कारगिल युद्ध के 26 साल बीत जाने के बाद भी कैप्टन सौरभ कालिया के 78 साल के पिता एनके कालिया अपने बेटे से जुड़े एक मुद्दे को अमलीजामा पहनाने की लड़ाई लड़ रहे हैं.
एक ऐसी लड़ाई जिसमें बीते 26 साल के दौरान उन्हें बहुत उम्मीद तो नहीं मिली है, लेकिन उनका कहना है कि जब तक उनकी सांसें चल रही हैं तब तक उन्हें उम्मीद है.
तो कौन हैं कैप्टन सौरभ कालिया? क्या है कारगिल युद्ध से उनका कनेक्शन और उनका परिवार इतने लंबे समय के बाद भी किस तरह की लड़ाई लड़ रहा है?
आपकी दिलचस्पी अगर इन सवालों में है तो फिर ये पूरी रिपोर्ट आपको पढ़नी चाहिए.
दरअसल कैप्टन सौरभ कालिया को कारगिल युद्ध का पहला 'वॉर हीरो' माना जा सकता है. वह इस युद्ध में मारे जाने वाले भारत के पहले सैन्य अधिकारी थे.
कैप्टन सौरभ कालिया और उनके गश्ती दल के पांच सैनिकों को 15 मई, 1999 को पाकिस्तानी सैनिकों ने पकड़ लिया था.
भारतीय सेना के मुताबिक़, उन्हें कई दिनों तक हिरासत में रखा गया, उनका और उनके साथियों का उत्पीड़न किया गया. 22 दिन बाद उनका क्षत-विक्षत शव भारतीय सेना को सौंपा गया था.
यह युद्धबंदियों को लेकर जिनेवा समझौते का उल्लंघन भी था, और यही वह पहलू है जिसको लेकर एनके कालिया आज भी अपने बेटे के लिए लड़ रहे हैं.
साल 2012 में भारत दौरे पर आए पाकिस्तान के तत्कालीन गृह मंत्री रहमान मलिक ने संवाददाताओं से बातचीत के दौरान कहा था कि यह नहीं कहा जा सकता कि कारगिल युद्ध में मारे गए भारतीय कैप्टन सौरभ कालिया पाकिस्तानी गोली से मरे या फिर ख़राब मौसम के चलते मारे गए?
कारगिल युद्ध के पहले 'वॉर हीरो'इन परिस्थितियों के चलते ही कैप्टन सौरभ कालिया को उतनी चर्चा नहीं मिली, जितनी कारगिल युद्ध में मारे गए अन्य सैन्य अधिकारियों के हिस्से आई.
लेकिन उनकी मौत के क़रीब 26 साल बाद उनके जीवन के बारे में बताने वाली उनकी बायोग्राफ़ी प्रकाशित हुई है.
पेंगुइन इंडिया से प्रकाशित 'द लीगेसी ऑफ़ कैप्टन सौरभ कालिया' को श्रीमति सेन और एनके कालिया ने मिलकर लिखा है.
इस बायोग्राफ़ी में कारगिल युद्ध में उनकी भूमिका और उनके साथ हुई बर्बरता के बारे में विस्तार से ज़िक्र किया गया है.
26 साल बाद इस पुस्तक को लिखने की वजह के बारे में पूछे जाने पर श्रीमति सेन ने बताया, "मई-जून, 1999 में जब यह मामला सामने आया था, तब मैं ग्रेजुएशन कर रही थी और अख़बारों में कालिया के साथ हुई बर्बरता के बारे में पढ़ा था. मेरी दिलचस्पी तभी इसको लेकर हुई थी. मैं हमेशा सोचती थी कि कैप्टन सौरभ कालिया के साथ जो हुआ, उसके बाद उनका परिवार किन परिस्थितियों से गुज़रा होगा. लेकिन उस दौर में इस दिशा में गंभीरता से काम शुरू नहीं कर सकी."
श्रीमति सेन ने अपनी पढ़ाई पूरी की, कामकाजी ज़िंदगी की शुरुआत हुई. इन दिनों नेपाल की राजधानी काठमांडू में रह रहीं श्रीमति सेन ने बताया, "शादी के बाद बेटा हुआ और संयोग ऐसा कि बेटे का जन्म, ठीक उसी तारीख़ को हुआ जिस तारीख़ को सौरभ कालिया का जन्म हुआ था. मुझे लगा कि इस विषय पर काम करना चाहिए और कैप्टन कालिया पर बहुत कुछ उपलब्ध भी नहीं था तो मैंने इस पर काम शुरू किया."
क़रीब एक साल के समय में हिमाचल प्रदेश के पालमपुर ज़िले में कैप्टन कालिया के परिवार और दोस्तों से कई मुलाक़ातों के बाद यह पुस्तक तैयार हुई है, जिसमें कैप्टन सौरभ कालिया के बचपन से लेकर कारगिल युद्ध के दौरान हुई मौत तक का ब्योरा सिलसिलेवार ढंग से जुटाया गया है.
- 1971 की जंग में लोंगेवाला की लड़ाई में जब भारतीय वायुसेना ने निभाई थी बड़ी भूमिका
- लाहौर का एयर डिफ़ेंस सिस्टम तबाह करने का भारत का दावा, पाकिस्तान ने 25 भारतीय ड्रोन गिराने का दावा किया
- भारत और पाकिस्तान: किसकी सेना, कितनी मज़बूत
सौरभ कालिया की जब मौत हुई और पाकिस्तान की सेना ने उनके क्षत-विक्षत शव को भारत को सौंपा था तब उनकी उम्र महज़ 22 साल की थी.
भारतीय सेना में युवा लेफ्टिनेंट के तौर पर शामिल हुए उन्हें लंबा वक्त नहीं हुआ था.
बेटे के सेना में जाने की इच्छा के बारे में एनके कालिया बताते हैं, "मेरे परिवार में तो कोई सेना में नहीं था. नाते-रिश्तेदार में भी नहीं. लेकिन नियति ने मेरे बेटे को देश की सेवा के लिए चुना था."

सौरभ कालिया की मां विजय कालिया के हवाले से श्रीमति सेन ने लिखा है, "11वीं क्लास के लिए उसका दाखिला डीएवी पालमपुर में हुआ और ठीक उसी वक्त उसकी दोस्ती अस्तित्व से हुई. सेना में जाने की उसकी यही दो वजह रही."
- 1971 की जंग में कराची पर हमले में रॉ के जासूसों की क्या थी भूमिका - विवेचना
- भारत की पूर्व राजनयिक ने बताया पाकिस्तान में उनके साथ क्या हुआ- विवेचना
- स्क्वाड्रन लीडर देवैया की कहानी जिन्हें मौत के 23 साल बाद मिला महावीर चक्र - विवेचना
एनके कालिया उस वक्त हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी, पालमपुर में वरिष्ठ वैज्ञानिक थे जबकि सौरभ कालिया की मां विजय कालिया एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी पालमपुर में प्रशासनिक विंग में काम करती थीं.
ऐसे में पिता ने थोड़ी बहुत पूछताछ करने के लिए सौरभ और अस्तित्व को एक साथ बिठाकर ही पूछा कि सेना में जाने का ख्याल कैसे आया.
एनके कालिया याद करते हैं, ''अस्तित्व ने बताया था कि डीएवी पालमपुर से सेना के कई अधिकारी निकले हैं. इन दोनों से दो साल सीनियर विक्रम बत्रा के भी कमीशंड अधिकारी बनने से ये दोनों प्रेरित हुए थे. जब सौरभ से पूछा तो उसने बताया कि मैं लोगों की सेवा के लिए पहले डॉक्टर बनना चाहता था लेकिन अब ईमानदारी और इंटिग्रिटी के लिए सेना में जाऊंगा.''
कैप्टन विक्रम बत्रा की भी कारगिल युद्ध के दौरान मौत हुई थी.
हालांकि किस्मत ने सौरभ और अस्तित्व के लिए अलग-अलग राह चुनी.
सौरभ कमीशंड अधिकारी बन गए जबकि अस्तित्व का चयन नहीं हो पाया और वह बाद में बैंक में नौकरी करने लगे.
सौरभ कालिया के कमीशंड अधिकारी बनने तक के सफ़र में उनके माता-पिता, दोस्तों के अलावा उनके छोटे भाई वैभव कालिया का अहम योगदान रहा.
उनका पूरा परिवार अपने बेटे के योगदान को लेकर गर्व महसूस करता आया है.
सौरभ कालिया की मां, विजय कालिया उम्र बढ़ने से स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों का सामना कर रही हैं, लेकिन वह गर्व से हर किसी को दो बातें ज़रूर बताती हैं.
पहली तो कारगिल से ठीक पहले दिसंबर, 1998 में सौरभ पालमपुर के अपने घर आए तो वापसी के लिए स्टेशन पर ट्रेन पकड़ने से पहले मां से कहा था, "मम्मी एक दिन ऐसा काम करूंगा कि सारी दुनिया में मेरा नाम होगा."
और दूसरी बात यह कि अपनी इसी यात्रा के दौरान सौरभ अपनी मां को एक चेकबुक भी साइन करके दे गए कि जब ज़रूरत होगी तो पैसे निकाल लेना.
- भारत-पाकिस्तान संघर्ष पर ट्रंप का नया दावा- 'पांच लड़ाकू विमान मार गिराए गए थे'
- कांवड़ यात्रा की वो बातें जो कर रही हैं महिला कांवड़ियों को परेशान

29 जून को सौरभ अपने बर्थडे पर परिवार के पास लौटते उससे पहले मई की शुरुआत में ही कारगिल में पाकिस्तान की सेना की घुसपैठ शुरू हो गई थी. इसी दौरान लेफ्टिनेंट कालिया और उनके पांच सैनिकों को बजरंग पोस्ट की रेकी की ज़िम्मेदारी दी गई.
15 मई 1999 को सौरभ कालिया, अपने पांच साथियों, सिपाही मूला राम बिदियासर, सिपाही भिखा राम मूंढ, सिपाही अर्जुन राम बसावनबिहा, सिपाही भंवर लाल बगारिया, सिपाही नरेश सिंह सिनसिनवार के साथ रवाना हुए.
सुबह चार बजे से निकलकर इन लोगों का इरादा आठ घंटे की चढ़ाई पूरी करके बजरंग पोस्ट तक पहुंचना था.
लेकिन मुश्किल चढ़ाई तक पहुंचने में वक़्त लगा और जब ये लोग बजरंग पोस्ट तक पहुंचे तो ऊंचाई पर होने का फ़ायदा उठाते हुए पाकिस्तानी सैनिकों ने कथित तौर पर इन लोगों को बंदी बना लिया.
इसके बाद अगले 22 दिन तक इन लोगों का कोई पता नहीं चला. परिवार को 15 दिनों के बाद समाचार पत्रों के माध्यम से सौरभ कालिया के लापता होने की ख़बर मिली.
31 मई को अख़बारों में छपी ख़बर के आधार पर हैरान-परेशान परिवार वालों ने पालमपुर के होल्टा कैंट में जाकर जानकारी हासिल करने की कोशिश की, लेकिन किसी को कोई जानकारी नहीं थी.
परिवार ने तत्कालीन स्थानीय सांसद शांता कुमार से संपर्क किया. और उन्होंने तब के केंद्रीय रक्षा मंत्री जॉर्ज फ़र्नांडिस से भी बात की.
उच्च स्तरीय दख़ल के बाद भी केवल इतना पता चल पाया कि लेफ्टिनेंट कालिया लापता हैं.
परिवार अनिश्चितताओं के बीच उम्मीद का दामन थामे हुए था लेकिन आठ जून को इन लोगों का दिल तब टूट गया जब सरकारी चैनल दूरदर्शन ने ख़बर दी कि लेफ्टिनेंट कालिया और पांच सैनिक मारे गए हैं.
पाकिस्तानी सेना की ओर से घोषणा हुई कि नौ जून को इनके शव भारतीय सेना को सौंपे जाएंगे.
कैप्टन कालिया का शव पहले श्रीनगर, फिर दिल्ली और उसके बाद पालमपुर पहुंचा.
शव इतनी बुरी तरह क्षत-विक्षत था कि सौरभ के भाई वैभव कालिया ने तय किया कि उन्हें माता-पिता को नहीं देखने दिया जाए. सौरभ कालिया के अंतिम संस्कार में पूरा पालमपुर उमड़ पड़ा था.
- कांवड़ यात्रा के बीच मुस्लिम ढाबा मालिक और कर्मचारी क्या कर रहे हैं - ग्राउंड रिपोर्ट
- तिरपाल की झोपड़ी से जापान तक: उत्तर प्रदेश की पूजा बनीं राष्ट्रीय वैज्ञानिक प्रतिभा की मिसाल
लेकिन सौरभ कालिया की मौत कैसे हुई और किन परिस्थितियों में हुई थी, इस सवाल का जवाब नहीं मिल पा रहा था.
ऐसे में एनके कालिया ने भारतीय सेना से बेटे के पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट की मांग की और इस रिपोर्ट को देखने के बाद ही उन्हें अपने बेटे के साथ की गई बर्बरता और यातनाओं के बारे में पता चला.
उन्होंने इसे युद्धबंदियों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्य जिनेवा कन्वेंशन का उल्लंघन बताते हुए पाकिस्तान के ख़िलाफ़ इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस में जाने की मांग की थी.
लेकिन भारत सरकार की नीति रही है कि वह भारत और पाकिस्तान के मामले में किसी की मध्यस्थता स्वीकार नहीं करता है और यही वजह है कि भारत की ओर से यह मामला इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस में नहीं ले जाया जा सका है.
पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांगकैप्टन कालिया के पिता बेटे की मौत को युद्ध अपराध की श्रेणी में रखते हुए पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग करते हुए सालों से सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद लगाए बैठे हैं.
हालांकि इस मामले में अभी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू नहीं हुई है.
एनके कालिया कहते हैं, "मैं केवल अपने बेटे के लिए ये केस नहीं लड़ रहा हूं. बल्कि मैं चाहता हूं कि कोई माता-पिता इस बात से डर नहीं जाएं कि युद्धबंदी होने के बाद बेटे के साथ ऐसा होगा और वह अपने बेटे को सेना में ना भेजें."
पालमपुर में कालिया परिवार ने अपने बेटे की यादों को संजोने के लिए एक संग्रहालय बनाया हुआ है, जहां रोज़ाना देश के कोने-कोने से लोग पहुंचते हैं, जिसमें कैप्टन कालिया के पास आख़िरी समय तक मौजूद डायरी, पर्स और दूसरी तमाम चीज़ें मौजूद हैं.
बहरहाल, सौरभ कालिया जब कारगिल के अपने अंतिम मिशन के लिए निकल रहे थे तब तक उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि उन्हें लेफ्टिनेंट से कैप्टन बनाए जाने का प्रमोशन संबंधी लेटर जारी हो चुका था.
जो उनको कभी नहीं मिला और उनकी मौत के बाद ही दुनिया उन्हें कैप्टन कालिया के तौर पर जान सकी.
भारत सरकार ने कैप्टन कालिया की मौत के बाद परिवार को एलपीजी गैस की डिस्ट्रीब्यूटरशिप दी और हिमाचल प्रदेश सरकार ने 35 एकड़ में सौरभ वन विहार विकसित किया है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
- कारगिल युद्ध: जब भारत ने अपनी रणनीति से पलट दी बाज़ी
- कारगिल युद्ध में जब जनरल मुशर्रफ़ के फ़ोन से भारत को मिली अहम जानकारी
- ट्रंप के पाकिस्तान से दोस्ताना रवैये के बाद क्या भारत और चीन क़रीब आएंगे?
You may also like
जयंती विशेष : ठाठ बनारसिया, जिसने वाद विवाद संवाद और नामवर को बनाया अमर
सरकार सभी मुद्दों पर चर्चा के लिए तैयार, विपक्ष से रचनात्मक सहयोग की अपील : एसपी सिंह बघेल
मैनचेस्टर टेस्ट ड्रॉ कराना बड़ी उपलब्धि : ज्वाला सिंह
बीसीसीआई के कप्तान के दिन गिनने का समय, सूर्यकुमार यादव की हो सकती है विदाई
भारत ने ड्रॉ के लिए कड़ी मेहनत की : बेन स्टोक्स