क्रिकेट का 'मक्का' कहे जाने वाला लॉर्ड्स एक बार फिर से एक नई दास्तां का गवाह बनने को तैयार है.
यह सिर्फ एक मैच नहीं, बल्कि हर खिलाड़ी के लिए परीक्षा की उस घड़ी जैसा है, जिसमें प्रतिभा, संयम और चरित्र तीनों की कसौटी होती है.
लीड्स की हार ने भारत को झकझोरा ज़रूर था, लेकिन एजबेस्टन में जो हुआ, वह एक 'काउंटर-पंच' था.
एजबेस्टन में कप्तान शुभमन गिल की अगुवाई में 'नई टीम इंडिया' ने न सिर्फ़ जीत दर्ज की, बल्कि दुनिया को यह भी बताया कि अब यह टीम दबाव में टूटती नहीं, बल्कि उससे ताक़त लेती है.
यह जीत एक ऐलान थी कि विराट-रोहित युग के बाद का भारत भी उतना ही जानदार, उतना ही जुझारू है.
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लॉर्ड्स की चुनौतीलॉर्ड्स, जहां समय बदल सकता है, मौसम करवट ले सकता है, लेकिन खेल का स्तर नहीं बदलता.
यहां हर रन एक कहानी कहता है और हर विकेट इतिहास की दीवार पर एक निशान छोड़ जाता है.
मुख्य कोच गौतम गंभीर की अगुआई में टीम इंडिया का मिज़ाज अब बदल चुका है. 'डरना मना है', अब सिर्फ़ एक नारा नहीं बल्कि एक मानसिकता बन चुका है.
क्या शुभमन गिल की कप्तानी में 'नई टीम इंडिया' लॉर्ड्स की ढलान पर एक और ऐतिहासिक अध्याय लिख पाएगी?
क्या बुमराह की वापसी और टीम की बदलती सोच इंग्लैंड को उसी के घर में फिर से हरा पाएगी?
मैदान तैयार है और जवाब अगले कुछ दिन में मिल जाएगा.
लॉर्ड्स की पिच जितनी मशहूर है, उतनी ही मुश्किल भी है. इसकी सबसे बड़ी ख़ासियत है 'स्लोप' यानी ढलान, जो पवेलियन एंड से नर्सरी एंड की ओर लगभग 2.5 मीटर नीचे जाती है.
यह ढलान गेंदबाज़ों के लिए किसी छिपे हथियार की तरह होती है, जो स्विंग, सीम और उछाल-तीनों को अप्रत्याशित बना देती है.
बल्लेबाज़ों के लिए यही ढलान भ्रम पैदा करती है. आउटस्विंग और इनस्विंग के अंतर को समझना मुश्किल हो जाता है, ख़ासकर दाएं हाथ के बल्लेबाज़ों के लिए. गेंद की लाइन को भांप पाना बेहद चुनौतीपूर्ण हो जाता है.
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लॉर्ड्स की पिच टेस्ट मैच में हर दिन अलग चुनौती पेश करती है. पहले दो दिन ड्यूक्स बॉल हवा और नमी में जमकर स्विंग करती है, जिससे तेज़ गेंदबाज़ों को मदद मिलती है. तीसरे दिन पिच थोड़ी सम होती है और बल्लेबाज़ों को टिकने का मौका मिलता है. चौथे और पांचवें दिन पिच टूटने लगती है, जिससे स्पिनर्स का असर बढ़ जाता है.
आंकड़ों के मुताबिक, पिछले पांच वर्षों में पहले दो दिन औसतन 24 विकेट गिरे हैं. वहीं चौथी पारी में लक्ष्य का पीछा करते हुए जीत की संभावना केवल 21 प्रतिशत रही है.
टेस्ट में वर्ल्ड नंबर-1 जसप्रीत बुमराह की वापसी सिर्फ़ एक खिलाड़ी का लौटना नहीं, एक संतुलन का लौटना है. बुमराह का लॉर्ड्स में उतरना, उस रणभूमि में उतरना है जहां 2021 में उन्होंने इतिहास रचा था.
उनकी गेंदबाज़ी में मौजूद स्विंग, एंगल, सीम और स्किल का अनोखा संगम, लॉर्ड्स की ढलान पर और भी प्रभावी हो जाता है. पहले दो दिन की नमी और सुबह की हवा की मदद से बुमराह नई ड्यूक्स गेंद से कहर बरपा सकते हैं.
लॉर्ड्स की अनूठी ढलान बुमराह के लिए एक अतिरिक्त 'ब्रह्मास्त्र' का काम करेगी. वह अपने ख़ास एक्शन और कोणों का उपयोग करके बल्लेबाज़ों के लिए अप्रत्याशित उछाल और स्विंग पैदा कर सकते हैं.
दाएं हाथ के बल्लेबाज़ों के लिए उनके आउटस्विंगर और अंदर आती गेंदें (एंगल के साथ) और भी ख़तरनाक हो सकती हैं. उनकी मौजूदगी से न सिर्फ़ गेंदबाज़ी आक्रमण की धार बढ़ेगी, बल्कि मोहम्मद सिराज और आकाश दीप जैसे गेंदबाज़ों को खुलकर गेंदबाज़ी करने की आज़ादी भी मिलेगी.
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बुमराह की वापसी का मतलब है कि निश्चित रूप से एक तेज़ गेंदबाज़ को बाहर बैठना होगा. प्रसिद्ध कृष्णा सबसे संभावित उम्मीदवार लगते हैं, जो अब तक बहुत ज़्यादा प्रभावशाली नहीं रहे हैं.
आकाश दीप ने एजबेस्टन में 10 विकेट लेकर अपनी जगह मज़बूत की है. मोहम्मद सिराज अच्छी लय में हैं और पिछली बार लॉर्ड्स की पिच पर क़हर बरपा चुके हैं.
चौथे और पांचवें दिन जब पिच टूटने लगती है, तो स्पिनरों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है. रवींद्र जडेजा, जो निचले क्रम में बल्लेबाज़ी में भी अहम योगदान देते हैं, प्रमुख स्पिन विकल्प होंगे.
वॉशिंगटन सुंदर को भी टीम में रखा जा सकता है, ख़ासकर अगर भारत चार तेज़ गेंदबाज़ों के साथ एक अतिरिक्त स्पिनर का विकल्प चुनता है. फिलहाल कुलदीप यादव के लिए जगह बनाना मुश्किल लग रहा है.
आंकड़ों की नज़र से लॉर्ड्स (2015-2024)- औसत पहली पारी स्कोर: 301 रन
- औसत दूसरी पारी स्कोर: 276 रन
- चौथी पारी में रन चेस करते हुए जीत का औसत प्रतिशत: 21 प्रतिशत
- सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज: जेम्स एंडरसन (117 विकेट)
लॉर्ड्स का मैदान भारतीय क्रिकेट के लिए हमेशा चुनौतीपूर्ण रहा है. अब तक खेले गए 19 टेस्ट मुकाबलों में भारत को सिर्फ़ तीन बार जीत मिली है, जबकि 7 बार हार का सामना करना पड़ा और 8 मुक़ाबले ड्रॉ रहे.
लेकिन इन जीतों में से दो- 2014 और 2021 ऐसी हैं, जिन्हें भारतीय क्रिकेट इतिहास में स्वर्णिम अध्याय की तरह याद किया जाता है.
2014 में भारत ने 28 सालों बाद लॉर्ड्स में जीत का स्वाद चखा था. उस मैच में इशांत शर्मा ने अपनी गति और उछाल से कहर बरपाया.
दूसरी पारी में 7/74 के आंकड़े के साथ उन्होंने इंग्लैंड की कमर तोड़ दी, और भारत को 95 रनों से यादगार जीत दिलाई.
2021 में भारत ने एक बार फिर लॉर्ड्स की ढलान को अपने पक्ष में मोड़ा. इंग्लैंड की पहली पारी में भारत के तेज़ गेंदबाज़ों ने मिलकर उसे 391 रनों पर रोका. मोहम्मद सिराज ने पहली पारी में 4 विकेट लिए, जबकि मोहम्मद शमी ने 2 और इशांत शर्मा ने भी 3 विकेट लेकर अहम वक़्त पर सफलता दिलाई.
लेकिन असली कहर दूसरी पारी में बरपा. भारत ने जब इंग्लैंड को 272 रनों का लक्ष्य दिया, तो लॉर्ड्स की पिच और मौसम दोनों तेज़ गेंदबाज़ों के पक्ष में थे. जसप्रीत बुमराह और मोहम्मद सिराज ने मिलकर उस पिच को एक जाल में बदल दिया. बुमराह ने 3/33 और सिराज ने 4/32 लेकर इंग्लिश बल्लेबाज़ों को 120 रन पर समेट दिया.
बुमराह की मौजूदगी से सिराज को दूसरे छोर से खुलकर गेंदबाज़ी करने का आत्मविश्वास मिला, जो उन्हें और अधिक ख़तरनाक बनाता गया.
अब, 2024 में, जब शुभमन गिल की अगुवाई में टीम इंडिया फिर से लॉर्ड्स की धरती पर उतरेगी, तो ये यादें सिर्फ अतीत नहीं होंगी बल्कि वे प्रेरणा बनेंगी, एक नए इतिहास के लिए.
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लॉर्ड्स टेस्ट से पहले उप कप्तान ऋषभ पंत ने टीम कॉम्बिनेशन को लेकर पूरी तरह से ख़ुलासा नहीं किया, लेकिन यह संकेत दिया कि टीम अभी भी तीन तेज़ गेंदबाजों और एक या दो स्पिनरों के विकल्प पर विचार कर रही है.
उन्होंने कहा, "विकल्प अभी भी खुले हैं, चर्चा अभी भी चल रही है. कभी-कभी विकेट दो दिनों में रंग बदल देता है. हम कल फ़ैसला लेंगे कि यह 3+1 होगा या 3+2."
हालाँकि, भारतीय गेंदबाजों के सामने इस लॉर्ड्स टेस्ट में एक नई चुनौती आ गई है. हाल ही में कप्तान शुभमन गिल और उप कप्तान ऋषभ पंत ने ड्यूक्स बॉल के जल्दी 'डी-शेप' होने पर गंभीर चिंता जताई है.
पंत ने बुधवार को इस पर सीधे टिप्पणी करते हुए कहा, "बॉल बहुत ज़्यादा डी-शेप हो रही है. मुझे लगता है कि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. यह निश्चित रूप से खिलाड़ियों के लिए परेशान करने वाला है क्योंकि हर गेंद अलग तरह से बर्ताव करती है."
अगर यह समस्या बनी रहती है, तो इसका सीधा असर गेंदबाजों के प्रदर्शन पर पड़ेगा. उन्हें पुरानी गेंद से स्विंग और सीम हासिल करने में ख़ासी मशक्कत करनी पड़ेगी, जिससे बल्लेबाज़ों को खुलकर खेलने का मौक़ा मिल सकता है.
यह स्थिति टॉस के महत्व को और बढ़ा देगी, क्योंकि गेंदबाजों को नई गेंद से ही शुरुआती विकेट निकालने का दबाव होगा. पुरानी और नरम होती गेंद से विकेट लेना वाक़ई एक कठिन काम साबित होगा.
कोच गंभीर की आक्रामकतागौतम गंभीर की कोचिंग शैली में आक्रामकता कम, आत्म-विश्वास ज़्यादा है. वह बयानबाज़ी नहीं, एक्शन पर भरोसा करते हैं.
ड्रेसिंग रूम में यह सोच साफ़ दिख रही है , खिलाड़ी अब नाम नहीं, नज़रिया लेकर खेल रहे हैं.
यह मुक़ाबला रन और विकेट से आगे की बात है. यह आत्मविश्वास बनाम अनुभव की टक्कर है. यह बताने का समय है कि भारत अब केवल घर पर ही नहीं इंग्लैंड के दिल, लॉर्ड्स में भी अपना झंडा गाड़ सकता है.
बुमराह की वापसी, गिल की नेतृत्व क्षमता, गंभीर की सोच और इस टीम की नई मानसिकता, ये सब मिलकर भारत को उस ढलान पर ऊपर चढ़ा सकती है, जहां से इतिहास की सबसे ख़ूबसूरत तस्वीरें ली जाती हैं. साफ़ है- इस बार भारत इतिहास दोहराने नहीं, इतिहास बदलने आया है.
(लेखक आईपीएल की लखनऊ सुपर जाएंट्स टीम से जुड़े हैं.)
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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