गिर के जंगल में पर्यटकों के बीच बेहद लोकप्रिय शेरों के जोड़ी जय और वीरू अब सिर्फ़ तस्वीरों और वीडियो में ही नज़र आएंगे.
गिर के जंगल में जय-वीरू के 'इलाक़े पर कब्ज़ा' करने के इरादे से दो अन्य शेर जोड़ों ने इस साल जून में अलग-अलग समय पर जय और वीरू पर हमला कर दोनों को घायल कर दिया था. इस हमले के क़रीब एक हफ़्ते बाद वीरू की मौत हो गई. जबकि जय ने हमलावर शेरों से भिड़ंत के बाद मौत से दो महीने तक जंग लड़ी, लेकिन 29 जुलाई को उसकी भी मौत हो गई.
गिर राष्ट्रीय उद्यान एवं वन्यजीव अभयारण्य के अधीक्षक मोहन राम ने बीबीसी गुजराती को बताया कि जय जून की शुरुआत में एक इलाक़े पर नियंत्रण के लिए हुई लड़ाई में घायल हो गया था, फिर चार दिन बाद, 4 जून को वीरू भी ऐसी ही एक लड़ाई में गंभीर रूप से घायल हो गया.
मोहन राम ने बताया, "इस जोड़ी में वीरू छोटा था और 11 जून को उसकी मौत हो गई. जय का पिछले दो महीने से इलाज चल रहा था, लेकिन 29 जुलाई को उसकी भी मौत हो गई, जिससे जय-वीरू की जोड़ी खत्म हो गई."
मोहन राम ने बताया कि जय-वीरू की जोड़ी ने क़रीब पाँच साल पहले गिर के जंगल के एक बड़े इलाके में अपना 'वर्चस्व' स्थापित कर लिया था. उसका यह 'साम्राज्य' गिर जंगल में किसी भी शेर के सबसे बड़े इलाक़ों में से एक था.
गिर पश्चिम वन्यजीव विभाग के उप वन संरक्षक प्रशांत तोमर ने बीबीसी को बताया, "ये शेर पर्यटकों के बीच बहुत लोकप्रिय थे और पर्यटकों ने ही इनका नाम 'जय' और 'वीरू' रखा था."
गिर वन में जय-वीरू के 'वर्चस्व' का इलाका
प्रशासनिक कामकाज के लिए गिर वन को दो भागों में बांटा गया है. गिर पूर्व वन्यजीव विभाग और गिर पश्चिम वन्यजीव विभाग. इन दोनों विभाग के कर्मचारी वन और वन्यजीवों की सुरक्षा और देखरेख करते हैं.
इसके अलावा स्थानीय वन्यजीव विभाग भी गिर के वन्यजीवों के संरक्षण और सुरक्षा के लिए काम कर रहा है.
मोहन राम गिर राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य के अधीक्षक के रूप में काम करते हैं.
मोहन राम ने बीबीसी को बताया कि जय और वीरू ने अपने बीच एक गठबंधन बनाकर लगभग पाँच साल पहले पश्चिम गिर वन्यजीव इलाक़े में दूसरे शेरों को हराकर एक तरह का गुट बनाया और अपना 'साम्राज्य' स्थापित किया.
मोहन राम के मुताबिक़ उनका इलाका पूर्व में काशिया, दुधाला और जम्बूथला से लेकर पश्चिम में मालनका-केनेडीपुर (केनेडीपुर नर्सरी और मालनका गाँव में दर्दा से सासन के रास्ते में हैं) और उत्तर में केरम्बा-डेडकाडी-नटालिया से लेकर दक्षिण में रायडी तक फैला हुआ था.
मोहन राम ने कहा, "उनका इलाका क़रीब 140 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ था और इसमें लगभग पंद्रह शेरनियाँ रहती थीं. जय-वीरू का इलाका हाल के वर्षों में गिर के जंगल में शेरों के बनाए सबसे बड़े इलाके में से एक था."
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मोहन राम का कहना है कि इसके पीछे कई वजहें हैं.
उन्होंने कहा, "इस जोड़े ने गिर अभयारण्य के पर्यटन क्षेत्र (जहाँ पर्यटकों को सफ़ारी पर ले जाया जाता है) के 80 प्रतिशत हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया था. स्वाभाविक रूप से, ये शेर पर्यटकों को ज़्यादा दिखाई देते थे."
"साथ ही, वहाँ शेरनियों का एक बड़ा समूह भी था, इसलिए वे ज़्यादा दिखाई देते थे. ख़ास बात यह थी कि ये दोनों शेर बेहद ताक़तवर और आकर्षक थे. उन्होंने पर्यटकों पर अपनी गहरी छाप छोड़ी थी. वे लगभग नौ साल के थे और अपनी युवावस्था में थे."
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस साल मार्च में सासन आए और गिर के जंगल में सफ़ारी पर गए, तो उन्होंने गलकबारी क्षेत्र में जय और वीरू को देखा था.
मोहन राम ने बताया कि इन दोनों शेरों ने जंगल के जिस क्षेत्र में अपना इलाका कायम किया था, वो जंगल का बड़ा समृद्ध हिस्सा है. उसमें जल स्रोतों, शेरनियों और चीतल जैसे शाकाहारी जानवरों की अच्छी आबादी है, जो शेरों का भोजन हैं
वन विभाग के एक कर्मचारी ने बीबीसी को बताया, "वे जंगल के किनारे बसे गाँवों में भी घूमते और शिकार भी करते थे. लेकिन हमने उन्हें कभी किसी इंसान पर हमला करते नहीं देखा. हमें लगता था कि इस जोड़ी का राज अगले तीन साल तक चलेगा, लेकिन शायद अलग होने से उन्हें बहुत नुकसान हुआ होगा."
जय-वीरू से पहले, गिर के जंगल में 'राम' और 'श्याम' और 'धरम' और 'वीर' की जोड़ियाँ भी मशहूर हुई थीं.
लेकिन एक फ़ॉरेस्ट रेंजर ने बीबीसी को बताया, "उस समय गिर में शेरों की आबादी इतनी ज़्यादा नहीं थी, इसलिए इलाके के लिए झगड़े भी कम होते थे. लेकिन जय और वीरू को अपने इलाक़े को बचाए रखने के लिए ज़्यादा मेहनत करनी पड़ी."
मोहन राम ने बताया कि जय और वीरू मूल रूप से नटालिया वीडी (घास का मैदान) से थे और इसलिए स्थानीय वन विभाग के कर्मचारी उन्हें "वीडी वाला" कहते थे.
जय-वीरू का 'साम्राज्य' कैसा चला?मोहन राम कहते हैं कि जय और वीरू आमतौर पर अपने 'इलाके' में साथ-साथ गश्त करते और घूमते थे. वे अक्सर साथ में दहाड़ते थे और दूसरे शेरों को दूर रहने की चेतावनी देते थे.
मोहन राम ने बताया, "एक दिन अपने इलाके की गश्त लगाते वक़्त वीरू जय से बिछड़ गया. इसके चलते जब जय दुधाला और डेडकडी के बीच के इलाके में अकेला था, तो काशिया के दो शेरों ने उसे चुनौती दी और तीनों के बीच लड़ाई शुरू हो गई."
"अकेला होने के कारण जय उन दोनों शेरों का सामना नहीं कर सका और हमला करने वाले शेरों ने उसकी पीठ पर काट लिया, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गया. जय को एक जून को इलाज के लिए सासन लाया गया था."
"चार दिन बाद, 4 जून को, कमलेश्वर-खोखरा दिशा से दो अन्य शेरों ने गंधारिया और केरम्बा के बीच घने सालेदी क्षेत्र में वीरू को चुनौती दी. अकेले होने के बावजूद, वीरू ने दोनों शेरों से मुकाबला किया, लेकिन लड़ाई में वीरू को भी अपने बड़े भाई जय की तरह गंभीर चोटें आईं."
"हम उसे भी इलाज के लिए सासन ले आए और दोनों को एक-दूसरे के पास रखा, लेकिन 11 जून को वीरू ने दम तोड़ दिया."
मोहन राम ने आगे बताया, "इलाज के अच्छे असर से जय की सेहत में सुधार हुआ था और वह चलने-फिरने भी लगा था. एक समय तो हम जय को फिर से जंगल में छोड़ने के बारे में भी सोचने लगे थे. लेकिन फिर उसकी तबीयत बिगड़ने लगी और पशु चिकित्सकों की तमाम कोशिशों के बावजूद जय का इन्फ़ेक्शन ठीक नहीं हो सका. 29 जुलाई को उसकी भी मौत हो गई."
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इस प्रकार के हमले को शेरों के बीच इलाके पर कब़्ज़ा करने के लिए आपसी लड़ाई कहा जाता है.
विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की लड़ाइयाँ शेरों के ज़िंदगी का हिस्सा हैं. शेर अपनी सीमाएँ खुद तय करते हैं और उनके भीतर रहते हैं.
शेर और शेरनी इसी तरह से अपने इलाके स्थापित करते हैं. एक शेर अकेले भी ऐसे इलाके स्थापित कर सकता है या फिर उन दूसरे शेरों के साथ गुट बनाता है, जो युवावस्था से उसके मित्र हों.
शेरनियां आमतौर पर एक से अधिक सदस्यों के साथ समूह में रहती हैं और इनमें माताएं, बहनें और बच्चे वगैरह शामिल होते हैं.
एक शेर या उसके गुट के प्रभाव वाले इलाके में एक से ज़्यादा शेरनियाँ हो सकती हैं. शेर अपने इलाके में शेरनियों के साथ अपना परिवार बढ़ाने की कोशिश करते हैं.
लेकिन क्षेत्र पर कब्जे के लिए शेर लड़ाइयां भी लड़ते रहते हैं.
जब नर शावक वयस्कता की ओर बढ़ते हैं, तो उन्हें शेरों और शेरनियों के समूह से बाहर निकाल दिया जाता है.

शोधकर्ताओं का कहना है कि शेर अपने खून के रिश्तों के साथ यौन संबंध बनाने से बचने के लिए ऐसा करते हैं, जिससे आनुवंशिक दोष से बचा जा सके.
परिवार से निकाले गए युवा शेर अपना इलाका बसाने के लिए किसी नए इलाके में चले जाते हैं. इसी तरह, अगर किसी दूसरे परिवार से निकाला गया कोई और युवा शेर मिल जाए, तो ऐसे दो शेर मिलकर भी एक संयुक्त इलाके पर अपना 'वर्चस्व' स्थापित करने के कोशिश करते हैं.
वन विभाग के कर्मचारियों का कहना है कि इसी तरह जय और वीरू ने अपना 'राज्य' स्थापित किया था.
युवावस्था में, ये शेर ज़्यादा ताकतवर हो जाते हैं और अपने इलाके पर 'राज' करने वाले शेरों को चुनौती देते हैं, नतीजतन शेरों के झगड़े होते हैं.
ऐसी लड़ाइयों में, कभी राज करने वाला शेर जीत जाता है, तो कभी उसे चुनौती देने वाला युवा शेर. आमतौर पर, कमज़ोर शेर, विरोधी शेर की ताकत से हारकर लड़ाई में पीछे हट जाता है और भाग जाता है.
अगर 'शासन करने वाले' शेर को भागना पड़ता है, तो उसका बाकी जीवन ज़्यादातर एकांत में गुज़रता है. अगर कोई युवा नर शेर लड़ाई हार जाता है, तो वह हमेशा किसी और हमले या किसी 'राज करने वाले' शेर की ताक में रहता है.
विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी लड़ाइयाँ कभी-कभी जानलेवा भी हो सकती हैं. ऐसी ही एक लड़ाई में जय और वीरू कभी जीते थे और उन्होंने पर्यटन क्षेत्र के अधिकांश भाग पर अपना 'अधिकार' स्थापित कर लिया था.
वन विभाग के एक अधिकारी ने बीबीसी को बताया, "उस समय इस इलाके में दो अन्य नर शेरों का बोलबाला था. जय और वीरू केनेडीपुर-नटालिया वीडी से आए और दोनों 'शासन करने वाले' नर शेरों को चुनौती दी. उस लड़ाई में जय-वीरू ने उन नर शेरों को हरा दिया, लेकिन यह लड़ाई जानलेवा नहीं थी. उस वक़्त हारने वाले शेर कमलेश्वर की ओर भाग गए थे."
अब गिर में जय-वीरू की जगह कौन लेगा?
मोहन राम का कहना है कि आम तौर पर वन विभाग के कर्मचारी अंतर-प्रजाति लड़ाई में घायल शेरों को बचाकर उपचार के लिए नहीं ले जाते हैं, क्योंकि ऐसी लड़ाइयों को "नेचुरल बैलेंस" और "सर्वाइवल ऑफ़ द फ़िटेस्ट" के प्रकृति के नियम का हिस्सा माना जाता है.
मोहन राम ने कहा, "लेकिन हमने जय और वीरू के लिए बहुत उपाय किए. उनका झुंड बहुत बड़ा था. जब उन पर हमला हुआ, तो उनके झुंड में बहुत सारे छोटे शावक थे. अगर ये प्रमुख नर शेर मर जाते, तो बड़ी संख्या में शावकों के मरने की आशंका थी. इसलिए, हमने जय और वीरू को बचाने और उन्हें इलाज मुहैया कराने का फैसला किया."
मोहन राम बताते हैं कि जब जय-वीरू पर हमला हुआ, तब गंधारिया इलाके में चार शेरनियाँ और उनके दस शावक थे. जय और वीरू उन शावकों के पिता थे. इसी तरह, डेडकडी इलाके में शेरनियों के एक और समूह में भी सात शावक थे.
आमतौर पर, किसी इलाके पर कब्ज़ा करने के बाद, शेर उस इलाके में पहले के शेरों से पैदा हुए शावकों को मार देते हैं जो अभी छोटे होते हैं ताकि उनके प्रतिद्वंद्वी पैदा न हों और उस इलाके की शेरनियाँ जल्दी गर्भधारण के लिए तैयार हो जाएँ.
मोहन राम ने बीबीसी को बताया, "चूँकि गंधारिया समूह के शावक बहुत छोटे हैं, इसलिए शेरनियाँ अपनी जान जोखिम में डालकर उनकी रक्षा कर रही हैं. शेरनियाँ नए आए शेरों से शावकों की रक्षा के लिए भाग गई हैं, लेकिन यहां दो शावकों की कुदरती तौर पर मौत हो गई है, जबकि डेडकडी इलाके में हमलावर शेरों ने दो शावकों को मार डाला है. वहीं जवानी की अवस्था में पहुँच चुके पाँच शावक अपनी जान बचाने के लिए छिपे हुए हैं. हम कुछ शेरों की दहाड़ सुन सकते हैं, लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं है कि जय-वीरू के साम्राज्य' पर अब किसका कब्जा है."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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