Next Story
Newszop

लालू यादव को आरजेडी अध्यक्ष बनाकर तेजस्वी के 'ताज' पाने की राह होगी आसान?

Send Push
Santosh Kumar/Hindustan Times via Getty Images पटना के गांधी मैदान में एक कार्यक्रम के दौरान तेजस्वी यादव के साथ लालू प्रसाद यादव

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव 13वीं बार राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए हैं. उनका निर्वाचन निर्विरोध हुआ है.

इसकी औपचारिक घोषणा आगामी पांच जुलाई को पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में होगी.

पांच जुलाई 1997 को आरडेजी के अस्तित्व में आने के बाद से लालू यादव ही लगातार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हैं.

लालू प्रसाद यादव पिछले कई वर्षों से अपनी सेहत से जूझ रहे हैं. 78 साल के लालू यादव किडनी सहित अन्य बीमारियों से ग्रसित हैं. उनकी किडनी का ट्रांसप्लांट भी हुआ है. वे सार्वजनिक मंचों पर कम ही दिखते हैं और राजनीतिक रूप से उनकी सक्रियता भी काफ़ी कम हुई है.

बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री और लालू यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव ही हर मंच पर पार्टी का प्रतिनिधित्व करते दिखते हैं.

इस साल बिहार में विधानसभा के लिए चुनाव भी होना है. ऐसे में ये सवाल उठता है कि क्या उनकी पार्टी अब भी लालू यादव के सहारे ही चुनाव लड़ना चाहती है? और क्या पार्टी के कार्यकर्ता राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर लालू यादव को ही देखना चाहते हैं?

आरजेडी का मतलब ही लालू यादव है image Sonu Mehta/Hindustan Times via Getty Images पार्टी के एक कार्यक्रम में लालू यादव

बीते सोमवार को लालू यादव पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के नामांकन के लिए पहुंचे थे.

बीबीसी ने पार्टी के राष्ट्रीय सहायक निर्वाचन पदाधिकारी चितरंजन गगन से पूछा कि क्या कोई और नामांकन होगा?

उन्होंने जवाब दिया, "राष्ट्रीय परिषद के 10 सदस्य प्रस्तावक के तौर पर होने चाहिए. कोई दूसरा उम्मीदवार इतने प्रस्तावक कैसे लाएगा? आरजेडी का मतलब ही लालू यादव हैं."

नॉमिनेशन दोपहर दो बजे तक होना था. लेकिन लालू यादव के जाते ही दफ़्तर के परिसर में पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए लगा पंडाल खाली होना शुरू हो गया था.

मुन्नी रजक आरजेडी की विधान पार्षद हैं. बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, "लालू और राबड़ी जी हम सबके गार्जियन हैं. वो राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं बनेंगे, तो कौन बनेगा? लालू जी ही हम ग़रीब-गुरबा की उम्मीद हैं, अब उनका काम तेजस्वी जी आगे बढ़ा रहे हैं."

साल 1997 में लालू प्रसाद यादव, रघुवंश प्रसाद सिंह, कांति सिंह और 25 सांसदों ने दिल्ली में राष्ट्रीय जनता दल का गठन किया था.

इन 28 सालों में पार्टी के सबसे महत्वपूर्ण किरदार लालू प्रसाद यादव ही रहे.

आरजेडी सरकार में साल 1992 से 2000 तक ट्रांसपोर्ट और गन्ना मंत्री रहीं शांति देवी बीबीसी से कहती हैं, "लालू जी का सभी के साथ डायक्ट कॉन्टैक्ट था. वो अगर नहीं होते, तो हम लोग रोड पर नहीं चल पाते. ब्लॉक ऑफ़िस, कचहरी में कोई घुसने नहीं देता. ये ठीक है कि लालू जी का स्वास्थ्य ख़राब है लेकिन अभी भी वो पार्टी का भला कर रहे हैं."

लालू, बिहार की राजनीति और मंडल पॉलिटिक्स image BBC

दरअसल सिर्फ़ आरजेडी ही नहीं बल्कि बीते 35 सालों से बिहार की राजनीति लालू के इर्द-गिर्द ही रही है.

लालू यादव ने राजनीति में पहला कदम, एक छात्र नेता के तौर पर 1970 में रखा, जब वो पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए. बाद में 29 साल की उम्र में ही 1977 में उन्होंने जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और सांसद बन गए.

गंवई अंदाज़ में सड़क से लेकर संसद तक संवाद करने वाले लालू, मार्च 1990 में बिहार के मुख्यमंत्री बने.

वरिष्ठ पत्रकार फै़ज़ान अहमद कहते हैं, "मंडल-कमंडल की राजनीति ने लालू को पूरे देश में अलग पहचान दी. हालांकि बगल के राज्य उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव भी थे लेकिन वो लालू जैसी ऊंचाई नहीं पा सके. आडवाणी का रथ रोककर लालू सेक्यूलर ताकतों के हीरो बने तो राज्य के अंदरूनी इलाकों में उन्होंने शोषितों को ज़ुबान दी."

एक ऐसा वक्त भी आया जब बिहार के लिए लालू पर्याय बन गए.

फै़ज़ान अहमद कहते हैं, "लेकिन उनका पर्याय बनना नकारात्मक वजहों से था. उनकी सरकार में एक ख़ास जाति ने क़ानून को अपने हाथ में लिया, सरकारी कामकाज में दखलंदाज़ी की, जिससे बड़े पैमाने पर बिहार से डॉक्टर, इंजीनियर, ट्रेडर्स का पलायन हुआ. इन सबके बीच जो पिछड़ापन लालू राज से पहले ही बिहार में मौजूद था, वो और गहराया."

  • बिहार: नगरपालिका चुनाव में मोबाइल से वोटिंग, देश में पहली बार आज़माया जा रहा यह तरीका
  • बिहार के पूर्णिया के एक गांव में खोला 'थाना', नौकरी का लालच देकर ठगने का आरोप
  • मुख्यमंत्री की कुर्सी या एनडीए में दबाव बनाना, बिहार को लेकर चिराग पासवान के मन में क्या है?
परिवार, पार्टी और वोटरों को साधते लालू image Santosh Kumar/Hindustan Times via Getty Images 2024 की इस तस्वीर में गोवर्धन पूजा के दौरान लालू यादव

1997 में चारा घोटाले में लालू पहली बार जेल गए, लेकिन वो राज्य के साथ-साथ केंद्र की राजनीति में भी सक्रिय रहे.

यूपीए -1 में 22 सांसदों के साथ आरजेडी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी. इस सरकार में लालू यादव ख़ुद रेल मंत्री (2004 से लेकर 2009 तक) रहे.

उनकी पार्टी के रघुवंश प्रसाद सिंह को ग्रामीण विकास मंत्री, प्रेमचंद गुप्ता को नागरिक उड्डयन, तस्लीमुद्दीन को भारी उद्योग एवं सार्वजनिक उपक्रम, कांति सिंह को मानव संसाधन विकास मंत्री बनाया गया था.

रेल मंत्री के तौर पर अपने कार्यकाल को लेकर लालू यादव का दावा है कि उन्होंने "भारतीय रेलवे का वित्तीय कायाकल्प किया."

हालांकि साल 2004 के बाद चुनावी पॉलिटिक्स में लालू की गाड़ी पटरी से उतर गई. लोकसभा में जहां पार्टी की सीट कम होती गई वहीं आरजेडी ने साल 2005 में बिहार की सत्ता भी गंवा दी.

लोकसभा चुनाव में पार्टी को साल 2009 और 2014 में चार सीटें मिलीं तो 2019 के चुनाव में पार्टी अपना खाता भी नहीं खोल पाई. साल 2024 के चुनावों में आरजेडी ने चार सीटें जीतीं.

image BBC

एएन सिन्हा रिसर्च इंस्टीट्यूट के पूर्व निदेशक और समाजशास्त्री डीएम दिवाकर कहते हैं, "तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद लालू आज भी मास लीडर हैं. वो बहुत मैच्योर हैं और जानते हैं कि राजनीति में किसी के लिए दरवाज़ा बंद नहीं होता. सामने नीतीश कुमार हों तब भी."

"पिछले चुनाव में लालू की ग़ैरहाज़िरी में तेजस्वी मुख्यमंत्री बनते-बनते चूक गए थे. लालू और तेजस्वी दोनों ही वक़्फ़ के मसले पर जेडीयू से मुस्लिम मतदाताओं की नाराज़गी को अपने पक्ष में करना चाहते हैं."

दरअसल राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो, एक करोड़ 10 लाख सदस्यों वाली आरजेडी में लालू यादव ही परिवार, पार्टी और वोटरों को एक साथ साध सकते हैं. गिरते स्वास्थ्य के बावजूद उनके फिर से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की ये प्रमुख वजह है.

  • बिहार: दलित बच्ची की बलात्कार के बाद मौत, परिजन बोले- 'बच्ची को लेकर अस्पताल में भटकते रहे'
  • तेज प्रताप यादव से जुड़े 5 बड़े विवाद, कभी बयानों से, कभी बर्ताव से चर्चा में
  • तेज प्रताप पार्टी और परिवार से बाहर, क्या चुनाव से पहले होगी वापसी
कोई दूसरा नेता क्यों नहीं उभरा? image BBC

लालू यादव की आत्मकथा 'रायसीना से गोपालगंज: मेरी राजनीतिक यात्रा' किताब के सह लेखक और पत्रकार नलिन वर्मा कहते हैं, "ये ठीक है कि प्रैक्टिकल वजहों से तेजस्वी यादव नेतृत्व की भूमिका में आए हैं, लेकिन लालू जी की सांकेतिक उपस्थिति ही पार्टी के लिए महत्वपूर्ण असेट है. वो सामाजिक न्याय और सांप्रदायिक सद्भाव के प्रतीक हैं."

"साथ ही पार्टी के ओल्ड जेनरेशन लीडर्स में तेजस्वी का सबसे अच्छा संवाद अपने पिता से है. इस कंफ़र्टेबल ज़ोन से पार्टी के रोज़मर्रा के काम में कोई दिक़्क़त नहीं आएगी. परिवार के अंदर भी होने वाली किसी भी उठापटक को सुलझाने में लालू यादव सबसे कारगर हैं."

लेकिन 27 राज्यों में जिस पार्टी का संगठन है वहां आज तक अध्यक्ष पद के लिए सिर्फ़ लालू यादव ही नामांकन करते आए हैं.

जेडीयू नेता श्याम रजक और बीजेपी नेता रामकृपाल यादव की जोड़ी को आरजेडी में 'राम और श्याम' की जोड़ी कहा जाता था. ये दोनों ही लंबे समय तक लालू के विश्वस्त आरजेडी नेता रहे हैं.

श्याम रजक कहते हैं, "राजद में परिवार के भीतर ही सारे नेता बन गए हैं. परिवार को पद देने के बाद जो बचता है, वो पैसे वालों को दे दिया जाता है. एक आम और समर्पित कार्यकर्ता की कोई जगह पार्टी में नहीं है. ऐसे में नया नेतृत्व कैसे उभरेगा?"

हालांकि ऐसा नहीं है कि नेतृत्व या परिवार से इतर सेकेंड लाइन नेतृत्व सिर्फ आरजेडी में ही नहीं उभरा, बल्कि सभी क्षेत्रीय पार्टियों की लगभग यही हालत है.

समाजशास्त्री डीएम दिवाकर कहते हैं, "वामपंथी दलों को छोड़कर भारत में सभी दलों में अध्यक्ष पहले तय हो जाते हैं और नामांकन बाद में होता है. पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र नहीं है. क्षेत्रीय पार्टियां परिवार के भरोसे चल रही हैं तो दूसरी तरफ़ बीजेपी में जेपी नड्डा को कार्यकाल विस्तार मिल रहा है."

'अध्यक्ष' लालू पर विपक्ष हमलावर image BBC

लालू यादव के आरजेडी अध्यक्ष बनाए जाने पर विपक्ष हमलावर है.

जेडीयू प्रवक्ता अंजुम आरा कहती हैं, "लालू प्रसाद यादव सज़ायाफ़्ता हैं और उनको अध्यक्ष बनाना ये साबित करता है कि आरजेडी में संविधान, लोकतांत्रिक मर्यादाएँ मायने नहीं रखती."

वहीं बीजेपी नेता और बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने राजद को "पार्टी नहीं प्रॉपर्टी " बताया.

वो कहते हैं, "ये बार-बार नामांकन की नौटंकी क्यों की जा रही है? राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद तो लालू के पास ही रहेगा."

बिहार की वरिष्ठ पत्रकार और फिलहाल सीपीआई से जुड़ी निवेदिता झा कहती हैं, "ये मेरी निजी राय है कि आरजेडी में मुख्य पदों पर परिवार ही क्यों रहें? लालू जी का स्वास्थ्य बहुत अच्छा नहीं है. ऐसे में नए लोगों को सामने लाने की कोशिश करनी चाहिए थी, ताकि पार्टी का विस्तार हो और परिवारवाद के आरोप से अलग छवि बने."

इस विरोध के बावजूद एनडीए की पॉलिटिक्स की धुरी लालू यादव का विरोध ही है.

लालू यादव को लेकर हाल के दिनों में 'फ़ादर ऑफ़ क्राइम' और 'बिहार का गब्बर सिंह' जैसी टिप्पणियाँ की गई थीं.

वजह पूछने पर पत्रकार नलिन वर्मा कहते हैं, "एनडीए लालू को निशाना बनाकर ही तेजस्वी पर अटैक कर सकता है. तेजस्वी की छवि अभी साफ़-सुथरी है. इसलिए एनडीए लालू पर बहुत आक्रामक तेवर अपनाता है."

  • पटना के अस्पताल में चूहे ने मरीज़ के पैर की उंगलियों को कुतरा, सुपरिटेंडेंट ने कहा-चूहे तो हर जगह हैं
  • बिहार के सारण में मॉब लिंचिंग की घटना, पीड़ित परिवार और पुलिस ने क्या बताया?
  • जाति जनगणना पर सरकार से क्या हैं योगेंद्र यादव के तीन सवाल?
लालू के बिना तेजस्वी image yadavtejashwi @x तेजस्वी यादव

लालू यादव ने एमवाई समीकरण के सहारे बिहार पर शासन किया. वहीं तेजस्वी ने आरजेडी को 'ए टू ज़ेड' की पार्टी बनाने की कोशिश की है. हाल ही में धानुक (अति पिछड़ा) जाति से आने वाले मंगनी लाल मंडल को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है.

इसी साल जनवरी में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में तेजस्वी यादव को लालू यादव जैसे ही अधिकार देने का फ़ैसला लिया गया था.

लेकिन इन फ़ैसलों के बीच अहम सवाल यही है कि तेजस्वी की अपनी राजनीतिक ताकत क्या है?

समाजशास्त्री डीएम दिवाकर कहते हैं, "लालू की विरासत को तेजस्वी ने करीने से संभाल लिया है. लेकिन फिर भी एक बड़ा तबका ऐसा है जो तेजस्वी का साथ इसलिए दे रहा है क्योंकि लालू उनके साथ हैं."

वहीं फै़ज़ान अहमद कहते हैं, "हम लोगों को थोड़ा इंतज़ार करना चाहिए. तेजस्वी का इस चुनाव में परफॉर्मेंस तय करेगा कि उनकी अपनी व्यक्तिगत ताकत क्या है?"

साल 2020 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी को 75 सीटें और 23.11 फ़ीसदी वोट मिले थे, वहीं बीजेपी को 74 सीटों के साथ 19.46 फ़ीसदी वोट, जबकि जेडीयू को 43 सीटों के साथ 15.39 फ़ीसदी वोट मिले थे.

पिछली बार सत्तासीन होने से चूके तेजस्वी यादव इस बार अपने मोहरे फिट रखना चाहते हैं. लालू यादव का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना उसी तरफ़ बढ़ा एक क़दम है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां कर सकते हैं. आप हमें एक्स, इंस्टाग्राम और व्हाट्सऐप पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

  • निशिकांत दुबे कौन हैं, जिनकी सुप्रीम कोर्ट पर टिप्पणी से मचा है हंगामा
  • बिहार : क्या नीतीश कुमार से दूर जा रहे हैं मुसलमान?
  • कांग्रेस ने बिहार की कमान अखिलेश सिंह से लेकर राजेश कुमार को क्यों सौंपी?
  • नीतीश कुमार का वायरल वीडियो और उनकी सेहत पर मेडिकल बुलेटिन जारी करने की मांग
image
Loving Newspoint? Download the app now