भारत में कई बार जायदाद या संपत्ति ही नहीं, क़ानूनी मुक़दमे भी विरासत में मिलते हैं.
अभी देश भर में 5.2 करोड़ से ज़्यादा मुक़दमे सभी अदालतों के सामने लंबित हैं. इनमें 60 लाख से ज़्यादा मामले 10 साल से ज़्यादा समय से चलते आ रहे हैं. ये आँकड़े कोर्ट और सरकार द्वारा संचालित '' के हैं.
उत्तर प्रदेश में लंबित केसों की समस्या ख़ास तौर से गंभीर है. यहाँ की सभी अदालतों में एक करोड़ बीस लाख से ज़्यादा मामले लंबित हैं. हाल में इलाहाबाद हाई कोर्ट में लंबे समय तक केसों के चलते रहने का मामला काफ़ी चर्चा में रहा है.
इस साल फ़रवरी में एक फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उनके सामने इलाहाबाद हाई कोर्ट के कई ऐसे मामले आ रहे हैं जो तीन दशकों से लंबित हैं. वहीं सुप्रीम कोर्ट की एक और बेंच ने इसी साल जनवरी में की थी कि हाई कोर्ट में केस 'फ़ाइल और लिस्ट होने की प्रक्रिया चरमरा गई है.'
मुक़दमे लंबे वक़्त तक क्यों लंबित रहते हैं, यह जानने- समझने के लिए बीबीसी हिंदी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट का दौरा किया. हाई कोर्ट का हाल समझने के लिए वहाँ वकीलों, पूर्व जजों और वादियों से बात भी की.
हाई कोर्ट के आँकड़ेपहले चलते हैं आँकड़ों की ओर.
आँकड़े भी इलाहाबाद हाई कोर्ट में पेंडेंसी यानी लंबित केसों की बढ़ती समस्या दिखाते हैं. इस वक़्त इलाहाबाद हाई कोर्ट के सामने 11 लाख से ज़्यादा केस लंबित हैं.
हाल ही में प्रकाशित '' में यह पाया गया कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के हर जज के सामने औसतन 15,000 मामले लंबित हैं. 'भारत न्याय रिपोर्ट', भारत में लंबित मुक़दमों की स्थिति और इंसाफ़ तक पहुँच के मुद्दे पर अध्ययन है.
के मुताबिक़, इलाहाबाद हाई कोर्ट में मामले औसतन 11 साल से ज़्यादा समय से लंबित थे. इस रिपोर्ट के लिए 25 प्रदेशों की अदालतों का अध्ययन किया गया था. इसमें उत्तर प्रदेश में हाई कोर्ट में केस लंबित होने का औसतन समय सबसे ज़्यादा था.
वादियों पर असरमुक़दमों की इतनी बड़ी संख्या से उन लोगों पर क्या असर पड़ता है, जो इनसे जुड़े हैं यानी वादी? पेंडिंग मामले सिर्फ़ एक आँकड़ा नहीं हैं. केस लंबित होने का मतलब है, किसी का जेल में पड़े रहना, संपत्ति का मामला दशकों तक न सुलझना और सबसे बढ़कर इंसाफ़ न मिलना.
बातचीत में कई वकीलों ने बताया कि कई वादी, यानी जिनके मुक़दमे चल रहे हैं, वे बहुत परेशान हैं. सीनियर एडवोकेट सैयद फ़रमान नक़वी अपने एक मुवक्किल के बारे में बताते हैं, "जब उनसे बात होती है, वह कहते हैं कि वकील साहब क्या मेरे मरने के बाद केस ख़त्म होगा?"
कुछ ऐसे लोग हैं जो केस ख़त्म होने की बात सालों में नहीं बल्कि जीवनकाल में करते हैं.
बाबू राम राजपूत कानपुर के निवासी हैं. साल 1992 में उन्होंने नीलामी में एक ज़मीन ख़रीदी थी. उन्हें अब तक इस ज़मीन का क़ब्ज़ा नहीं मिला है. क्यों? क्योंकि 33 साल से इस ज़मीन पर कोर्ट केस चल रहा है. वह कहते हैं, "मैं बस चाहता हूँ कि मेरे जीवनकाल में ये केस ख़त्म हो जाए. मैं परेशान हो गया हूँ."
उन्होंने हमें बताया कि हाई कोर्ट में पाँच बार वकील बदल चुके हैं. हमने उनकी कोर्ट की फ़ाइल देखी. इसे देख कर साफ़ नज़र आता है कि केस लंबे वक़्त से चलता आ रहा है. फ़ाइल की शुरुआत में सफ़ेद पन्नों पर कंप्यूटर से प्रिंट आउट किए काग़ज़ हैं. जैसे-जैसे हम फ़ाइल में आगे बढ़ते गए, पन्ने पुराने होते गए. आख़िर में हमें बुरी हालत में आधे फटे हुए पीले काग़ज़ मिले. इन पर टाइपराइटर से अक्षर टाइप किए हुए थे.
यही नहीं, कई वकीलों के पास तो ऐसे मामले भी हैं जो पीढ़ियों से चलते आ रहे हैं. हाई कोर्ट के एक वकील स्वप्निल कुमार बताते हैं, "मैं अभी एक ऐसा केस कर रहा हूँ, जो मेरे मुवक्किल के पिताजी ने किया था. अब उनके बेटे केस को लड़ रहे हैं."
जब हाई कोर्ट ने माफ़ी माँगीहालात का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अपने हाल के दो फ़ैसलों में हाई कोर्ट ने देरी के लिए माफ़ी माँगी.
साल 1979 के एक बलात्कार और हत्या के मामले में हाई कोर्ट ने इस अप्रैल में फ़ैसला दिया यानी 46 साल बाद. इस बीच, पाँच में से चार अभियुक्तों की मृत्यु हो चुकी थी. एक ही अभियुक्त ज़िंदा हैं. अब वे 74 साल के हो चुके हैं. ने इस देरी के लिए इस केस से जुड़े लोग और पूरे समाज के प्रति खेद जताया.
हाल ही में एक और मामला कोर्ट के सामने आया था. इसमें उन्हें यह तय करना था कि एक गोदनामा (एडॉप्शन) वैध है या नहीं. इसे तय करने में हाई कोर्ट को 41 साल लग गए. दिसंबर 2024 में दिए अपने फ़ैसले में कोर्ट ने कहा, "इस फ़ैसले को आने में चार दशक लग गए इसलिए कोर्ट वादियों से माफ़ी माँगता है."
यह तो बस इलाहाबाद हाई कोर्ट में लगा समय है. हाई कोर्ट के पहले मामला ट्रायल कोर्ट में भी चलता है. यही नहीं, दशकों मामला चलने के बाद भी हाई कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में भी अपील हो सकती है. ऐसी हालत में मुक़दमा और लंबा चल सकता है.
वकील क्या सोचते हैंकई वकीलों को यह आशंका है कि अगर अदालतों में जल्दी केस नहीं निपटाए जाएँगे तो इससे हताश लोग क़ानून अपने हाथ में लेने लगेंगे.
इलाहाबाद बार एसोसिएशन के प्रेसिडेंट और सीनियर एडवोकेट अनिल तिवारी कहते हैं, "लोगों का भरोसा टूट रहा है."
कई वकीलों ने यह कहा कि कोर्ट में मामलों का जल्द निपटारा नहीं होने के कारण लोग 'ग़ैरक़ानूनी' तरीक़ों से विवाद सुलझाने की कोशिश करते हैं.
आसान नहीं हाई कोर्ट तक की दौड़लोगों ने इलाहाबाद हाई कोर्ट तक आने-जाने में होने वाली परेशानियों के बारे में भी बताया. बाबू राम राजपूत बताते हैं कि हाई कोर्ट में केस लड़ना आसान काम नहीं है. वकीलों और केस के बाक़ी ख़र्चे के अलावा इलाहाबाद आना-जाना भी मुश्किल रहता है.
क्षेत्रफल के हिसाब से उत्तर प्रदेश भारत का चौथा सबसे बड़ा राज्य है. इलाहाबाद हाई कोर्ट की एक बेंच लखनऊ में भी है. लखनऊ हाई कोर्ट बेंच के दायरे में 16 ज़िले आते हैं. बाक़ी 59 ज़िले इलाहाबाद हाई कोर्ट के तहत आते हैं.
बाबू राम राजपूत बताते हैं, "मेरी उम्र 70 साल से ज़्यादा हो गई है. अगर मेरा केस कोर्ट में लगता है, तो इसकी ख़बर मुझे एक- दो दिन पहले ही मिलती है. तो इतने कम वक़्त में इलाहाबाद जाना भी आसान नहीं होता. वक़्त लगता है. पैसे लगते हैं. ऊपर से मेरी उम्र भी ज़्यादा है तो सफ़र करने में मुश्किल होती है."
ग़ौर करने वाली बात है कि कानपुर से लखनऊ ज़्यादा पास है. इसके बाद भी कानपुर के मुक़दमे प्रयागराज में इलाहाबाद हाई कोर्ट के तहत आते हैं. सालों से प्रदेश में वकीलों की माँग रही है कि लखनऊ के दायरे में ज़्यादा ज़िले दिए जाएँ. साथ ही हाई कोर्ट की नई बेंच भी बनाई जाए.
कुछ साल पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के वकीलों ने हाई कोर्ट की एक नई बेंच के लिए प्रदर्शन किया था. उस दौरान वकीलों का था कि उनके लिए तो इलाहाबाद हाई कोर्ट से ज़्यादा क़रीब लाहौर हाई कोर्ट है.
विशेषज्ञों का मानना है कि केस की बढ़ती पेंडेंसी (लंबित होने) के कई कारण हैं.
मार्च 2025 में केंद्रीय क़ानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने राज्य सभा में इलाहाबाद हाई कोर्ट में केस पेंडेंसी के बारे में एक सवाल का जवाब देते हुए कहा था कि पेंडेंसी सिर्फ़ जजों की कमी के कारण नहीं है. उन्होंने कहा कि पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर, वकीलों, जाँच एजेंसियों, वादियों का सहयोग, वकीलों द्वारा वक़्त माँगना- इन सब वजहों से भी मुक़दमे लंबे चलते हैं.
इलाहाबाद हाई कोर्ट में सीनियर वकील अमरेंद्र नाथ सिंह का कहना है कि अगर कार्यपालिका अपना काम ठीक से करे तो कई मामले कोर्ट तक ही नहीं पहुँचेंगे. साथ ही, बेहतर वकीलों और जजों के होने से भी हाई कोर्ट बेहतर काम कर पाएगा.
उन्होंने कहा, "कई बार यह भी होता है कि आपके पक्ष में फ़ैसला आया है पर उसका पालन नहीं किया जा रहा. तो ऐसी हालत में फिर से कोर्ट जाना पड़ता है."
कुछ वकीलों का यह भी कहना है कि कोविड महामारी के बाद कुछ हाई कोर्ट में केस फ़ाइलिंग ऑनलाइन होने लगी है. लोग ऑनलाइन बहस भी करते हैं. दूसरी ओर, अभी इलाहाबाद में ये सुविधाएँ कम हैं.
कोर्ट के सामने इतने सारे मामले हैं और इस वजह से यहाँ हर दिन क़ीमती होता है. कई बार अनेक वजहों से वकील हड़ताल भी करते हैं. जैसे, इस साल मार्च में जस्टिस यशवंत वर्मा के तबादले के मुद्दे पर हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने बेमियादी हड़ताल का एलान किया था.
यह हड़ताल पाँच दिनों तक चली. इससे पहले इसी साल फ़रवरी में भी वकीलों ने जजों की नियुक्ति न होने पर एक दिन का हड़ताल किया था.
हालाँकि, इलाहाबाद हाई कोर्ट में जब भी मुक़दमों के लंबित रहने का मुद्दा उठता है तो चर्चा जजों की संख्या के इर्द-गिर्द ज़्यादा होती है.
वलय सिंह भारत न्याय रिपोर्ट के को-फाउंडर हैं. वे कहते हैं कि पेंडेंसी के कई कारण हैं. वलय कहते हैं, "लेकिन शुरुआत ज़्यादा जजों की नियुक्ति से की जानी चाहिए और फिर बाक़ी दिक़्क़तों पर ग़ौर करना चाहिए."
इलाहाबाद हाई कोर्ट में कुल 160 जजों के पद हैं. इसमें लखनऊ बेंच भी शामिल है. हालाँकि, सरकारी डेटा के मुताबिक फ़िलहाल केवल 88 पदों पर जजों की नियुक्ति हुई है. यानी जजों के 72 पद खाली हैं.
सीनियर वकील सतीश त्रिवेदी ने इस साल फ़रवरी में इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की. याचिका में माँग की गई कि हाई कोर्ट में जजों के जो खाली पद हैं, उन्हें जल्द भरा जाए. याचिका में कहा गया है कि नियमों के मुताबिक़, किसी भी जज के रिटायर होने के छह महीने पहले से उनके पद को भरने की प्रक्रिया शुरू हो जानी चाहिए. हालाँकि, इसका पालन हमेशा नहीं होता.
जज पर काम का दबावअगर आप इलाहाबाद हाई कोर्ट के किसी भी दिन की 'कॉज लिस्ट' देखें तो वह हज़ारों पन्नों की होती है. किस दिन कौन सा केस सुना जाएगा, 'कॉज लिस्ट' में इसकी जानकारी होती है.
हर जज के सामने ही रोज़ सैकड़ों मामले लगे होते हैं. अपनी याचिका में सतीश त्रिवेदी ने लिखा है कि कई ऐसे दिन थे जहाँ एक जज के सामने 400 से 800 नए मामले लगे हुए थे. यही नहीं, इसके साथ कई पुराने मामले भी लिस्ट होते हैं.
मुक़दमों को सुनने के लिए हाई कोर्ट में जज के पास रोज़ लगभग पाँच घंटे या 300 मिनट का समय होता है. ऐसे में अगर एक जज एक केस को पाँच मिनट भी सुनते हैं तो 60 मामले ही सुन पाएँगे. ऐसे में कुछ वकीलों की यह भी शिकायत है कि कुछ जज समय पर नहीं बैठते हैं. एक वकील ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, "कई जज हैं जो 10 बजे से काम शुरू कर देते हैं. लेकिन कुछ हैं कि 11-12 बजे से पहले नहीं बैठते."
कई वकीलों ने कहा कि चूँकि जजों की कमी है और मामले बहुत हैं तो नए केस पर ज़्यादा ध्यान दिया जाता है. इस तरह भी पुराने मामले लंबित रहते हैं.
सैयद फ़रमान नक़वी ने कहा कि नए केस में आमतौर पर तात्कालिकता रहती है. जैसे, ज़मानत की माँग, तोड़फोड़ रोकने का आदेश, इत्यादि. वे ध्यान दिलाते हैं, "... लेकिन इन पर अंतरिम आदेश देने के बाद केस लंबित रहता है क्योंकि अदालत के सामने नए मामले लगातार आते रहते हैं."
रिटायर जज क्या कहते हैंइलाहाबाद हाई कोर्ट के रिटायर जज अमर सरन ने कहा कि बहुत केस होने के कारण जज को कई मामलों में एक जैसे फ़ैसले लेने पड़ते हैं. उनके मुताबिक, "मामलों को पूरी तरह सुनने की बजाए, जज निचली अदालत या सरकार को आदेश देते हैं कि उस मामले में क्या करना है."
उन्होंने यह स्वीकार किया कि यह वादियों के लिहाज़ से शायद सबसे अच्छा फ़ैसला नहीं हो, पर वक़्त की कमी के कारण जज के पास भी कोई और चारा नहीं रहता.
इलाहाबाद हाई कोर्ट के रिटायर चीफ़ जस्टिस गोविंद माथुर कहते हैं, "इलाहाबाद ही नहीं, भारत के कई राज्यों के हाई कोर्ट में पेंडेंसी इतनी है कि केस की फ़ाइनल हियरिंग नहीं हो रही. अपील भी कम सुनी जा रही हैं."
उन्होंने बताया कि अलग-अलग मामलों को सुनने में अलग-अलग वक़्त लगता है. उनके मुताबिक़, "जमानत जैसे कुछ मामले थोड़े जल्दी तय किए जा सकते हैं. लेकिन अगर किसी अपील की फ़ाइनल हियरिंग है तो एक-दो घंटे से लेकर तीन-चार दिन तक का वक़्त भी लग सकता है. यह इस चीज़ पर निर्भर होगा कि केस कितना पेचीदा है या कितने गवाह हैं… इत्यादि. कई बार जज कोर्ट में ही अपना फ़ैसला सुनाते हैं. उसमें भी समय लग जाता है."
उन्होंने कहा, "हमें केस-फ़्लो मैनेज करने के लिए एक पॉलिसी बनानी होगी क्योंकि अभी सारे जज अपने मुताबिक़ केस की सुनवाई कर रहे हैं."
क्यों नहीं हो रही जजों की नियुक्ति?हाई कोर्ट में किसी जज को नियुक्त करने की एक लंबी प्रक्रिया होती है. हाई कोर्ट का कॉलेजियम, यानी तीन सबसे सीनियर जज, राज्य सरकार को नाम भेजते हैं. फिर राज्य सरकार अपनी टिप्पणियों के साथ उन नामों को केंद्र सरकार के पास भेजती है. फिर केंद्र सरकार इससे सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को भेजती है. इसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट के दो और सीनियर जज होते हैं.
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम नाम तय कर इसे फिर केंद्र सरकार के पास भेजती है. इसके बाद सरकार जजों को नियुक्त करती है.
जजों की नियुक्ति पर कोर्ट के जज और सरकार के बीच खींचतान चलती रहती है. फ़िलहाल सर्वोच्च न्यायालय में इस बात पर एक मुक़दमा भी चल रहा है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट द्वारा भेजे गए नामों को जजों के रूप में नियुक्त नहीं कर रही है.
इस पूरी प्रक्रिया में कई जगह हैं, जहाँ नाम रुक सकते हैं. हो सकता है हाई कोर्ट ही राज्य सरकार को नाम न भेजे. यह भी हो सकता कि केंद्र सरकार या राज्य सरकार किसी नाम पर आपत्ति जता दे. यह भी हो सकता है कि किसी भेजे गए नाम को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम आगे न बढ़ाए.
साल 2024 में इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक भी नए जज की नियुक्ति नहीं हुई. साल 2025 में अब तक सात जजों की नियुक्ति हुई है.
इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के प्रेसिडेंट अनिल तिवारी कहते हैं, "2007 से हाई कोर्ट में 160 जजों के पद स्वीकृत हैं. पर आज तक कभी पूरे भरे नहीं गए हैं. अगर ये सारे पद भर भी जाए तब भी प्रदेश में पर्याप्त जज नहीं होंगे."
इन सबके बीच, इलाहाबाद हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति पर विवाद भी चल रहा है. बार प्रेसिडेंट अनिल तिवारी का कहना है, "जज कैसे नियुक्त होते हैं, इसमें कोई पारदर्शिता नहीं है."
बार एसोसिएशन ने हाल ही में एक प्रस्ताव भी पारित किया है. इसमें उन्होंने आरोप लगाया है कि ऐसे जज नियुक्त किए जा रहे हैं जो किसी जज के परिवार से ही हैं या किसी प्रभावशाली परिवार से जुड़े हैं.
इस बीच, इस साल अप्रैल में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जजों की नियुक्ति के मामले में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए प्रदेश सरकार और हाई कोर्ट प्रशासन से जवाब माँगा है. इनके जवाब से यह साफ़ होने की संभावना है कि इतने पद क्यों खाली पड़े हैं.
बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां कर सकते हैं. आप हमें , , , और पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)
You may also like
मध्य प्रदेश के मंत्री विजय शाह को लगा झटका, अब Supreme Court ने दिया है ये आदेश
अजवाइन के बीज: आपकी डाइट का छोटा सा सुपरफूड, बड़े-बड़े फायदे!
Russia-Ukraine war: यूक्रेन में खूनी खेल बंद करे रूस, ट्रंप ने कहा पुतिन से करूंगा बात
FATF List And Pakistan: पाकिस्तान को करारी चोट देने की तैयारी में भारत, सूत्रों के मुताबिक FATF वाला बनाया प्लान
यमुनानगर: ऑनलाइन कंपनियों का व्यापार बंद करे सरकार: महेन्द्र मित्तल