9 नवंबर को उत्तराखंड के 25वें स्थापना दिवस से पहले राज्य सरकार ने दो दिन का एक विशेष विधानसभा सत्र (जो बाद में तीन दिन का कर दिया गया) बुलाया था.
इसका उद्देश्य राज्य की 25 साल की यात्रा पर विचार और अगले 25 साल के लिए विकास का रोडमैप तैयार करना था लेकिन यह सत्र ज़्यादा चर्चा में रहा 'पहाड़ बनाम मैदान' की बहस के लिए.
3 नवंबर को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने रजत जयंती कार्यक्रमों का उद्घाटन इस विशेष सत्र को संबोधित कर किया था.
इसी कड़ी में रविवार, 9 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजधानी देहरादून में एक कार्यक्रम में शामिल हुए और 8260 करोड़ रुपये की विकास परियोजनाओं का शिलान्यास और लोकार्पण किया.
इसके बावजूद सोशल मीडिया और राजनीतिक हलकों में चर्चा का केंद्र 'पहाड़ बनाम मैदान' की बहस है जो 25 साल बाद आज भी जारी है.
उत्तराखंड में 'पहाड़ बनाम मैदान' का विवाद फिर उभरा है. विधानसभा में हुई बहस ने राजनीतिक हलचल तेज कर दी और सियासी माहौल गरमा गया है.
- उत्तरकाशी: उस नदी की कहानी, जिसने धराली को तबाह कर दिया
- अंकिता भंडारी हत्या मामला: दोषियों को उम्र क़ैद, मां-बाप बोले, 'अधूरा न्याय मिला'
विधानसभा के विशेष सत्र के दूसरे दिन सदन को संबोधित करते हुए देहरादून के धर्मपुर से बीजेपी विधायक विनोद चमोली ने मूल निवास की बात उठाई. विनोद चमोली ने कहा कि वह राज्य आंदोलनकारी रहे हैं और इसलिए वो वह सवाल उठा रहे हैं जो उत्तराखंड निर्माण की बुनियाद में रहे हैं.
बता दें कि 90 के दशक में अलग राज्य के लिए उत्तराखंड राज्य आंदोलन ने ज़ोर पकड़ा था. इसके केंद्र में मुख्य मुद्दा रोज़गार के लिए पलायन रोकना था. लंबे आंदोलन के बाद केंद्र की वाजपेयी सरकार ने अलग राज्य 'उत्तरांचल' के गठन का एलान किया था, जो 9 नवंबर, 2000 को अस्तित्व में आया था.
इसके बाद देहरादून समेत राज्य के मैदानी क्षेत्रों में आबादी तेज़ी से बढ़ी और यह सवाल फिर उठने लगा कि 'पहाड़ के मूल निवासियों' को क्या मिला.
विनोद चमोली ने अपने संबोधन में उत्तराखंड में दो साल से ज़्यादा समय से चल रहे 'मूल निवास भू-कानून आंदोलन' की ओर इशारा करते हुए कहा कि जो लोग चुनकर नहीं आ पाए, जो यहां सवाल नहीं उठा पा रहे लेकिन वह सड़क पर चिल्ला रहे हैं. वह संख्या में कम हो सकते हैं लेकिन उनके सवाल ग़लत नहीं हो सकते.
उन्होंने कहा, "आज हमारा मूल निवास तय नहीं है, जो आता है वह इसे धर्मशाला समझकर रहता है और यहां का निवासी बनकर फ़ायदे ले जाता है और हमारा सीधा-सादा पहाड़ी, उत्तराखंडी मुंह ताकता रह जाता है."
चमोली ने कहा, "मैं मूल निवास की बात कर रहा हूं. किस राज्य में मूल निवास तय नहीं है? 2000 से पहले मूल निवास प्रमाणपत्र मिलता था. राज्य की पहली सरकार को मूल निवास तय करना था लेकिन नहीं हुआ. अब जो 15 साल पहले से यहां रहता है वही यहां का निवासी है और मूल निवासी ढूंढना मुश्किल हो गया है."
इस दौरान कांग्रेस के विधायकों ने विनोद चमोली का विरोध किया.
हरिद्वार के ज्वालापुर से कांग्रेस विधायक रवि बहादुर और चमोली के बीच तीखी बहस भी हो गई. बहादुर ने इस बात पर ऐतराज़ जताया कि चमोली पहाड़ की बात कर रहे हैं और हरिद्वार के लोगों को उत्तराखंडी तक मानने को तैयार नहीं हैं.
उन्होंने कहा, "आप बताओगे क्या कि हम उत्तराखंडी हैं या नहीं? आप भी उत्तराखंडी हो, हम भी उत्तराखंडी हैं. आप उत्तराखंड के दर्द की बात करो, इसे पहाड़-प्लेन में मत बांटो."
विधायक बने पहाड़ से, बसते हैं देहरादून और हल्द्वानी मेंहरिद्वार के लक्सर से बीएसपी विधायक मोहम्मद शहज़ाद ने सदन में विनोद चमोली की बात का जवाब देते हुए कहा, "हरिद्वार का दिल बड़ा है. हमने पहाड़ के (मूल रूप से पहाड़ के) तीन लोकसभा सांसद दिए हैं...अल्मोड़ा के हरीश रावत, पौड़ी के रमेश पोखरियाल निशंक और पौड़ी के ही त्रिवेंद्र सिंह रावत. लेकिन हम रोज़ यहां सुनते हैं... पहाड़-पहाड़."
मोहम्मद शहज़ाद ने बीबीसी न्यूज़ हिन्दी से कहा, "मेरी बात पहाड़ विरोधी नहीं है. कुछ विधायकों के विरोध में है जो करते पहाड़-पहाड़ हैं, भाषण चाल-खाल, गदेरों का करते हैं लेकिन वहां रहते नहीं हैं. उनके निवास हैं देहरादून, डोईवाला, हल्द्वानी, रामनगर और काशीपुर जैसे प्लेन एरिया में."
वह कहते हैं, "हरिद्वार से अब तक दो ही मंत्री बने हैं, तीन साल के लिए मदन कौशिक और तीन साल के लिए सुरेंद्र राकेश जबकि 25 साल से मुख्यमंत्री और बाकी मंत्री तो पहाड़ के ही हैं. अगर सारे पद आपके पास होने के बाद भी आप पहाड़ के लिए काम नहीं कर पा रहे हो तो आप पद छोड़ दो, किसी और को मौका दो."
"पहाड़ में दिक्कतें हैं, तो सोचना होगा कि पहाड़ से पलायन कैसे रुकेगा, आप वहां रोज़गार कैसे देंगे? आप इस पर चर्चा नहीं करते. आप लघु उद्योग, रेडीमेड दूसरी चीज़ें वहां ले क्यों नहीं जा रहे? सरकार सब्सिडी दे, कपड़ा उपलब्ध करवाए और बाज़ार तक सामान पहुंचाए. देखें कैसे नहीं रुकेगा पलायन."
मोहम्मद शहज़ाद के अनुसार अन्याय तो हरिद्वार के साथ हो रहा है. पिछले एक-डेढ़ दशक से हरिद्वार के बच्चे पीपीएस तक में नहीं निकल पा रहे हैं क्योंकि प्रतियोगी परीक्षाओं में गढ़वाली-कुमाऊंनी से जुड़े मुहावरे और सवाल पूछे जाते हैं.
- उत्तराखंड: 'नकल जिहाद' के आरोप से सीबीआई जांच तक, युवाओं के आंदोलन के बाद बैकफ़ुट पर आए सीएम धामी
- धराली में जहां आया था सैलाब वहां अब है मलबे का ढेर, हवा में सड़ांध और अपनों का इंतज़ार करते लोग
हरिद्वार के वरिष्ठ पत्रकार रतन मणि डोभाल कहते हैं कि पहाड़-मैदान की यह जंग दरअसल 2027 की तैयारी है.
वह कहते हैं, "इस बार चुनाव में तीन विभाजनकारी मुद्दे होंगे... हिंदू-मुसलमान और गढ़वाल-कुमाऊं तो होता ही है, इस बार पहाड़ और मैदान पर भी चुनाव लड़े जाएंगे."
डोभाल यह भी मानते हैं कि दो साल से भी अधिक समय से चल रहे मूल निवास भू-क़ानून आंदोलन का भी कुछ दबाव रहा होगा कि चमोली ने सदन में यह सवाल उठाया.
हालांकि, डोभाल के मुताबिक़ सिर्फ़ यही एक कारण नहीं हो सकता. वह कहते हैं कि पहले तो किसी सत्र में विनोद चमोली ने यह मुद्दा उठाया नहीं.
डोभाल कहते हैं, "दरअसल यह बीजेपी की अंदरूनी राजनीति की वजह से भी है. पांच मंत्री पद खाली हैं और यह अधूरी सरकार चलाए जा रहे हैं. ये सब लोग मंत्री पद की लाइन में हैं और इनका यह भी असंतोष है जो इस तरह सामने आ रहा है."
हालांकि वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक टिप्पणीकार गजेंद्र रावत डोभाल की बात से सहमत नज़र नहीं आते.
Rajesh Dobriyal दिसंबर, 2023 में देहरादून के परेड ग्राउंड में मूल निवास भू-कानून को लेकर हुई रैली गजेंद्र रावत कहते हैं, "विनोद चमोली अकेले ऐसे आंदोलनकारी रहे हैं जिन पर उत्तराखंड आंदोलन के दौरान रासुका लगी थी. उन्होंने मूल निवास का सवाल पहली बार नहीं उठाया है."
रावत याद दिलाते हैं, "दिसंबर, 2023 में जब देहरादून के परेड ग्राउंड में मूल निवास भू-कानून को लेकर रैली थी, उसी समय बीजेपी का भी एक कार्यक्रम था देहरादून में. उसमें मंच से विनोद चमोली ने कहा था कि मैं शरीर से तो यहां हूं, लेकिन मेरा दिल वहां (आंदोलन में) है."
वहीं मोहम्मद शहज़ाद के विरोध को रावत उनकी ख़िसकती राजनीति को बचाने की कोशिश मानते हैं.
वह कहते हैं, "राज्य में कभी थर्ड फ़्रंट रही बीएसपी के वह अब अकेले विधायक रह गए हैं. उनका वोट बैंक कांग्रेस और बीजेपी में खिसक गया है, इसलिए वह ये मुद्दे उठा रहे हैं."
सिर्फ़ सोशल मीडिया तक नहीं रहेगा ये मुद्दारावत कहते हैं एक तरह से विनोद चमोली और मोहम्मद शहज़ाद इस मुद्दे पर एकमत हैं. शहज़ाद भी यही चाहते हैं कि हरिद्वार के लोगों को भी मूल निवास (जो वह खुद भी हैं) का फ़ायदा मिले.
हालांकि, रतनमणि डोभाल की चिंता यह है कि अब यह मुद्दा सिर्फ़ सोशल मीडिया पर बयानबाज़ी तक ही सीमित नहीं रहने वाला है, यह ज़मीन पर अपनी राजनीति बचाए रखने, चमकाने वालों ने लपक लिया है, जिनके पास धनबल और बाहुबल की कमी नहीं है.
वह चेतावनी देते हैं, "कम से कम यह गढ़वाल के लिए अच्छा नहीं होगा. पहाड़ में जानवर शिकार बना रहे हैं और खेती पर निर्भर रहना मुश्किल हो गया है. सरकार न वहां जाने को तैयार है, न बचाने को और राजनीति ने यहां भी एक नया मोर्चा खोल दिया है."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
- वेस्टर्न कपड़ों पर बहस के बाद मुस्कान शर्मा ने जीता मिस ऋषिकेश का ताज, एक हिंदू संगठन ने उठाई थी आपत्ति
- पत्रकार राजीव प्रताप की संदिग्ध मौत: अब तक क्या पता चला, परिवार और दोस्तों ने क्या कहा
You may also like

सोनभद्र पुलिस की बड़ी कार्रवाई: बस में चोरी हुए 24 लाख के जेवरात बरामद, एक गिरफ्तार, तीन आरोपी फरार

घाटशिला उपचुनाव: हेमंत सोरेन के दूसरे कार्यकाल की पहली परीक्षा, JMM की जीत का अंतर बढ़ेगा या BJP की रणनीति होगी सफल

Telusu Kada: OTT पर आने वाली रोमांटिक ड्रामा की कहानी और कास्ट

90 के दशक के बाद अब शान के साथ भजनों को गाना भावनात्मक रूप से बेहद खास : सोनू निगम

इस कारणˈ लड़कों को पसंद आती हैं बड़ी उम्र की महिलाएं, क्लिक करके जाने पूरी खबर﹒





