अलास्का में जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और व्लादिमीर पुतिन की मीटिंग हो रही थी तो भारत समेत दुनिया भर की नज़रें इस मुलाक़ात पर थीं.
मीटिंग से पहले उम्मीद की जा रही थी कि रूस-यूक्रेन युद्ध पर कोई ठोस समझौता होगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
न तो युद्धविराम को लेकर कोई फ़ैसला लिया गया और न ही किसी तरह की डील का कोई ज़िक्र किया गया.
मुलाक़ात से कुछ दिन पहले ही अमेरिका की तरफ़ से भारत को चेतावनी दी गई थी कि अगर ट्रंप-पुतिन वार्ता नाकाम हुई तो अमेरिका भारत पर अतिरिक्त टैरिफ़ बढ़ा सकता है.
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अलास्का में हुई समिट का भारत ने स्वागत किया और रूस-यूक्रेन युद्ध के जल्द ख़त्म होने की बात कही है.
पुतिन और ट्रंप की मुलाक़ात किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंची और भारत में कई लोगों के मन में यह सवाल है कि टैरिफ़ के संबंध में अब ट्रंप का भारत के प्रति रुख़ क्या होगा?

भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने पुतिन और ट्रंप के बीच हुई मीटिंग पर आधिकारिक प्रतिक्रिया दी है.
रणधीर जायसवाल की तरफ़ से बताया गया, "भारत अलास्का में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच शिखर बैठक का स्वागत करता है. शांति की दिशा में उनका नेतृत्व अत्यंत सराहनीय है."
"भारत शिखर बैठक में हुई प्रगति की सराहना करता है. आगे का रास्ता केवल बातचीत और कूटनीति से ही निकल सकता है. दुनिया यूक्रेन में संघर्ष का जल्द से जल्द अंत देखना चाहती है."
मीटिंग से पहले ट्रंप ने अपने विमान में साथ सफ़र कर रहे पत्रकारों से बातचीत की थी. फ़ॉक्स न्यूज़ से बातचीत में ट्रंप ने दावा किया कि उनके टैरिफ़ ने भारत को रूस से तेल ख़रीद पर रोक लगाने के लिए मजबूर कर दिया है.
ट्रंप ने कहा, "रूस ने अपने तेल के लिए एक प्रमुख ग्राहक खो दिया, जो भारत था. भारत तेल व्यापार का 40 प्रतिशत हिस्सा ख़रीद रहा था. अगर मैं अब सेकेंडरी प्रतिबंध लगाता, तो यह उनके लिए विनाशकारी होता."
भारत ने ट्रंप के इस बयान पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.
ट्रंप के टैरिफ़ की घोषणा के बावजूद ऐसी रिपोर्टें सामने आई हैं कि भारत की ओर से रूसी तेल की ख़रीद पहले की तुलना में बढ़कर 2 मिलियन बैरल प्रतिदिन (बीपीडी) हो गई है.
वैश्विक रियल-टाइम डेटा और एनालिटिक्स कंपनी केप्लर के अनुसार, अगस्त के पहले पखवाड़े में विदेशों से भारत में आने वाले अनुमानित 5.2 मिलियन बैरल प्रतिदिन कच्चे तेल में से 38 प्रतिशत रूस से आया.
रूस से आयात 20 लाख बैरल प्रतिदिन रहा, जो जुलाई में 16 लाख बैरल प्रतिदिन था.
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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 50 प्रतिशत का टैरिफ़ लगाया है, जो एशिया क्षेत्र में किसी भी देश पर लगने वाली सबसे ऊंची टैरिफ़ दर है. ये टैरिफ़ 27 अगस्त से लागू हो जाएंगे.
भारत इस टैरिफ़ दर पर सार्वजनिक रूप से आपत्ति दर्ज करा चुका है. भारत ने कहा था कि अमेरिका और यूरोप ख़ुद रूस से यूरेनियम और उर्वरक ख़रीदते हैं, ऐसे में भारत के ख़िलाफ़ दोहरे मापदंड क्यों अपनाए जा रहे हैं?
अब सवाल है कि अलास्का समिट के बाद भारत पर लगाए गए अमेरिकी टैरिफ़ का भविष्य क्या होगा?
सामरिक मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी मानते हैं कि अलास्का समिट के बाद भारत को राहत मिल सकती है.
ब्रह्मा चेलानी ने एक्स पर लिखा, "अलास्का की बातचीत से ट्रंप शायद रूस से ऊर्जा ख़रीदने पर लगाई गई सेकेंडरी पाबंदियों पर दोबारा विचार करें. चीन पर टैरिफ़ लगाने के सवाल पर उन्होंने (ट्रंप) कहा कि 'आज जो हुआ है, उसके बाद मुझे लगता है अब इस बारे में सोचना नहीं पड़ेगा.' इसी सिलसिले में भारत पर लगी सेकेंडरी पाबंदियां भी टल सकती हैं. इनमें 25 फ़ीसदी अतिरिक्त टैरिफ़ शामिल है, जिसे 27 अगस्त से लागू होना है."
चेलानी का कहना है कि 'भारत और अमेरिका के बीच 25 अगस्त को व्यापार वार्ता फिर शुरू होनी है, जो डेडलाइन से सिर्फ़ दो दिन पहले है. ऐसे में ट्रंप ने शायद अपने लिए पीछे हटने की गुंजाइश बना ली है.'
वॉशिंगटन डीसी स्थित विल्सन सेंटर के निदेशक माइकल कुगलमैन का कहना है कि अलास्का की मीटिंग के बाद भारत और अमेरिका के बीच रिश्तों में और अधिक तल्ख़ी आ सकती है.
माइकल कुगलमैन ने एक्स पर लिखा, "किसी समझौते की घोषणा न होने से ऐसा लगता है कि मुलाक़ात अच्छी नहीं रही. अब अमेरिका-भारत के बीच और तनाव बढ़ सकता है."
पुतिन से मुलाक़ात के बाद ट्रंप ने फ़ॉक्स न्यूज़ को दिया है.
इस इंटरव्यू में ट्रंप से चीन और भारत पर टैरिफ़ को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, "अब मुझे शायद दो या तीन हफ़्ते या कुछ और समय बाद इस बारे में सोचना पड़ेगा, लेकिन हमें अभी इसके बारे में सोचने की ज़रूरत नहीं है."
अनुराधा चिनॉय, जेएनयू के स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज़ की पूर्व डीन और रिटायर्ड प्रोफ़ेसर हैं. वर्तमान में वह जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के साथ बतौर फ़ैकल्टी जुड़ी हैं.
बीबीसी से बातचीत में अनुराधा चिनॉय कहती हैं, "पिछले कुछ सालों में भारत ने अमेरिका से रिश्ते मज़बूत करने के लिए लगभग हर संभव कोशिश की है, बड़ी कंपनियों को बढ़ावा देने से लेकर अमेरिका में एनआरआई संबंधों और रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत करने तक. लेकिन मौजूदा अमेरिकी विदेश नीति दक्षिण एशिया में अपने साम्राज्यवादी हित थोपने पर अड़ी हुई दिखती है. अब जबकि भारत सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और रूस से लेकर ग्लोबल साउथ के साथ बड़ा और किफ़ायती व्यापार कर रहा है, तो उसे इस मामले में सावधान रहना होगा."
भारत की रूसी तेल पर निर्भरतासेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर के एक विश्लेषण के मुताबिक़, जून 2025 तक चीन, भारत और तुर्की, रूसी तेल के तीन सबसे बड़े ख़रीदार देश थे. इसके बावजूद, सबसे ज़्यादा टैरिफ़ भारत पर लगाया गया है.
चीन पर 30 फ़ीसदी और तुर्की पर 15 फ़ीसदी अमेरिकी टैरिफ़ है. अमेरिकी बाज़ार भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाज़ार है.
2024 में भारत के कुल निर्यात का 18 फ़ीसदी अमेरिका में हुआ था. लेकिन 50 फ़ीसदी टैरिफ़ से भारत अमेरिकी बाज़ार में अपने प्रतिद्वंद्वियों से पिछड़ जाएगा.
उदाहरण के लिए वियतनाम और बांग्लादेश की अमेरिका के कारोबार में अहम हिस्सेदारी है. लेकिन उन पर सिर्फ़ 20 फ़ीसदी टैरिफ़ लगा है.
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आयातक देश है. देश की लगभग 85 फ़ीसदी तेल की ज़रूरतें आयात से पूरी होती हैं.
यूक्रेन युद्ध से पहले भारत अपने अधिकतर तेल आयात के लिए मध्य-पूर्व के देशों पर निर्भर था.
वित्त वर्ष 2017-18 में भारत की तेल ख़रीद में रूस की हिस्सेदारी महज़ 1.3 फ़ीसदी थी. लेकिन यूक्रेन युद्ध के बाद तस्वीर बदल गई.
रूस के कच्चे तेल की क़ीमत घटने के साथ भारत का रूस से आयात तेज़ी से बढ़ा. वित्त वर्ष 2024-2025 तक भारत के कच्चे तेल के आयात में रूस की हिस्सेदारी 35 फ़ीसदी तक हो गई.
सस्ता कच्चा तेल मिलने के बावजूद राजधानी दिल्ली में पेट्रोल का औसत खुदरा मूल्य पिछले 17 महीनों से 94.7 रुपये प्रति लीटर पर स्थिर रहा. यानी कम क़ीमत का लाभ उपभोक्ताओं तक नहीं पहुँचा है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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