कल्पना कीजिए... अगर एक छोटा सा गड्ढा गाय, भैंस, बकरी और मुर्गियों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए रोज़ाना पर्याप्त चारा उपलब्ध करा सके और साथ ही किसानों की जेब भी भर सके, तो आप क्या कहेंगे? यही चमत्कार है अजोला की खेती का। कम लागत और सीमित जगह में उगाई जाने वाली यह हरी फर्न अब पशुपालकों के लिए वरदान बनकर उभर रही है। स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय (SKRAU) की एकीकृत कृषि प्रणाली इकाई में अजोला इकाई संचालित होती है, जहाँ पशुओं पर इसके डेमो और सफल प्रयोग किए जा रहे हैं। गौरतलब है कि पशुपालन में क्रांति लाने वाला यह हरा-भरा खजाना अब किसानों की पहुँच में है। भेड़, बकरी, गाय, भैंस, मुर्गियाँ या सूअर, अजोला हर पशु के लिए एक पौष्टिक सुपरफूड साबित हो रहा है। खास बात यह है कि इसके लिए न तो ज़्यादा ज़मीन की ज़रूरत होती है और न ही इसे उगाना महंगा पड़ता है।
बकरियों और मुर्गियों पर यह प्रयोग सफल रहा है
इकाई प्रभारी डॉ. शंकरलाल बताते हैं कि 35 सिरोही बकरियों को नियमित रूप से अजोला खिलाया जा रहा है। सामान्य आहार के साथ-साथ यह पूरक आहार उनके स्वास्थ्य, उत्पादन और प्रजनन क्षमता पर सकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। इकाई में पाली जाने वाली मुर्गियों को भी अजोला दिया जाता है, जिससे उनकी उत्पादकता और रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार देखा गया है।
अजोला क्यों खास है
अजोला एक जलीय फर्न है जो प्रोटीन, खनिज, अमीनो एसिड, विटामिन ए, विटामिन बी12 और बीटा-कैरोटीन से भरपूर है। यह चावल की खेती में जैवउर्वरक के रूप में कार्य करता है, नाइट्रोजन को स्थिर करता है और उपज बढ़ाता है। यह पशुओं के लिए एक आदर्श जैविक पूरक है, जो उनके स्वास्थ्य में सुधार और उनकी उत्पादकता को बढ़ाता है।
किसानों के लिए बीज उपलब्ध
विश्वविद्यालय किसानों को ₹100 प्रति किलोग्राम की दर से अजोला के बीज उपलब्ध करा रहा है। कोई भी किसान एकीकृत कृषि प्रणाली इकाई से आसानी से बीज खरीदकर उन्हें उगा सकता है। डॉ. शंकरलाल कहते हैं कि अजोला किसानों के लिए पशु पोषण का एक सस्ता और प्रभावी स्रोत है। इस बीच, विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. देवाराम सैनी ने किसानों से इस प्रायोगिक इकाई का अधिकतम लाभ उठाने का आग्रह किया है। कुल मिलाकर, अजोला की खेती ग्रामीण पशुपालकों के लिए कम लागत, बेहतर पोषण और अतिरिक्त आय के द्वार खोल सकती है। यही कारण है कि इसे पशुओं के लिए एक सुपरफूड के रूप में जाना जाता है।
इसकी खेती कैसे की जाती है?
1.5 से 2 फुट गहरे गड्ढे को पानी से भरकर प्लास्टिक शीट से ढक दिया जाता है।
अजोला 7-10 दिनों में पूरे गड्ढे को भर देता है।
चार वर्ग मीटर के गड्ढे से प्रतिदिन लगभग 2 किलो अजोला प्राप्त होता है।
यह आर्द्र और गर्म जलवायु में तेज़ी से फैलता है और साल भर उपलब्ध रहता है।
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