।
इस विडियो में देखिए फाइव स्टार होटल में मिटटी के बर्तनों में खाना बनता है >>
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कुम्हारों का कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे मिट्टी के बर्तनों के माध्यम से सूक्ष्म पोषक तत्वों को बनाए रखते हैं। मिट्टी की हांडी में खाना पकाने से पोषण की गुणवत्ता बनी रहती है।
मिट्टी के बर्तनों का उपयोग करने से न केवल स्वास्थ्य में सुधार होता है, बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी लाभकारी है। मिट्टी की हांडी का उपयोग करने से जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है।
यदि आप जीवन में गुणवत्ता की तलाश कर रहे हैं, तो मिट्टी की हांडी की ओर लौटना आवश्यक है। यह भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
पिछले कुछ वर्षों में, मैंने गांवों में कुम्हारों की महत्ता के बारे में जागरूकता बढ़ाई है। इससे कुम्हारों की इज्जत बढ़ी है और उन्हें समाज में उचित स्थान मिला है।
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