
ईरान पर इसराइल के हमले और ईरान की जवाबी कार्रवाई से दुनियाभर के बाज़ारों में हलचल मच गई. इससे ख़ासतौर पर तेल की क़ीमत में उछाल आया.
लेकिन दोनों देशों के बीच मिसाइल और ड्रोन हमलों के बाद कच्चे तेल की क़ीमत में फिर से गिरावट आ गई.
फिर भी तेल की क़ीमतें एक महीने पहले की तुलना में 10 डॉलर बढ़ गई हैं और इस बात की आशंका फिर से बढ़ गई है कि ऊर्जा की बढ़ती लागत की वजह से दुनियाभर में पेट्रोल और खाद्य पदार्थों से लेकर छुट्टियां मनाने तक.. सब कुछ महंगा हो सकता है.
तीन साल पहले यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद यही हुआ था, जिससे दुनियाभर में लोगों की ज़िंदगी पर असर पड़ा.

पिछले सप्ताह ईरान-इसराइल हमलों का बाज़ार पर फ़ौरन असर देखा गया. इससे कच्चे तेल का मुख्य अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क 'ब्रेंट क्रूड' शुक्रवार को 78 डॉलर प्रति बैरल से ज़्यादा हो गया.
हालांकि उसके बाद यह वापस गिरकर क़रीब 74.50 डॉलर पर आ गया है. लेकिन यह अभी भी पिछले महीने की इसी अवधि की तुलना में 10 डॉलर ज़्यादा है.
तेल की क़ीमतें बड़ी भू-राजनीतिक घटनाओं और वैश्विक अर्थव्यवस्था के हालात की वजह से हर समय बढ़ती और घटती रहती हैं, इसलिए इसराइल-ईरान संघर्ष के कारण तेल की क़ीमतें बढ़ना कोई हैरानी की बात नहीं है.
हालांकि यह क़ीमत एक साल पहले की तुलना में काफ़ी कम है. यह साल 2022 में यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद आए उछाल से भी नीचे है. उस वक़्त यह क़रीब 130 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थी.
जब कच्चे तेल की क़ीमतें बढ़ती हैं, तो बहुत से लोगों को इसका पता चलता है, क्योंकि इससे पेट्रोल की क़ीमतें भी बढ़ जाती हैं.
और ऊर्जा के अधिक महंगा होने से खेती से लेकर विनिर्माण तक लगभग हर चीज़ महंगी हो जाती है.
जब खाद्य पदार्थों की बात आती है तो ऊर्जा की उच्च लागत से खेती की मशीनें चलाने, पैदावार को बाज़ार तक पहुंचाने, खाद्य पदार्थों की प्रोसेसिंग और पैकेजिंग करने का काम और अधिक महंगा हो सकता है.
हालाँकि ऐसा तभी होगा जब ऊर्जा की क़ीमतें लंबे समय तक लगातार बढ़ती रहें. यहां तक कि पेट्रोल और डीज़ल पर भी कच्चे तेल की बढ़ती क़ीमतों का सीमित प्रभाव ही पड़ता है.
आर्थिक मामलों के विश्लेषण से जुड़ी कंपनी 'कैपिटल इकोनॉमिक्स' के डेविड ऑक्सले कहते हैं, "एक सामान्य नियम यह है कि तेल की क़ीमत में 10 डॉलर की बढ़ोतरी से पेट्रोल पंप पर क़ीमत में क़रीब 7 पेंस की बढ़ोतरी होगी."
हालांकि वो चेतावनी देते हैं कि यह सिर्फ़ तेल तक सीमित नहीं है. बहुतों को रूस-यूक्रेन संघर्ष की शुरुआत के बाद क़ीमतों में आए झटके याद होंगे.
ऑक्सले कहते हैं कि यह काफ़ी हद तक गैस की ऊंची क़ीमतों की वजह से हुआ था. ठंडे प्रदेशों में कई लोग अपने घरों को गैस से गर्म करते हैं.
पिछले हफ़्ते इसराइल-ईरान हमलों के बाद गैस की क़ीमतों में भी बढ़ोतरी हुई है. लेकिन ऑक्सले कहते हैं कि अगर इसका असर हुआ तो भी यह आम घरों तक धीरे-धीरे ही पहुँचेगा. क्योंकि बाज़ार जिस तरह से काम करता है उसमें क़ीमतों को सीमित करने में रेगुलेटर की भूमिका भी शामिल है.
क्या तेल की क़ीमतें और अधिक बढ़ सकती हैं?
कंसल्टेंसी और रिसर्च फ़र्म 'एनर्जी एस्पेक्ट्स' के भूराजनीति प्रमुख रिचर्ड ब्रॉन्ज़ का कहना है कि मौजूदा हालात "बहुत अहम और चिंताजनक हैं."
लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इसका असर रूस-यूक्रेन संघर्ष या मध्य-पूर्व में हुई पिछली समस्याओं जितना बड़ा होगा.
बड़ा सवाल यह है कि इसराइल और ईरान इस संघर्ष में कब तक उलझे रहेंगे, क्या क्षेत्र के अन्य देश भी इसमें शामिल होंगे और क्या अमेरिका इस तनाव को कम करने के लिए कोई क़दम उठाएगा?
सबसे बढ़कर यह इस बात पर निर्भर करता है कि क्या हम होर्मुज़ स्ट्रेट में शिपिंग में वास्तविक परेशानी देखते हैं, जो ईरान के दक्षिणी तट से दूर एक जलमार्ग है. यह मार्ग दुनियाभर के कुल तेल उत्पादन का लगभग पांचवां हिस्सा वैश्विक बाज़ारों तक पहुंचाता है
ब्रॉन्ज़ कहते हैं, "यह एक संकरा रास्ता है, इसलिए यह वैश्विक तेल बाज़ारों के लिए बेहद संवेदनशील स्थान है."
यह अभी भी एक असंभावित स्थिति है, और ईरान पहले भी होर्मुज़ स्ट्रेट को लेकर धमकी दे चुका है और अब पहले की तुलना में इस पर किसी कार्रवाई की संभावना कुछ ज़्यादा ही है.
पहले कोविड और फिर साल 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद दोबारा ऊर्जा की मांग बढ़ रही थी.
लेकिन अब वैश्विक अर्थव्यवस्था मुश्किल हालात का सामना कर रही है, और सऊदी अरब से लेकर ब्राज़ील तक के तेल उत्पादकों के पास तेल की आपूर्ति बढ़ाने की क्षमता है, जिससे क़ीमतों को कम करने में मदद मिलेगी.
ऊर्जा किस स्तर तक महंगी हो सकती है और इसका व्यापक प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि इसराइल और ईरान के बीच संघर्ष में आगे क्या होता है.
एसेट मैनेजर एलियांज़ के मुख्य आर्थिक सलाहकार मोहम्मद एल-एरियन का कहना है कि इसमें "बुरे समय में वैश्विक अर्थव्यवस्था को एक बुरा झटका" देने की क्षमता है.
उनका कहना है, "आप इसे जिस भी नज़र से देखें, यह कम समय में भी नकारात्मक है और लंबे समय के लिए भी. यह अमेरिका के नेतृत्व वाली वैश्विक आर्थिक व्यवस्था की स्थिरता के लिए एक और झटका है. वह भी ऐसे समय में जब पहले से ही बहुत सारी चिंताएं मौजूद हैं."
कैपिटल इकोनॉमिक्स का आकलन है कि अगर तेल की क़ीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल से अधिक हो जाती हैं तो तेज़ी से बढ़ रही अर्थव्यवस्थाओं की महंगाई में 1% की बढ़ोतरी हो सकती है, जिससे ब्याज दरों में कमी लाने की उम्मीद कर रहे केंद्रीय बैंकों के लिए काम मुश्किल हो जाएगा.
लेकिन डेविड ऑक्सले के विचार में ऐसे हालात की संभावना ज़्यादा नहीं है.
वह कहते हैं, "मध्य-पूर्व में अस्थिरता कोई नई बात नहीं है, हमने इसके कई दौर देखे हैं. यह सब एक हफ़्ते में ख़त्म हो सकता है."
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