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बिहार में एसआईआर: नागरिकता से कैसे अलग है वोट देने का अधिकार

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Getty Images 4 जुलाई 2025 को पटना के ग्रामीण इलाकों में गणना फॉर्म के घर-घर वितरण के दौरान फॉर्म दिखाती महिलाएं

बिहार में विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले चुनाव आयोग वहां स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न (एसआईआर) करवा रहा है. इसे लेकर राजनीतिक गलियारे में हलचल के साथ कई क़ानूनी और वैधानिक सवाल भी उठ रहे हैं.

विपक्ष का आरोप है कि चुनाव आयोग इस विशेष गहन पुनरीक्षण की आड़ में पिछले दरवाज़े से लोगों की नागरिकता की जांच कर रहा है. हालांकि, चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में यह आश्वासन दिया है कि अगर कोई व्यक्ति मतदाता सूची से बाहर हो जाए, तो इसका मतलब यह नहीं होगा कि उसकी नागरिकता समाप्त हो गई है.

सोमवार को दाख़िल 88 पन्नों के हलफ़नामे में आयोग ने कहा, "एसआईआर प्रक्रिया के तहत किसी व्यक्ति की नागरिकता सिर्फ इस आधार पर समाप्त नहीं होगी कि उसे मतदाता सूची में रजिस्ट्रेशन के लिए अयोग्य करार दिया गया है."

चुनाव आयोग ने यह भी कहा है कि क़ानून और संविधान के तहत उसे यह अधिकार प्राप्त है कि वह नागरिकता से जुड़े दस्तावेज़ मांग सके, ताकि लोगों को 'मताधिकार' मिल सके.

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई को बिहार में हो रहे एसआईआर को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की थी.

अदालत ने चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, लेकिन आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड को मतदाता सूची अपडेट करने के लिए ज़रूरी दस्तावेज़ों की सूची में शामिल करने की सलाह दी थी.

हालांकि, चुनाव आयोग ने अपने हलफ़नामे में कहा है कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं हो सकता, और कई उच्च न्यायालयों ने भी इस बात को माना है.

image Getty Images बिहार में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा दाख़िल किया है

चुनाव आयोग ने 24 जून को एक आदेश जारी किया था, जिसके तहत बिहार के करीब आठ करोड़ मतदाताओं को मतदाता सूची में बने रहने के लिए 25 जुलाई तक 'गणना फॉर्म' भरकर जमा करना है. आयोग के निर्देश के मुताबिक, एक अगस्त को ड्राफ़्ट सूची जारी की जाएगी. इस सूची में उन्हीं लोगों के नाम शामिल होंगे जिन्होंने फॉर्म जमा किया है, चाहे उन्होंने ज़रूरी दस्तावेज़ लगाए हों या नहीं.

इस प्रक्रिया को लेकर राजनीतिक बहस तेज हो गई है. चुनाव आयोग इसे वोटर लिस्ट को दुरुस्त करने की कवायद बता रहा है, जबकि विपक्ष का आरोप है कि यह नागरिकता की जांच की प्रक्रिया है, जो पिछले दरवाज़े से चलाई जा रही है.

इस मामले में अगली सुनवाई 28 जुलाई को होनी है. हमने क़ानून और संविधान के जानकारों से समझने की कोशिश की है कि नागरिकता और मताधिकार किस तरह अलग होते हुए भी आपस में जुड़े हुए हैं.

संविधान में मताधिकार के लिए कौन-सा प्रावधान? image Getty Images

भारत के संविधान में अनुच्छेद 324 से 329 तक निष्पक्ष और पारदर्शी चुनावों का पूरा ढांचा प्रस्तुत किया गया है.

अनुच्छेद 324 'एक स्वतंत्र और स्वायत्त चुनाव आयोग की नियुक्ति' की व्यवस्था करता है. वहीं अनुच्छेद 325 के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को केवल धर्म, नस्ल, जाति या लिंग के आधार पर मतदाता सूची से बाहर नहीं रखा जा सकता.

अनुच्छेद 326 सभी नागरिकों को, बिना किसी भेदभाव के, चुनाव में मतदान का अधिकार देता है. इसके तहत, कोई भी व्यक्ति, जिसकी उम्र मतदान की तारीख़ तक 18 वर्ष या उससे अधिक हो, और जिसे संविधान या किसी क़ानून के तहत अयोग्य घोषित नहीं किया गया हो, मतदाता के रूप में पंजीकरण करा सकता है.

इस विषय में संसद ने दो प्रमुख क़ानून पारित किए हैं. ये हैं - जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951.

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 16 किसी ग़ैर-नागरिक को मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने के लिए अयोग्य घोषित करती है.

वहीं, धारा 19 के अनुसार मतदाता सूची में नाम जुड़वाने के लिए व्यक्ति की आयु कम से कम 18 वर्ष होनी चाहिए और उसे संबंधित निर्वाचन क्षेत्र का निवासी होना चाहिए.

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 यह प्रावधान करता है कि किसी निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची में शामिल प्रत्येक व्यक्ति को मतदान का अधिकार होगा. हालांकि, यह भी स्पष्ट किया गया है कि वो व्यक्ति यह अधिकार इस्तेमाल नहीं कर सकते जिन्हें 1950 के अधिनियम के तहत अयोग्य घोषित किया गया हो या जो जेल में बंद हों.

इसी के साथ, संविधान का अनुच्छेद 327 संसद और राज्य विधानसभाओं को चुनाव संबंधी क़ानून बनाने का अधिकार देता है. इसमें मतदाता सूची तैयार करने और चुनावी क्षेत्रों के परिसीमन से जुड़े प्रावधान शामिल हैं. जबकि अनुच्छेद 329 चुनाव संबंधी मामलों में अदालतों के हस्तक्षेप को सीमित करता है.

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कैसे अलग है मताधिकार और नागरिकता? image Getty Images चुनाव आयोग ने कहा है कि मतदाता सूची की शुचिता बरकरार रखने के लिए एसआईआर ज़रूरी है

वोट का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं, यह मुद्दा लंबे समय से बहस का विषय रहा है.

साल 2006 में कुलदीप नायर बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने साफ़ किया था कि मताधिकार सिर्फ़ एक संवैधानिक अधिकार है, मौलिक अधिकार नहीं.

बिहार में चल रहे एसआईआर को लेकर चुनाव आयोग ने अपने हलफ़नामे में कहा है, "एसआईआर के लिए जारी दिशानिर्देश संविधान के अनुरूप हैं और इनका उद्देश्य मतदाता सूची की शुद्धता बनाए रखना है. हालांकि, यह एक बार फिर स्पष्ट किया जाता है कि अनुच्छेद 326 के तहत किसी व्यक्ति को मताधिकार के लिए अयोग्य पाया जाना उसकी नागरिकता समाप्त होने के बराबर नहीं है."

चुनाव आयोग यह जवाब उन आरोपों के संदर्भ में दे रहा था, जिनमें यह दावा किया गया है कि एसआईआर नागरिकता की जांच का ज़रिया बन रहा है और इससे बड़े पैमाने पर लोग मताधिकार से वंचित हो सकते हैं.

संविधान के अनुसार, मतदाता बनने के लिए भारत का नागरिक होना आवश्यक है, लेकिन हर भारतीय नागरिक स्वतः मतदाता नहीं होता, इसके लिए अन्य शर्तें पूरी करना ज़रूरी है.

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सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील रेखा अग्रवाल इस मुद्दे को आसान भाषा में समझाते हुए कहती हैं, "अगर किसी स्कूल में स्टूडेंट की अटेंडेंस पूरी नहीं होती, तो उसे परीक्षा में बैठने नहीं दिया जाता. यह अधिकार स्कूल के पास होता है. या अगर किसी के नंबर कम आए हैं, तो उसे परीक्षा दोबारा देनी पड़ती है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं होता कि वह बच्चा अब स्कूल का स्टूडेंट नहीं रहा."

रेखा अग्रवाल कहती हैं कि संवैधानिक अधिकार तभी मिलते हैं जब उनसे जुड़ी शर्तें पूरी की जाएं. अगर इन शर्तों का पालन न हो, तो यह अधिकार स्वतः नहीं मिलते. जबकि मौलिक अधिकार ऐसे होते हैं, जो संविधान द्वारा बिना शर्त दिए जाते हैं.

उनके अनुसार, "अनुच्छेद 326 यह अधिकार देता है कि हर व्यक्ति जो भारत का नागरिक है और 18 वर्ष से अधिक उम्र का है, उसे वोट करने का अधिकार मिलेगा. लेकिन इसके लिए आपको कुछ शर्तें पूरी करनी होंगी, कुछ दस्तावेज़ देने होंगे और अगर ये दस्तावेज़ पूरे नहीं हैं तो आपको वोट करने का अधिकार नहीं मिलेगा"

सुप्रीम कोर्ट के वकील रोहित कुमार कहते हैं, "कौन भारत का नागरिक है या नहीं है उसे तय करने के लिए नागरिकता अधिनियम 1955 है. इसमें प्रावधान है कि बर्थ, डिसेंट, रजिस्ट्रेशन और नैचुरलाइज़ेशन के ज़रिए कैसे नागरिकता मिलती है."

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आधार कार्ड क्यों नहीं है नागरिकता का प्रमाण? image Getty Images

चुनाव आयोग ने गणना फॉर्म में जो 11 ज़रूरी दस्तावेज़ मांगे हैं, उनमें न तो आधार कार्ड है और न ही वोटर या राशन कार्ड.

जिन 11 दस्तावेज़ों को इस सूची में रखा गया है वे यहां देखे जा सकते हैं.

आमतौर पर यही दस्तावेज़ पहचान पत्र के तौर पर इस्तेमाल किए जाते हैं और इसलिए ये सवाल उठ रहे हैं कि मतदाता सूची के लिए इन्हें क्यों स्वीकार नहीं किया जा रहा है.

चुनाव आयोग ने इन्हीं सवालों पर हलफ़नामे में बताया है कि गणना फॉर्म में दी 11 ज़रूरी दस्तावेज़ों की सूची में आधार को क्यों शामिल नहीं किया गया है.

चुनाव का कहना है, "क्योंकि ये अनुच्छेद 326 के तहत योग्यता की जांच करने में मदद नहीं करता है. हालांकि, इसका मतलब ये नहीं है कि पात्रता साबित करने के लिए आधार को दूसरे दस्तावेज़ों के पूरक के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है."

चुनाव आयोग बड़े पैमाने पर फ़र्ज़ी राशन कार्ड बनने का भी ज़िक्र किया.

रोहित कुमार कहते हैं, "आधार एक्ट के सेक्शन 9 में ये स्पष्ट तौर पर बताया गया है कि आधार नंबर नागरिकता या डोमिसाइल का प्रमाण नहीं है. आधार कार्ड होने का मतलब ये नहीं कि वो व्यक्ति भारत का नागरिक या निवासी है. ये सिर्फ़ पहचान पत्र के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है."

इस नियम के तहत आधार कार्ड पर दिए निर्देश में भी ये स्पष्ट लिखा हुआ है कि ये पहचान का सबूत है लेकिन नागरिकता का नहीं.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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